उदाकिशनगंज प्रखण्ड (मधेपुरा)
21 मई 1983 को अनुमंडल का दर्जा प्राप्त करने वाला उदाकिशुनगंज अनुमंडल का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक गाथा गौरवशाली रहा है। बताया जाता है कि 16वीं सदी में तत्कालीन छय परगना के अधीन यह इलाका घनघोर जंगल, कोसी नदी और उसकी छाड़न नदियों से आच्छादित था।
16वीं सदी में छोटानागपुर से एक परिवार आकर यहां बसे और विभिन्न जातियों के लोगों को इस क्षेत्र में लाकर बसाया। 1703 ई में उदय सिंह नामक सरदार ने इस क्षेत्र पर आक्रमण कर दिया और अपने कब्जे में ले लिया। उदय सिंह के उत्तराधिकारी ने शाह शुजा से अपने राजस्व का वैधानिक फरमान प्राप्त कर लिया। कालांतर में राजपूत सरदार के बंशज राजा देव सिंह के पुत्रों में जमींदारी का बंटवारा हुआ। बंटवारे में छोटे पुत्र सरदार हसौल सिंह को मौजा शाह आलमनगर प्राप्त हुआ। शाह आलमनगर के तत्कालीन शासक चंदैल वंशजों द्वारा निर्मित दुर्ग और जलाशय आज भी दर्शनीय है।
चंदैल शासकों के उत्तराधिकारी आज भी यहां मौजूद है। सहरसा गजेटियर के मुताबिक छय तिरहुत परगना से अलग कर शाह आलमनगर को भागलपुर में मिला दिया गया। 19 मई 1798 को भागलपुर के कलक्टर के कार्यालय से प्राप्त पत्र के मुताबिक 5000 एकड़ जमीन यहां के राजा किशुन सिंह से तत्कालीन सरकार ने जागीरदारों के लिए खरीदी थी। कहा जाता है कि राजा उदय सिंह और राजा किशुन सिंह दोनों भाई के नाम पर ही इस अनुमंडल का नाम उदाकिशुनगंज पड़ा। उदाकिशुनगंज क्षेत्र ऐतिहासिक ही नहीं, बल्कि आजादी के दीवानों की भी धरती रही है।
मधेपुरा जिला के ऐतिहासिक सर्वेक्षण के मुताबिक मधेपुरा सहित उदाकिशुनगंज अनुमंडल के तीन दर्जन से अधिक ऐतिहासिक स्थलों को चिन्हित किया गया है। इसमें खुरहान, आसिनपुर अखरी, करामा, पचरासी, मधुकरचक, रजनी, बभनगामा, गमैल आदि ऐतिहासिक स्थल हैं जो उदाकिशुनगंज अनुमंडल के गौरवशाली अतीत को रेखाकित करता है।