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उत्थापक

उत्थापक, उच्चालित्र अथवा एलिवेटर (lift या elevator) एक युक्ति है वस्तुओं एवं व्यक्तिओं को उर्ध्व दिशा में चढ़ाने-उतारने के काम आती है। प्रायः किसी बहुमंजिला ऊँचे भवन, जलपोत एवं अन्य संरचनाओं में उत्थापक लगा होता है जो गोलों को या सामान आदि को एक मंजिल से दूसरी मंजिल या एक स्तर से दूसरे स्तर पर लाता और ले जाता है। उत्थापक प्रायः विद्युत मोटर द्वारा चलते हैं।

धान्य के उच्चालित्र

अनाज के उठाने और रखने की यांत्रिक रीतियों में से एक, जो अब भी सर्वाधिक प्रयोग में आती है, डोलवाले उच्चालित्र की है। इसमें मोटे गाढ़े या कैनवस के पट्टे पर १० से १८ इंच की दूरी पर धातु के छोटे-छोटे डोल बँधे रहते हैं। पट्टा ऊर्ध्वाधर अथवा प्राय: उर्ध्वाधर रहता है। ऊपरी तथा निचले सिरों पर एक-एक बड़ी घिरनी या पहिया रहता है, जिसपर पूर्वोक्त पट्टा चढ़ा रहता है। पट्टा और घिरनी के बीच पर्याप्त घर्षण के लिए पट्टे पर रबर चढ़ा रहता है। उच्चालित्र के नीचेवाले भाग में बने एक गढ़े में से चलते हुए पट्टे के डोल अनाज उठा लेते हैं और उसे ऊपरी सिरे पर जाकर गिरा देते हैं। जैसे ही अनाज उच्चालित्र के ऊपरी सिरे पर पहुँचता है, अपकेंद्र बदल उसे एक बृहत्काय कीप में फेंक देता है। यहाँ से पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण उसे बड़े व्यास के नलों तथा ढालू नदियों द्वारा संग्रह के उपयुक्त खत्तों या भांडों में पहुँचा देता है।

अनाज को किसी भी बेंड़ी अथवा खड़ी दिशा में ले जाने की नई रीति यह है कि वायुधारा का प्रयोग किया जाए। इसमें धातु की दृढ़ पंखियोंवाला पंखा रहता है। इसी पर अनाज डाला जाता है। पंखा वायु की धारा के साथ अनाज को भी आगे ढकेल देता है। पंखों का प्रयोग मुख्यत: कृषि के फार्मों पर अथवा ऐसे छोटे कामों के लिए होता है जहाँ धूल उठाऊ यंत्र की आवश्यकता रहती है। पंखे के प्रयोग में हानि यह है कि वह धूल उड़ाता है, उसमें भठ जाने की प्रवृत्ति रहती है तथा उसकी पंखियाँ अनाज के दानों को बहुधा तोड़ देती हैं।

छोटे या संकुचित स्थानों में अथवा थोड़ी दूरी के लिए पेंच के रूप वाले उच्चालित्र का व्यवहार किया जाता है। खोखले गोल बेलन के भीतर कुंतलाकार एक फल होता है। इस फल के घूमने के साथ-साथ अनाज भी आगे बढ़ता है। अनाज की क्षैतिज गति के लिए यह ठीक काम देता है, किंतु खड़ी अथवा प्राय: खड़ी दिशा में अनाज को चढ़ाने के लिए इसमें बहुत बल लगाने की आवश्यकता होती है और इसलिए यह अनुपयोगी सिद्ध हुआ है।

पिछले कई वर्षों से, नौकाओं तथा जहाजों और, इससे भी अभिनव काल में, रेलों से अनाज उतारने तथा ऊपर नीचे पहुँचाने के लिए हवा से काम लिया जाता है। लचीले नलों से काम लेकर इस विधि का प्रयोग विविध कार्यों में किया जा सकता है। यद्यपि इसके उपयोग में अधिक बल की आवश्यकता होती है और अनाज की गति सीमित होती है, तो भी अन्य उच्चालित्रों की अपेक्षा इसमें अनेक गुण हैं।

हवा से चलने वाली मशीनों का हृदय एक पंप होता है जो या तो पिस्टन के आगे पीछे चलने से अथवा केवल वेगपूर्वक घूमते रहने से काम करता है। यह यंत्र उन नलों से, जिनका मुख अनाज के भीतर डूबा रहता है, वायु निकाल लेता है। तब नलों के मुख से, जिनमें अनाज के साथ अतिरिक्त वायु के प्रवेश के लिए अलग मार्ग रहता है, हवा तथा अनाज साथ-साथ ऊपर चढ़ते हैं।

अनाज के उठाने रखने की मशीनों से काम लेते समय अनाज की धूलि से विस्फोट होने की आशंका पर ध्यान रखना आवश्यक है।

माल तथा यात्रियों के उच्चालित्र

मोटर, पुली, केबुल, गीयर, ब्रेक आदि
एक आधुनिक उत्थापक नियंत्रक

इस वर्ग के यंत्रों में माल पहुँचाने का कार्य अविराम न होकर रुक रुककर होता रहता है। इस प्रकार का उच्चालित्र भार को समय-समय पर ऊपर नीचे करता रहता है। भार रखने के लिए एक चौकी तथा उसे ऊपर नीचे चलाने के लिए रस्सी या जलसंचालित (हाइड्रॉलिक) यंत्र होता है। चौकी एक चौकोर या गोल घर में ऊपर नीचे चलती है जिसे कूपक (शैफ्ट) कहते हैं।

रस्सी से चलनेवाले माल के उच्चालित्रों को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया जा सकता :

  • (१) लघुकार्यक्षम तथा
  • (२) गुरुकार्यक्षम।

लघु कार्यक्षम उच्चालित्र २० से ३० मन की सामर्थ्य के, २५ फुट प्रति मिनट की गतिवाले तथा ३५ फुट ऊँचाई तक कार्य करनेवाले होते हैं। इन उच्चालित्रों के सब भागों की रचना साधारण आवश्यकता से कहीं अधिक दृढ़ होती है और इनमें बटन दबाने पर कार्य करनेवाले स्थिर-दाब-नियंत्रक, भवन के प्रत्येक तल पर तथा चलनेवाली चौकी में भी, लगे रहते हैं। यदि नीचे उतरते समय गति अत्यधिक हो जाए तो यान में स्वत:चालित गतिनियंत्रक-सुरक्षा-यंत्र काम करने लगते हैं। चौकी के प्रारंभिक और अंतिम स्थानों पर सीमा स्थिर करनेवाले खटके तथा सुरक्षा के अन्य उपाय भी रहते हैं। ऐसे यंत्रों की एक विशेषता यह है कि चौकी को चलानेवाला यंत्र उच्चालित्र के पेंदे के पास रहता है। इसलिए ऊपर किसी अवलंब या छत की आवश्यकता नहीं होती।

रस्सीवाले गुरुकार्यक्षम उच्चालित्र विशेषकर मोटर ट्रकों पर काम करने के लिए बनाए जाते हैं। वे इतने पुष्ट बनाए जाते हैं कि भार से हानेवाले सब प्रकार के झटके आदि सह सकें। इनके सब नियंत्रक (कंट्रोल) पूर्ण रूप से स्वयंचालित होते हैं और इनका प्रयोग ट्रक का ड्राइवर अथवा अन्य कोई कर्मचारी कर सकता है। यातायात मार्ग के कुछ स्थानों पर, सिर से ऊपर लगे और बटन दबाने पर कार्य करनेवाले नियंत्रकों, से यह बात संभव हो जाती है। जहाँ आवश्यकता होती है वहाँ ऐसा प्रबंध भी रहता है जिसके द्वारा कोई अनुचर भी नियंत्रण कर सकता है। जहाँ भवन बहुत ऊँचा हो तथा माल शीघ्र चढ़ाने की आवश्यकता हो वहाँ के लिए रस्सी की सहायता से कार्य संपादित करनेवाले उच्चालित्र विशेष उपयोगी होते हैं।

जलचालित उच्चालित्र जलचालित उच्चालित्रों का उपयोग नीचे भवनों में होता है जहाँ बोझ बहुत भारी रहता है और तीव्र गति की आवश्यकता नहीं रहती। इन उच्चालित्रों के कार्य में दाब में पड़े द्रव से काम लिया जाता है। ऐसे उपकरणों के निर्माता दावा करते हैं कि जलचालित उच्चालित्र की चौकी पर भारी बोझ लादने पर चौकी नीचे की ओर नहीं भागती क्योंकि उसका आधार तेल का एक असंपीडनीय स्तंभ होता है। वे इस प्रकार के यंत्रों में निम्नांकित अन्य गुण भी बताते हैं : इनके लिए किसी छत की आवश्यकता नहीं पड़ती; इनका कूपकमार्ग खुला और इसलिए सुप्रकाशित रहता है; चौकी बिना झटके के चलना आरंभ करती और रुकती है; जहाँ रोकना चाहें ठीक वहीं रुकती है; और मशीन को अच्छी दशा में बनाए रखने में व्यय कम होता है।

यात्रियों के लिए बने उच्चालित्रों की रचना भी बोझ ढोनेवाले उच्चालित्रों की ही तरह होती है। केवल इनमें सुरक्षा की कुछ अधिक युक्तियाँ रहती हैं तथा इनके रूप और यात्रियों की सुख सुविधा पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

सन्दर्भ ग्रन्थ

  • डी.ओ. हेंज़ : मैटीरियल हैंडलिंग इक्विपमेंट, (चिट्टन कंपनी, फ्ऱलाडेल्फ़िया);
  • इम्मर : मैटीरियल हैंडलिंग (मैक्ग्रा हिल बुक कंपनी इंकारपोरेटेड)।