इलेक्ट्रोत्रिदोषग्राम (ई.टी.जी.)
इलेक्ट्रो-त्रिदोष-ग्राफ मशीन का आविष्कार करके इसकी सहायता लेकर ‘इलेक्ट्रो-त्रिदोष-ग्राम’ प्राप्त करने की तकनीक का अविष्कार किया गया है।[] इस तकनीक द्वारा नाडी परीक्षण के समस्त ज्ञान को कागज की पट्टी पर अंकित करके साक्ष्य रूप में प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया गया है। इस तकनीक के आविष्कारक, एक भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सक, कानपुर शहर, उत्तर प्रदेश राज्य के डॉ॰ देश बन्धु बाजपेई (जन्म 20 नवम्बर 1945) ने 14 वर्षों के अथक प्रयासों के पश्चात प्राप्त किया है।[] वर्तमान में भी शोध, परीक्षण और विकास कार्य अनवरत जारी है।
आयुर्वेद लगभग पांच हजार वर्ष प्राचीन चिकित्सा विज्ञान है। सम्पूर्ण आयुर्वेद त्रिदोष सिद्धान्त, “सप्त धातुओं” तथा “मल” यानी दोष-दूष्य-मल के आधार पर व्यवस्थित है।
त्रिदोषो का शरीर में मौजूदगी का क्या आकलन है, क्या स्तर है, यह ज्ञात करने के लिये अभी तक परम्परागत तौर तरीकों में नाडी परीक्षण ही एकमात्र उपाय है। नाड़ी परीक्षण द्वारा त्रिदोषों के विषय में प्राप्त जानकारी अकेले आयुर्वेद के चिकित्सक के नाड़ी ज्ञान पर आधारित होता है। इस नाड़ी परीक्षण की प्रक्रिया और नाड़ी-परीक्षण के परिणामों को केवल मस्तिष्क द्वारा ही अनुभव किया जा सकता है, लेकिन भौतिक रूप से देखा नहीं जा सकता है।
आयुर्वेद चिकित्सक त्रिदोष, त्रिदोष के प्रत्येक के पांच भेद, सप्त धातु, मल इत्यादि को मानसिक रूप से स्वयं किस स्तर पर स्वीकार करते हैं अथवा किस प्रकार अपने विवेक का उपयोग करके दोष-दूष्य-मल का निर्धारण करते हैं और इन सब बिन्दुओं को किस प्रकार से और कैसे व्यक्त किया जायेगा यह सब भौतिक रूप में साक्ष्य अथवा सबूत के रूप में संभव नहीं है। जैसे कि आजकल वर्तमान में इवीडेन्स-बेस्ड-मेडिसिन [Evidence based medicine] "प्रत्यक्ष प्रमाण आधारित चिकित्सा" की बात की जाती है। उदाहरण के लिये एक्स-रे चित्र, सीटी स्कैन, एमआरआई, ईसीजी, पैथालाजी रिपोर्ट इत्यादि तकनीकें रोगों के निदान के लिये साक्ष्य अथवा सबूत के लिये प्रत्यक्षदर्शी है।
साक्ष्य रूप में आविष्कार
आयुर्वेद के इतिहास में संभवत: ऐसा पहली बार हुआ है कि इलेक्ट्रो-त्रिदोष-ग्राफ मशीन का आविष्कार करके इसकी सहायता लेकर ‘इलेक्ट्रो-त्रिदोष-ग्राम’ तकनीक का अविष्कार किया गया है। इस तकनीक द्वारा नाडी परीक्षण के समस्त ज्ञान को कागज की पट्टी पर अंकित करके साक्ष्य रूप में प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया गया है। इस तकनीक के आविष्कारक, एक भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सक, कानपुर शहर, उत्तर प्रदेश राज्य के डॉ॰ देश बन्धु बाजपेई (जन्म 20 नवम्बर 1945) ने 14 वर्षों के अथक प्रयासों के पश्चात प्राप्त किया है। वर्तमान में भी शोध, परीक्षण और विकास कार्य अनवरत जारी है।
ऐसा विश्वास है कि इस तकनीक से आयुर्वेद यानी भारतीय चिकित्सा पद्धति की वैज्ञानिकता सिद्ध होगी, वैज्ञानिक द्रष्टिकोण की उन्नति होगी और आयुर्वेद चिकित्सा, आयुर्वेद दर्शन, मौलिक सिद्धान्त आदि में अनुसंधान के नये द्वार, अनुसंधान के विषय, नये आयाम एवं नव वैज्ञानिक दृष्टिकोण की वृद्धि होगी।
वर्तमान में त्रिदोष, त्रिदोषों के प्रत्येक पांच भेदों, सप्तधातुयें और मल यानी दोष-दूष्य-मल का निर्धारण मानव शरीर में कितनी विद्यमान है और इनमें सामान्य अथवा असमान्य स्तर किस प्रकार का है, यह सब कागज पट्टी पर अंकित होकर नेत्रों के सामने साक्ष्य रूप में भौतिक दृष्टि से ई0टी0जी0 तकनीक द्वारा प्रस्तुत किये जा सकते हैं।
आयुर्वेदिक औषधियों के मानव शरीर पर प्रभाव के अध्ययन, चिकित्सा प्रारम्भ करने के पहले और चिकित्सा पूर्ण करने के पश्चात् आरोग्य की जांच करने हेतु मानिटरिंग, वातादि सात दोषों की स्थितियां, इन वातादि दोषों के प्रत्येक के पांच पांच भेद यानि कुल 15 भेद, सात धातुयें, तीन मल यथा पुरीष, मूत्र और स्वेद का ‘स्टेटस क्वान्टीफाई’ करने के साथ-साथ शरीर में व्याप्त बीमारियों के निदान, पंचकर्म के पहले और पंचकर्म के पश्चात् शरीर में आरोग्यता प्राप्त करने की स्थिति का आंकलन इत्यादि इलेक्ट्रो-त्रिदोष-ग्राम तकनीक से सफलतापूर्वक किये जा सकते हैं।
तकनीक और वैज्ञानिक आधार
अब आयुर्वेद के पास एक तकनीक और वैज्ञानिक आधार है। इस तकनीक में संयुक्त रूप से कई तकनीकों यथा Basic and advance level Electrophysiology, Action potential, Signal transduction, Membrane potential, Electrolytes, Bio-medical engineering etc. को मिलाकर एक सम्पूर्ण हाई-टेक का निर्माण किया गया है। आधुनिक काल की इस उच्च तकनीक से आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान एक नये अनुसंधान क्षेत्र में प्रवेश करेगा जहां आयुर्वेद की विभिन्न शाखाओं में अनुसंधान करनें के लिये असीम क्षेत्र और अनंत सम्भावनायें तथा भविष्य में आयुर्वेद के विकास के लिये अगणित पथ हैं, जिसे आयुर्वेद के इतिहास में पहले कभी भी अनुसन्धानित नहीं किया गया होगा। यह एक हाई-टेक्नोलॉजी है जो शरीर को इक्कीस सेक्टर में बांटकर इन हिस्सों का ई0 टी0 जी0 मशीन की सहायता से स्कैन करती है। स्कैन की गयी ट्रेसिंग को कम्प्यूटर द्वारा विश्लेषित और संश्लेषित करके रिपोर्ट के रूप में प्रस्तुत कर दिया जाता है।
इस प्रकार से प्राप्त डाटा को अघ्ययन करके निम्न बातों का पता चल जाता है:
- 1- शरीर में त्रिदोष अर्थात् वात, पित्त और कफ की क्या स्थिति है, ये कितनीं इन्टेन्सिटी में मौजूद हैं।
- 2- वात, पित्त और कफ के प्रत्येक के पांच पांच भेदों की क्या स्थिति है, ये कितनीं इन्टेन्सिटी में मौजूद हैं।
- 3- शरीर के अन्दर सम्पूर्ण एकल में सप्तधातुओ की क्या स्थिति है? वात दोष से, पित्त दोष से तथा कफ दोष से सप्त धातुयें कितनी प्रभावित हैं या रोग ग्रस्त हैं? ये कितनीं इन्टेन्सिटी में प्रभावित हैं?
तकनीक की उपयोगिता
1- यह तकनीक समस्त शरीर का इलेक्ट्किल परीक्षण करती है और इससे प्राप्त संकेतों का अघ्ययन करनें के पश्चात यह पता लग जाता है कि मानव शरीर का कौन सा अंग कैसा कार्य कर रहा है। यह परीक्षण विधि अन्य दूसरे परीक्षणों के मुकाबले ज्यादा सस्ती है और बहुत कम खर्च आता है।
2- बहुत सी बीमारियों का पता रक्त परीक्षण, अल्ट्रासाउन्ड, एक्स-रे और अन्य दूसरे परीक्षण करानें के पश्चात भी सही सही निदान नहीं हो पाता है। ई0 टी0 जी0 तकनीक द्वारा बीमार अंगों का पता उनके कार्य करनें के प्रतिशत में निदान हो जाता है।
3- आयुर्वेद के चिकित्सा विज्ञानियों के लिये मानव शरीर में दवाओं के प्रभाव शरीर में किन किन स्थानों में होते हैं, किन दोषों को शांत करती है, किन किन दोष-भेंदों पर प्रभावी है, सप्त धातुओं का शरीर में कितना असर है, मलों की क्या स्थिति है, ओज और अग्निबल आदि किस स्थिति में हैं आदि आदि सभी विषयों पर, इस तकनीक की सहायता लेकर शोधकार्य करनें की अनन्त संभावनायें हैं।
4- आयुर्वेद चिकित्सक ई0टी0जी0 की रिपोर्ट तैयार करके स्वयं आर्थिक लाभ उठाकर चिकित्सा कार्य को सुगम, प्रभावशाली, सटीक, विश्वसनीय, साक्ष्य आधारित बनाते हुए रोगी और आयुर्वेदिक चिकित्सक की चिकित्सा कार्य में सहायता कर सकते हैं।
5- असाध्य, कष्टसाध्य, पूरे जीवन चलनें वाले रोगियों की स्वास्थ्य दशा की मानीटरिंग और अस्पताल या रूग्णालय में भर्ती मरीजों की हर सेकेन्ड की स्वास्थ्य दशा की देखरेख इस तकनीक के द्वारा की जा सकती है।
6- यह तकनीक सभी चिकित्सा पद्धतियों के डाक्टरों के लिये समान रूप से उपयोगी है। सस्ती, सर्वसुलभ होनें के कारण इसके द्वारा डाक्टर अपनें दवाखानें में, अस्पताल में या मरीज के घर में और कहीं पर, किसी भी स्थान में परीक्षण कार्य कर सकते हैं। इसमें किसी दवा का आंतरिक अथवा बाहरी प्रयोग नहीं होता है। रोग निदान की यह तकनीक बहुत सरल और तमाम झंझटों से मुक्त है।
सन्दर्भ ग्रंथ
- ‘’एक शोध: इलेक्ट्रो-त्रिदोष-ग्राम’’, प्रकाशन दि मांरल हिंदी साप्ताहिक, 9 अगस्त 2005 अंक, कानपुर
- ‘’आयुर्वेद चिकित्सा जगत की नई शोध- इलेक्ट्रोत्रिदोषग्राम तकनीक पर पाठकों की जिज्ञासायें बढीं’’, प्रकाशन दि मांरल हिंदी साप्ताहिक, 13 सितम्बर 2005 अंक, कानपुर
- ‘’आयुर्वेद जगत की नई खोज – आयुर्वेदिक भस्मों तथा रसायन युक्त औषधियों का परीक्षण ई0 टी0 जी0 तकनीक द्वारा सम्भव’’, प्रकाशन दि मांरल हिंदी साप्ताहिक, 11 अक्टूबर 2005 अंक, कानपुर
- ‘’आयुर्वेद त्रिदोष के वात-दोष का ई0 टी0 जी0 तकनीक का सहारा लेकर साक्ष्य आधारित प्रस्तुति’’, प्रकाशन दि मांरल हिंदी साप्ताहिक, 29 नवम्बर 2005 अंक, कानपुर
- ‘’ इलेक्ट्रो-त्रिदोष-ग्राम: आसान तकनीक से बीमारियों का निदान सम्भव’’, प्रकाशन दि मांरल हिंदी साप्ताहिक, 14 दिसम्बर 2005 अंक, कानपुर, भारत
- ‘’शोध समीक्षा: इलेक्ट्रो-त्रिदोष-ग्राम (ई0 टी0 जी0) : पन्चकर्म की प्रमाणिकता सिद्ध करनें में आविष्कार सहायक’’, साइन्टिफिक जर्नल आंफ पन्चकर्मा त्रैमासिक पत्रिका प्रकाशन, जुलाई 2005 अंक, उज्जैन, भारत
- ‘’आयुर्वेद की नई खोज: इलेक्ट्रो-त्रिदोष-ग्राफ’’, मिस्टिक इन्डिया हिंदी मासिक पत्रिका, जनवरी 2006 अंक, नई दिल्ली, भारत
- ‘’सम्पूर्ण शरीर का आयुर्वेदिक परीक्षण : इलेक्ट्रो-त्रिदोष-ग्राम/ग्राफ : आयुर्वेद के मौलिक सिद्धान्तों और निदान-ज्ञान का साक्ष्य आधारित समाधान’’ – शोध ग्रंथ शीर्षक – लेखक- डॉ॰ देश बन्धु बाजपेई
- चरक संहिता
- सुश्रुत संहिता
- वाग्भट्ट
- चिकित्सा चन्द्रोदय
- Physiology by C.C. Chatterjee, Kolkata
- Anatomy by Grays
- Pathological Basis of diseases
- Physiological basis of diseases
- Electrocardiography : Golwala, Mumbai