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इद्दत

इस्लाम में इद्दत या इद्दाह ( अरबी: العدة‎; प्रतीक्षाकाल) किसी महिला के तलाक़ या उसके पति की मृत्यु के बाद की वह अवधि है, जिसका पालन करना उस महिला के लिए अनिवार्य है, इस अवधि के दौरान वह किसी अन्य पुरुष से शादी नहीं कर सकती है।[1]:472 [2] इसका मुख्य उद्देश्य तलाक या पूर्व पति की मृत्यु के बाद पैदा हुए बच्चे के पितृत्व के बारे में किसी भी प्रकार के संदेह को दूर करना है।

इद्दत की लंबाई परिस्थितियों के अनुसार बदलती रहती है। आम तौर पर, पति द्वारा तलाक़ दी गयी महिला के लिए यह अवधि तीन महीने होती है, लेकिन अगर शादी के पश्चात सहवास नहीं हुआ तो कोई 'इद्दत' नहीं होती है। जिस महिला के पति की मृत्यु हो गई हो, उसके लिए इद्दत पति की मृत्यु के बाद के चार चंद्र मास और दस दिन होती है, चाहे शादी के पश्चात सहवास हुआ हो या नहीं। अगर कोई गर्भवती महिला विधवा हो जाती है या उसका तलाक हो जाता है, तो 'इद्दत तब तक चलती है जब तक संतान का जन्म नहीं हो जाता।

इस्लामी विद्वान इस निर्देश को पति की मृत्यु के शोक और विधवा को उसके पति की मृत्यु के बाद बहुत जल्दी पुनर्विवाह करने पर होने वाली आलोचना से बचाने, के बीच एक संतुलन के रूप में मानते हैं।[3] साथ ही इस अवधि में यह भी पता लग जाता है कि अमुक महिला गर्भवती है या नहीं, क्योंकि साढ़े चार महीने का समय सामान्य गर्भावस्था की अवधि का आधा है।[4]

विवरण

मुसलमानों की मान्यता है कि यदि गर्भ हो तो इस अवधि में विस्वास के साथ उसका पता चल जाता है। [5]

इद्दत की किस्में

इस्लाम धर्म में इद्दत 7 प्रकार की होती हैं, उनका समय भी विभिन होता है।

क़ुरआन में इद्दत का उल्लेख

जब तुम लोग त़लाक़ दो अपनी पत्नियों को, तो उन्हें तलाक़ दो उनकी 'इद्दत' के लिए, और गणना करो 'इद्दत' की तथा डरो अपने पालनहार अल्लाह से और न निकालो उन्हें उनके घरों से और न वह स्वयं निकलें,(क़ुरआन, 65:1)[6]

हे ईमान वालो! जब तुम निकाह करो ईमान वालियों से, फिर तलाक़ दो उन्हें, इससे पूर्व कि हाथ लगाओ उनको, तो नहीं है तुम्हारे लिए उनपर कोई इद्दत,[1] जिसकी तुम गणना करो। तो तुम उन्हें कुछ लाभ पहुँचाओ और उन्हें विदा करो भलाई के साथ। (क़ुरआन, 33:49)

जिन स्त्रियों को तलाक़ दी गयी हो, वे तीन बार रजवती होने तक अपने आपको विवाह से रोके रखें। उनके लिए ह़लाल (वैध) नहीं है कि अल्लाह ने जो उनके गर्भाशयों में पैदा किया[1] है, उसे छुपायें, यदि वे अल्लाह तथा आख़िरत (परलोक) पर ईमान रखती हों,(क़ुरआन, 65:4)

तथा जो निराश[1] हो जाती हैं मासिक धर्म से तुम्हारी स्त्रियों में से, यदि तुम्हें संदेह हो तो उनकी निर्धारित अवधि तीन मास है तथा उनकी, जिन्हें मासिक धर्म न आता हो और गर्भवती स्त्रियों की निर्धारित अवधि ये है कि प्रसव हो जाये 

और तुममें से जो मर जायें और अपने पीछे पत्नियाँ छोड़ जायें, तो वे स्वयं को चार महीने दस दिन रोके रखें।,(क़ुरआन, 2:234)

हदीस में इद्दत का उल्लेख

हदीस (बुखारी 5320)

ये भी देखे

इस्लाम में औरतों की नमाज़ का तरीका [7]

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

  1. Mohammad Taqi al-Modarresi (26 March 2016). The Laws of Islam (PDF) (अंग्रेज़ी में). Enlight Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0994240989. मूल (PDF) से 2 अगस्त 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 December 2017.
  2. Esposito, John, संपा॰ (2003), "Iddah", The Oxford Dictionary of Islam, Oxford University Press, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-512558-4
  3. Amin Ahsan Islahi, Tadabbur-i-Quran, 2nd ed., vol. 1, (Lahore: Faran Foundation, 1986), p. 546
  4. Shehzad Saleem. The Social Directives of Islam: Distinctive Aspects of Ghamidi’s Interpretation Archived 2007-04-03 at the वेबैक मशीन, Renaissance. March, 2004.
  5. "इद्दत"- प्रो. डॉक्टर जियाउर्रहमान आज़मी, कुरआन मजीद की इन्साइक्लोपीडिया, हिंदी संस्करण(2010), पृष्ठ 153
  6. Translation of the meanings Surah At-Talāq - Hindi translation - The Noble Qur'an Encyclopedia https://quranenc.com/en/browse/hindi_omari/65/1
  7. "इस्लाम में औरतों की नमाज का तारिका", विकिपीडिया, 2021-12-04, अभिगमन तिथि 2021-12-12[मृत कड़ियाँ]