इटली का इतिहास
इटली का इतिहास ईसा पूर्व ९वीं शताब्दी से आरम्भ होता है। इसी समय वर्तमान इटली के केन्द्रीय भाग में इतालवी जनजातियों के अस्तित्व के प्रमाण मिलते हैं। भाषायी रूप से वे मुख्यतः तीन भाषाएँ बोलते थे- ओस्कान (Oscan), अम्ब्रिआन (Umbrian) तथा लातिन (Latin)। कालान्तर में ३५० ईसापूर्व जब रोम शक्तिशाली नगर-राज्य के रूप में उभरा तो लातिन संस्कृति का वर्चस्व स्थापित होता गया। रोमन पूर्व काल में ८वीं शती ईसापूर्व वृहत यूनान (Magna Graecia) नामक सभ्यता भी थी जब यूनानी लोग इटली के दक्षिणी भागों में बसने लगे थे।
बाद में रोमन साम्राज्य का पूरे पश्चिमी योरप तथा भूमध्य क्षेत्र पर कई शताब्दियों तक वर्चस्व रहा। ४७६ ई के आसपास जब रोमन साम्राज्य का पतन हुआ तो इटली लगभग एक हजार वर्षों तक छोटे-छोटे नगर-राज्याँ के रूप में बिखरा रहा और अन्ततः विभिन्न विदेशी शक्तियों के अधीन आ गया। इटली के कुछ भागों पर स्पेनियों का अधिकार हो गया, कुछ पर आस्ट्रियाई तथा [[नैपोलियन प्रथम के साम्राज्य का अधिकार हो गया। किन्तु 'होली सी' का रोम पर नियन्त्रण बना रहा। अन्ततः उन्नीसवीं शताब्दी में इटली प्रायदीप मुक्त हुआ और इसका एकीकरण किया गया।
सभ्यता का फूलना फलना कला की प्रगति से बहुत संबंध रखता है और कला पर उस देश की जलवायु का बहुत गहरा असर पड़ता है। यूरोप के किसी दूसरे देश ने आज तक कला और विशेषकर चित्रकला में इतनी कीर्ति प्राप्त नहीं की जितनी इटली ने। इसका कारण यह है कि इटली में सदा साफ नीले आसमान, खिली हुई धूप और छिटकी हुई चाँदनी के दर्शन होते हैं। इटलीवालों का रंग वैसा ही होता है जैसा गोरे रंग के भारतवासियों का। उनकी आँखे और बाल भारतीयों की ही तरह काले होते हैं।
प्राचीन इतिहास
प्राचीन इतिहास के अनुसार नवीं सदी ई. पू. में एशिया कोचक की एक रियासत लीदिया के राजा अत्ती का बेटा तिरहेन लीदिया की आधी जनसंख्या के साथ जहाजों में बैठकर इटली के पश्चिमी किनारे पर उतरा। अपने सरदार के नाम पर ये आगंतुक अपने को "तिरहेनी" कहने लगे। इन लोगों ने समुद्र के किनारे कई बस्तियाँ बसाईं। तिरहेनी उसी वक्त के थे जिस नस्ल के वैदिक आर्य थे। तिरहेनियों की भाषा और संस्कृत भाषा में काफी साम्य पाया जाता है। तिरहेनी धीरे धीरे बढ़ते हुए इटली के लातियम प्रांत में, समुद्र से 16-17 मील दूर, तीबेर नदी के किनारे तीन छोटी छोटी पहाड़ियों पर बसे हुए एक छोटे से गाँव रोमा या रोम में पहुँचे। तिरहेनियों के अधीन धीरे-धीरे रोम इटली का एक बड़ा नगर बनने लगा। आगे चलकर इस शहर ने इतिहास में वह नाम पाया जो आज तक यूरोप के और किसी दूसरे देश को नसीब नहीं हुआ। तिरहेनियों ने रोम में जूपितर (वैदिक-द्यौस्पितर) का एक विशाल मंदिर बनाया।
इतिहास के लेखकों के अनुसार तीसरी सदी ई. पू. में पहली बार पूरे देश का नाम इतालिया पड़ा। इतालया से ही आजकल का इताली या इटली शब्द बना। इतालिया नाम एक इतालियाई शब्द के यूनानी रूप "वाइतालिया" से लिया गया है जिसका अर्थ है "चरागाह"। यूनानी इटली को "इतालियम्" अर्थात् "चरागाह" कहते थे।
इटली में जूलियस सरीज़र की बहन के पोते और रोमन साम्राज्य के पहले सम्राट ओगुस्तन सीज़र का शासनकाल स्वर्णयुग कहलाया। उससे कुछ कुछ पहले पीछे और समकालीन लातीनी के प्रमुख कवि लूक्रेति, वर्जिल, होरेस और ओविद हुए। लूक्रेती ने मृत्यु के बाद के जीवन को धोखा बताया है और धार्मिक रूढ़ियों का उपहास उड़ाया है। वर्जिल का काव्य "ईनिद" इटली का राष्ट्रीय महाकाव्य समझा जाता है। इटली की प्रशंसा करते हुए वर्जिल अपने इस महाकाव्य की पंक्तियों में लिखता है :
- ईरान अपने सुंदर और घने वनों सहित,
- अथवा गंगा अपनी जलप्लावित लहरों सहित,
- अथवा हरमुश नदी, जिसके कणों में सोना मिलता है,
- इनमें से कोई इटली की समता नहीं कर सकते,
- इटली, जहाँ सदा बसंत रहता है,
- जहाँ भेड़ें वर्ष में दो बार बच्चे देती हैं और
- जहाँ वृक्ष वर्ष में दो बार फल देते हैं।
जूलियस सीज़र के समय के इतालियाई गद्य लेखकों में सिसरों का नाम बहुत प्रसिद्ध है। सिसरों की भाषा में यूनानी प्रभाव दिखाई देता है। सीज़र की हत्या के बाद सिसरो की भी हत्या कर दी गई।
रोमन साम्राज्य का असर इटली पर पड़ना स्वाभाविक था। पहली सदी ई. के लगभग इटली में स्वतंत्र नागरिकों की अपेक्षा गुलामों की संख्या कई गुना बढ़ गई थी। दूसरी सदी में मारकस औरीलियस के शासनप्रबंध से इटली का राजनीतिक और सांस्कृतिक ह्रास कुछ दिनों के लिए रुका, किंतु उसकी मृत्यु के बाद तीसरी सदी ई. का एक इतिहासकार लिखता है -""साम्राज्य भर में और स्वयं इटली में शांति और समृद्धि नाम की कोई चीज़ नहीं रह गई थी। लड़ाइयों, महामारियों और आए दिन के दुष्कालों ने इटली की जनसंख्या को बेहद कम कर दिया था। ज़मीन की पैदावार घट गई थी खेतियाँ वीरान पड़ी थीं। शहर और कस्बे उजड़ते जा रहे थे। टैक्सों का बोझ दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था। मारकस औरीलियस की मृत्यु के 200 वर्ष के अंदर न केवल रोम साम्राज्य के बल्कि स्वयं इटली के टुकड़े-टुकड़े हो गए थे।"" पर वह कहानी रोमन साम्राज्य की है। रोमन साम्राज्य के पतन के बाद से आधुनिक समय तक राष्ट्र की हैसियत से इटली में न तो कभी राजनीतिक एकता रही, न स्वाधीनता और न संगठित राष्ट्र। सन् 476 ई. में इटली में नया राजनीतिक परिवर्तन हुआ। गौथ और बंडल कौमों के लोगों ने इटली की फौजों और रोम के दरबार तक पर कब्जा कर रखा था। सन् 475 ई. में एक छोटा सा बलवा हुआ। अंतिम रोगी सम्राट् जूलियस नेपो गद्दी से उतार दिया गया। उसकी जगह इटली में गौथों की हुकूमत कायम हो गई। लगभग 100 वर्षों के शासन के बाद सन् 565 ई. में गौथिक शासन समाप्त होकर इटली में लोंबार्दियों का शासन प्रारंभ हुआ।
मध्य काल
सन् 774 ई. में चार्ल्स महान् (शार्लमान) अपने श्वशुर अंतिम लोंबार्द नरेश देसीदरिअस को पदच्युत कर स्वयं इटली का सम्राट् बन गया। चार्ल्स ने लोंबार्दो की बड़ी-बड़ी जमींदारियाँ समाप्त करके उन्हें छोटी-छोटी जमींदारियों में बाँट दिया और ईसाई धर्माध्यक्षों के अधिकार को बढ़ा दिया। इस चार्ल्स राजकुल के आठ नरेशों ने सन् 888 ई. तक इटली पर शासन किया। 10वीं शताब्दी में मगयार कबीले की सेनाओं ने उत्तरी इटली पर आक्रमण कर उसके उपजाऊ प्रदेशों को वीरान बना दिया। मगयारों के आक्रमणों के बाद इटली पर निरंतर उत्तर से हूणों के और दक्षिण से अरबों के आक्रमण होते रहे। 10वीं शताब्दी के अंत में इटली के धर्माचार्यों के आग्रह पर जर्मनी के सैक्सन सम्राट् ओट्टो ने इटली पर विधिवत् जर्मन सत्ता की घोषणा कर दी। तब से 15वीं शताब्दी के अंत तक जर्मनी के बदलते हुए राजघराने इटली के सम्राट् बनते रहे।
15वीं शताब्दी के अंत में अल्प काल के लिए इटली विदेशी शासन से मुक्त हुआ, किंतु 16वीं शताब्दी के आरंभ में वह फिर यूरोपीय राजनीति के शिकंजे में जकड़ गया। स्पेनी सत्ता अपने चरम उत्कर्ष पर थी। फ्रांस के साथ उसके युद्ध चल रहे थे। स्पेन, फ्रांस और आस्ट्रिया तीनों में रोम के प्रदेशों पर अधिकार करने के लिए प्रतिस्पर्धा चलने लगी। यह स्थिति नेपोलियन के आक्रमण के समय तक बनी रही।
18 मई सन् 1804 ई. में नेपोलियन ने इटली के ऊपर आधिपत्य की घोषणा की और 26 मई 1805 ई. को मिलान के गिरजाघर में नेपोलियन ने इटली के लोंबार्द नरेशों का लौहमुकुट धारण किया।
इटली के ऊपर नेपोलियन का शासन यद्यपि क्षणिक रहा, फिर भी नेपोलियन के शासन ने इटलीवालों में एक राष्ट्र की ऐसी भावना भर दी और उनमें ऐसा संगठन और अनुशासन पैदा कर दिया जो उन्हें निरंतर स्वाधीन होने की प्रेरणा देता रहा। नई संधि के अनुसार इटली के ऊपर आस्ट्रिया का संरक्षण लाद दिया गया। अंदर ही अंदर इस संरक्षण को हटाने के प्रयत्न होते रहे।
सन् 1831 ई. में इटली के प्रसिद्ध देशभक्त जोसफ़ मात्सीनी ने मार्सेई में निर्वासित इतालियन देशभक्तों की एक "जिओवाने इतालिआ" (नौजवाने इतालिआ) नामक संस्था का निर्माण किया जिसका उद्देश्य इटली को स्वाधीन करना था।
मास्तीनी की स्वाधीनता की घोषणा को अप्रैल, सन् 1846 में जनरल गारीबाल्दी ने मूर्त रूप दिया। गारीबाल्दी के नेतृत्व में हजारों नौजवानों ने फ्रेंच, स्पेनी, आस्ट्रियाई और नेपुल्सी सेनाओं का वीरता के साथ सामना किया। यद्यपि देशभक्तों की सेना चार-चार विदेशी सेनाओं के सामने न ठहर सकी और गारीबाल्दी को मातृभूमि छोड़ अमरीका में शरण लेनी पड़ी, फिर भी इस असफल स्वाधीनतासंग्राम ने इतालियाई जनता की देशभक्ति की आकांक्षा अत्यधिक बढ़ा दी।
10 वर्ष बाद 11 मई सन् 1859 को गारीबाल्दी चुने हुए देशभक्तों के साथ अमरीका से अपनी मातृभूमि लौटा। उसने जनता की सहायता से पहले सिसली पर अधिकार किया। सिसली विजय के बाद 20 हजार सेना के साथ गारीबाल्दी ने दक्षिण इटली में प्रवेश किया। 18 फ़रवरी सन् 1860 को इटली की नई पार्लामेंट की बैठक हुई और विधिवत् विक्टर इमानुअल को इटली का राजा घोषित कर दिया गया।
सन् 1914-18 के प्रथम विश्वयुद्ध में इटली मित्रराष्ट्रों के पक्ष में अगस्त, सन् 1916 में युद्ध में शरीक हुआ। उस समय विश्वयुद्ध में इटली के छह लाख सैनिक मैदान में काम आए और लगभग 10 लाख बुरी तरह जख्मी हुए। महायुद्ध के बाद राजनीतिक परिस्थितियों ने ऐसा रूप धारण किया कि 30 अक्टूबर सन् 1922 को इटली में मुसोलिनी के नेतृत्व में फासिस्त सत्ता के मंत्रिमंडल की स्थापना हुई।
दूसरे विश्वयुद्ध में इटली ने धुरीराष्ट्रों का साथ दिया। मित्रराष्ट्रों की विजय के पश्चात् इटली से फासिस्त सत्ता का अंत हुआ।
गणतन्त्र शासन की स्थापना
अपील की अदालत द्वारा घोषणा कर दिए जाने पर कि 2 जून 1946 ई. को हुए मतदान में बहुमत ने देश में गणतंत्र शासन की स्थापना के पक्ष में मत दिया, इटली 10 जून 1946 ई. को गणतंत्र राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठित हो गया। 18 जून को तत्कालीन अस्थायी सरकार ने "आर्डर ऑव द डे" नामक एक पत्रक जारी करके कानूनी तथा सरकारी बयानों एवं कागज पत्रों में पहले से चले आ रहे सभी साम्राज्यपरक संदर्भों तथा अवशेषों को पूर्णत: समाप्त करने की आज्ञा दी; यहाँ तक कि इटली के राष्ट्रध्वज पर बने "हाउस ऑव सेवाय" की ढाल (शील्ड) के चिह्न को भी हटा दिया गया। इस प्राकर लगभग गत पौने दस शताब्दियों से चले आ रहे इटली में एकतंत्र शासन का अंत हो गया।
संविधान सभा ने 22 दिसम्बर 1947 को नया संविधान 62 के मुकाबिले 453 मतों से पारित कर दिया और 1 जनवरी 1948 को यह संविधान लागू हो गया। इसमें 139 अनुच्छेद तथा 18 संक्रमणकालीन धाराएँ हैं।
संविधान में इटली का उल्लेख श्रम पर आधृत जनतांत्रिक गणतंत्र के रूप में किया गया है। संसद् के अंतर्गत प्रतिनियुक्तों (डिप्टियों) का सदन तथा सिनेट हैं। सदन के सदस्यों का चुनाव प्रति पाँचवें वर्ष वयस्क मताधिकार के माध्यम से प्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धति द्वारा किया जाता है। डिप्टी के पद के प्रत्याशी को कम से कम 25 वर्ष का होना चाहिए। उसका निर्वाचन मतदान द्वारा 80,000 व्यक्ति करते हैं। सीनेट के सदस्यों का चुनाव छह वर्ष के लिए क्षेत्रीय आधार पर किया जाता है। प्रत्येक क्षेत्र में कम से कम छह सीनेटर चुने जाते हैं और हर एक सीनेटर दो लाख मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करता है। किंतु वाल द"ओस्ता क्षेत्र से केवल एक ही सीनेटर का निर्वाचन होता है। राष्ट्रपति पाँच ऐसे व्यक्तियों को जीवन भर के लिए सीनेट के सदस्य मनोनीत कर सकता है जो समाजविज्ञान, कला, साहित्य आदि के क्षेत्र में प्रख्यात एवं जाने माने हों। कार्यकाल समाप्त हो जाने पर इटली का राष्ट्रपति जीवन भर के लिए सीनेट का सदस्य बन जाता है किंतु यह तभी जब वह सदस्य बनने से इनकार न करे। सदन तथा सीनेट के संयुक्त अधिवेशन में दो तिहाई बहुमत से राष्ट्रपति का निर्वाचन किया जाता है किंतु यह तभी जब वह सदस्य बनने से इनकार न करे। सदन तथा सीनेट के संयुक्त अधिवेशन में दो तिहाई बहुमत से राष्ट्रपति का निर्वाचन किया जाता है जिसमें प्रत्येक क्षेत्रीय परिषद् से तीन-तीन सदस्य भी मतदान करते हैं (वाल द"ओस्ता केवल एक) किंतु तीन बार मतदान के बाद भी यदि राष्ट्रपति पद के किसी भी उम्मीदवार को दो तिहाई मत नहीं मिल पाते तो पूर्ण बहुमत पानेवाले प्रत्याशी को राष्ट्रपति चुन लिया जाता है। राष्ट्रपति की आयु 50 वर्ष से ऊपर रहती है। उसका कार्यकाल सात वर्ष का होता है। सीनेट का अध्यक्ष राष्ट्रपति के डिप्टी की हैसियत से कार्य करता है। राष्ट्रपति संसद् के सदनों का विघटन कर सकता है लेकिन कार्यकाल समाप्ति के पूर्व के छह महीनों में उसे यह अधिकार नहीं रहता।
इटली में 15 न्यायाधीशों का एक संवैधानिक न्यायालय होता है जिसके पाँच न्यायाधीशों को राष्ट्रपति, पाँच को संसद् (दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन में) तथा पाँच को देश के सर्वोच्च न्यायालय (विधि तथा प्रशासन संबंधी) नियुक्त करते हैं। इटली के संवैधानिक न्यायालय को लगभग वैसे ही अधिकार प्राप्त हैं, जैसे अमरीका के सर्वोच्च न्यायालय को।