इज्तिमा
अरबी लफ्ज़ इज्तिमा[1] के मायने है 'इकठ्ठा होना'। एक खास जगह पर इकट्ठा होकर इबादत करना , खैर-बरक़त की दुआ करना ,गुनाहों की माफी माँगना और दीनी बातें करना इज़्तिमा का हिस्सा है। ये जानकारी गलत है कि इज्तिमा सौ साल पहले ही शुरू हुआ बल्कि इज्तिमा तो सदियों पुरानी परंपरा है। दरअसल ये सिलसिला हजरत आदम के जमाने से चलन में है।
सबसे पहला इज्तिमा
हजरत आदम ने अपने बेटे क़ाबिल और हाबिल को अक्लीमा से शादी करने से पहले एक जगह जमा करके दीनी बातें बताई । उस वक़्त दुनिया में ज्यादा आबादी नहीं थी । हक़ और नाहक समझाया । अल्लाह से दुआ करने का तरीका बताया फिर दोनों बेटों ने अल्लाह की राह में तबर्रुकात (भेंट) पेश किए। आसमान से आग नमूदार हुई। हाबिल की दुआ कुबूल हुई। इसी बात से नाराज होकर काबिल ने हाबिल को मार डाला। बाद के सभी नबियों ने भी इस्लाम का प्रचार-प्रसार करने के लिए अपना घर , शहर , देश तक छोड़ दिया। हिजरत और तब्लीग इस्लाम का अहम हिस्सा हैं ।
हजरत इब्राहीम के समय
हजरत इब्राहीम ने इराक़ से मिश्र , फिलिस्तीन फिर अरब जैसे दूर-दराज मुल्कों में भी जाकर धर्म प्रचार (तब्लीग) किया। बाबुल से निकलते वक्त हजरत इब्राहिम अकेले थे । हजरत इब्राहीम ने अपने मामू की बेटी सारा से शादी की। आपके बाद सारा भी ईमान ले आती है। हजरत लूत आपके भतीजे है। आप इराक से हिजरत करके मिश्र जाते हैं वहाँ हाजरा आपके साथ शामिल हो जाती है। इस तरह ईमान वालों का काफिला बढ़ता है। इतना लम्बा सफर तय करने पर भी ईमान वाले सिर्फ ये चार लोग ही रहते हैं। हजरत इब्राहीम ,हजरत लूत, सारा और हाजरा। फिलिस्तीन जाकर आप इज्तिमा करते हैं। लोग जुड़ने लगते है। इब्राहिम अल्लाह से दुआ करते हैं।अल्लाह दुआ कुबूल करता है। इब्राहिम से अल्लाह वादा करता है जितने आआस्मान में सितारें नहीं होंगे उससे भी ज्यादा दुनिया में तुम्हारी ओलादें होंगी। सुभान अल्लाह दुनिया के प्रसिद्ध मजहब यहूदी, ईसाई और इस्लाम सभी हजरत इब्राहीम को अपना नबी मानते है। इसका मतलब ये हुआ कि दुनिया के कोने-कोने में इब्राहिम की औलादें आबाद है। अल्लाह की राह में तब्लीग और इज्तिमा करने वाले इब्राहिम को अल्लाह ने खास मंसब से नवाजा। आप अल्लाह के दोस्त कहलाए। हबीबुल्लाह हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ।
हजरत मोहम्मद स0आ0स0 ने भी की तब्लीग और इज्तिमा
प्यारे नबी ने कई बार तब्लीग की । नबूवत के 10 वे साल आपने ताइफ़ शहर का सफर किया। ज्यादा से ज्यादा लोग इस्लाम में दाखिल हो और इस्लाम की ताक़त बढ़े , ये सोचकर आप ताइफ़ शहर के तीन सरदारों से मिले। लेकिन ताइफ़ के जाहिल लोगों ने माज़अल्लाह आपको गालीयां दी , पत्थरों से मारा । नबी करीम के जूते खून से लाल हो गए। फिर भी आपने ताइफ़ के लोगों के लिए बद्दुआ नहीं की। आज भी हालात वही है । अल्लाह की राह में निकलने वालों को गालीयां दी जा रही है , ताने कसे जा रहे हैं , बोहतान लगाये जा रहे हैं । इज्तिमा की जगह दूसरे काम करने की तजवीज़ हो रही है । प्यारे नबी ने भी तब्लीग की है । बहुत से सहाबाओ ने तब्लीग करके इस्लामी झंडा बुलंद किया।
अराफ़ात के मैदान में 10 हिजरी में प्यारे नबी ने इज्तिमा किया । अपने आखरी ख़ुत्बे में फ़तेह मक्का के मौके पर अल्लाह के रसूल ने इज्तिमा करके मक्का वालों की तब्लीग की। इज्तिमा के दिन काबा शरीफ की छत पर चढ़कर हजरत बिलाल ने अज़ान दी। एक लाख से ज्यादा मुसलमान इकट्ठा थे । प्यारे नबी ने सभी से मुख़ातिब होकर तक़रीर की , दीनी बातें बताई । आखिर में प्यारे नबी ने अल्लाह को गवाह करके दुआ भी की। ये बात इस्लाम जानने वाला हर शख्स जानता है ।
जिस तरह नबूवत के साल आपने तब्लीग की ठीक उसी तरह संयोग से 10 हिजरी में आपने अराफ़ात के मैदान में इज्तिमा किया । लाखों लोग इकट्ठा हुए।
अराफ़ात के मैदान में इज्तिमा
दूसरा उदाहरण गौर करे । हज के मौके पर तमाम हाजी अराफ़ात के मैदान में इकट्ठा होते हैं । जोहर और असर की नमाज साथ में पढ़ते है इज्तिमाई दुआ करते हैं। अराफात के पहाड़ पर गुनाहों की माफी माँगी जाती है । रो-रोकर दुआ होती है। दुनिया के कोने-कोने से लाखों लोग आते हैं । इब्राहिम अलैह0 के जमाने से लेकर आज तक अराफ़ात के मैदान में इज्तिमा हो रहा है । अराफ़ात के मैदान में रुकना , नमाज पढ़ना , इकट्ठा होकर दुआ करना हज का ये अरकान असल में इज्तिमा ही है । इससे कैसे इंकार करोगे? अगर अराफात के मैदान में इज्तिमाई दुआ से करने मना कर दोगे तो हज ही ना होगा।
जो लोग इज्तिमा की मनादी कर रहे हैं । इज्तिमा से नाक-मुंह सिकोड़ रहे हैं वो हज के दौरान इस इज्तिमें भी शामिल ना हो तो जाने ।
सूफी-संतों द्वारा इज्तिमा
भारत में आए सबसे पहले वली अल्लाह हजरत अब्दुल्लाह शाह गाज़ी कराची हो या फिर शाह चंगाल धार , मदार शाह मकनपुर या गरीब नवाज़ इन सभी ने कई मुल्कों का सफर तय करके दीनी तब्लीग की । इज्तिमा करके ही वलियों ने लाखों लोगों को इस्लाम में दाखिल किया है । इनकी नजरे करम पर ही लाखों लोगों ने कलमा पड़ा। अल्लाह के वली अगर इज्तिमा की जगह एक-एक को इस्लामी दावत देते तो हजारों साल लग जाते। गरीब नवाज रह0 भी तलबिग करते हुए अपने 40 साथियों के साथ अजमेर आए।
तब्लीग और इज्तिमा से भारत में इस्लाम फैला ।
हिंदुस्तान में जब तक इस्लामी सल्तनत कायम रही। सब ठीकठाक चलता रहा। किसी की चु करने की हिम्मत नहीं हुई।
वर्तमान इज्तिमा की शुरुआत कैसे हुई
आज से 100 साल पहले भारत में इज्तिमा का वर्तमान रूप एक घटना के बाद सामने आया । जब नवंबर, 1922 में तुर्की में मुस्तफ़ा कमालपाशा ने सुल्तान ख़लीफ़ा महमद षष्ठ को हटा कर अब्दुल मजीद आफ़ंदी को खलीफा बनाया उसके सारे राजनीतिक अधिकार हड़प लिए तब जिन्ना और गाँधीजी की ख़िलाफ़त कमेटी ने 1924 में विरोधप्रदर्शन के लिए एक प्रतिनिधिमंडल तुर्की भेजा।
राष्ट्रीयतावादी मुस्तफ़ा कमाल ने उसकी सर्वथा उपेक्षा की और जलन और द्वेष में आकर 3 मार्च 1924 को उन्होंने ख़लीफ़ा का पद ख़त्म कर ख़िलाफ़त का हमेशा-हमेशा के लिए अंत कर दिया।
1924 में ख़िलाफ़त हमेशा-हमेशा के लिए मिट गई । मुसलमानों का संगठन बिखर गया।
फिर क्या था गैर मुस्लिमों के पंख निकल आए । देशभर में आर्य समाज की ओर से घर वापसी अभियान चलाया गया यानि जिन लोगों ने इस्लाम कुबूल करके इस्लाम मजहब अपनाया था उन्हें जबरन हिन्दू बनाया जाने लगा। सभा करके मुस्लिमों को भड़काने लगे। इस्लाम का दुष्प्रचार कर भोलेभाले मुसलमानों के ईमान से खेलने लगे। दूरदराज के गांव और देहात में रहने वाले कम पढ़े-लिखे मुसलमानों को अपने धर्म में बनाए रखने और उन्हें धार्मिक तौर पर शिक्षित करने के लिए इस आन्दोलन की शुरुआत की गई, जिसे आजकल लोग तब्लीगी जमात कहते हैं ।
खैर इस आंदोलन का असर हुआ। मुसलमानों ने हिंदुस्तान में जगह -जगह इकट्ठा होकर इज्तिमा किया । नमाज के साथ दुआ और दीन की बातें सिखाई। धीरे-धीरे लोगों को इस्लामिक जानकारी मिलने लगी। अनपढ़ मुसलमानों ने अल्लाह को पहचाना । इसका फायदा ये हुआ कि मुसलमानों ने अपने धर्म को नहीं छोड़ा।
कहाँ-कहाँ होता है इज्तिमा
इज्तिमा आंदोलन के 25 साल बाद । 1947 में देश का बंटवारा हो गया। हिंदुस्तान के तीन टुकड़े हो गए। पाकिस्तान ,भारत और बांग्लादेश जैसे नए देश बन गए। इसलिए दुनिया के सबसे बड़े 3 इज्तिमें इन 3 मुल्कों में होते हैं । अब ये आंदोलन दुनियाभर के 213 देशों तक फैल चुका है। हिंदुस्तान के भोपाल शहर के अलावा ये उत्तरप्रदेश के बुलन्दशहर में भी आयोजित होता है। जहां लोग इकट्ठा होकर नमाज पढ़ते है ,दीन की बातें करते हैं फिर दुआ करते हैं। लाखों लोग एक जगह इकट्ठा होकर दुआ करते हैं तो अल्लाह जरूर कुबूल करता है और नमाज भी पढ़े तो सुभान अल्लाह क्या आलम होगा?
इंदौर के खजराना में भी हुआ है इज्तिमा
20 साल पहले इंदौर के खजराना स्थित नाहरशाह वली दरगाह के मैदान में भी इज्तिमा की शुरुआत हुई थी। बाद में रुक-रुक कर ये सिलसिला चला फिर थम गया । ये इज्तिमा तो नाहरशाह दरगाह की जानिब से था फिर इज्तिमा को तब्लीग से जोड़ना क्या मुनासिब है? लोगों को सोचना चाहिए तब्लीग और इज्तिमा इस्लाम का खास हिस्सा है । इस पर अमल करके पैगम्बरों और अल्लाह के वलियों ने लोगों को अल्लाह की तरफ बुलाया अल्लाह मुझे और आपको दीन समझने के साथ सिराते मुस्तकीम पर चलने की नेक तौफ़ीक़ अता फरमाए। दुआ की दरख्वास्त:-जावेद शाह खजराना
- ↑ "इज्तिमा यानी धार्मिक जमावड़ा". Cite journal requires
|journal=
(मदद)