इंजील
इंजील शब्दावली के अनुसार ईसा के सुसमाचार को कहा जाता है। कुरान के अनुसार, इंजील अल्लाह द्वारा इंसानियत को दी गई चार पवित्र ग्रंथों में से एक है। जिनमें अन्य 3 हैं ज़बूर, तौरात और कुरान। मान्यता अनुसार ईसा को, जिन्हें नबी और इस्लाम का एक पैगंबर माना जाता है, अल्लाह ने इंजील का इल्हाम दिया था। कुरान, हदीस और अन्य तमाम पुराने इस्लामी दस्तावेजों में इस शब्द का प्रयोग एक किताब तथा अल्लाह द्वारा ईसा को प्रकट हुए तमाम इल्हाम का बोध कराने के लिए किया गया है।
नामकरण
"इंजील" एक अरबी शब्द है, जोकि यूनानी शब्द यूआनजेलिऑन (εὐαγγέλιον) से आता है, जिसका अर्थ है, "अच्छी खबर", यह दो यूनानी शब्दों से आया है: εὖ (यू) "शुभ" + ἄγγελος (आंजेलोस) "संदेशवाहक"। इस शब्द का उपयोग ईसाई लोग, यीशु मसीह के आने की "अच्छी खबर" के लिए किया करते थे। इसी शब्द को लैटिन भाषा के अपभ्रंशों में evangelium (एवाञ्जेलियम) के रूप में अपना लिया गया, जिसे यूरोप के अन्य भाषाओँ में सम्मिलित कर लिया गया। अंग्रेजी में अनुवाद में, इसे गूड्सपील (gōdspel) के रूप में अनुवादित किया गया, जो मध्यकालीन अंग्रेजी में "गॉस्पेल" (Gospel) के रूप में अपना लिया गया। अरबी भाषा में यूआनजेलिऑन शब्द अरमानी भाषा के ज़रिए आया, जिसमें इसे अवोंजलियून (awongaleeyoon ܐܘܢܓܠܝܘܢ) बन गया, तथा वहां से अरबी में इंजील (انجیل)।[1][2]
परिचय
मुसलमानों का मानना है कि इंजील, अल्लाह द्वारा, ईसा को दिए गए एक सच्चे सुसमाचार का नाम था, जिसे ईसा पर उसी प्रकार प्रकट किया गया था जैसे क़ुरान को मुहम्मद पर।
मुसलमान इस बात से इनकार करते हैं कि ईसा या किसी भी अन्य व्यक्ति ने इंजील को लिखा था बल्कि वे मानते हैं कि इंजील अल्लाह द्वारा ही लिखी गई किताब थी जिसे ईसा पर नाज़िल किया गया था। इस्लामी मान्यता के अनुसार बाइबल में मौजूद इंजील में समय समय पर परिवर्तन और फेर-बदल होता गया, तथा उसमें कुछ आयतें जोड़ दी गईं एवं कुछ आयतों को दाब दिया गया। जिसके वजह से बाइबल में मौजूद इंजील अपने असल रूप में नहीं है, जैसा अल्लाह द्वारा ईसा को नाज़िल किया गया था। इस्लामिक तौहीद (केवल एक ईश्वर) के सिद्धांत के अनुसार ईश्वर की दैवित्व सम्पूर्ण है, और उसका अस्तित्व तीन रूपों में नहीं हो सकता, जैसा ईसाई त्रित्व में माना जाता है। तौहीद के अनुसार ईसा ईश्वर के पुत्र और अवतार नहीं हो सकते, जैसा ईसाई मानते हैं। बहरहाल बाइबल को फिरभी एक ऐतिहासिक स्रोत माना जाता है।