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आलवार सन्त

कुलशेखर आलवार

आलवार (तमिल: ஆழ்வார்கள்) ([aːɻʋaːr] ; अर्थ : ‘भगवान में डुबा हुआ' [1]) तमिल कवि एवं सन्त थे। इनका काल ६ठी से ९वीं शताब्दी के बीच रहा। उनके पदों का संग्रह "दिव्य प्रबन्ध" कहलाता है जो 'वेदों' के तुल्य माना जाता है। आलवार सन्त भक्ति आन्दोलन के जन्मदाता माने जाते हैं।


विष्णु या नारायण की उपासना करनेवाले भक्त 'आलवार' कहलाते हैं। इनकी संख्या 12 हैं। उनके नाम इस प्रकार है -

(1) पोय्गै आलवार
(2) भूतत्तालवार
(3) पेयालवार
(4) तिरुमालिसै आलवार
(5) नम्मालवार
(6) मधुरकवि आलवार
(7) कुलशेखरालवार
(8) पेरियालवार
(9) आण्डाल
(10) तोण्डरडिप्पोड़ियालवार
(11) तिरुप्पाणालवार
(12) तिरुमंगैयालवार।

इन बारह आलवारों ने घोषणा की कि भगवान की भक्ति करने का सबको समान रूप से अधिकार प्राप्त है। इन्होंने, जिनमें कतिपय निम्न जाति के भी थे, समस्त तमिल प्रदेश में पदयात्रा कर भक्ति का प्रचार किया। इनके भावपूर्ण लगभग 4000 गीत मालायिर दिव्य प्रबन्ध में संग्रहित हैं। दिव्य प्रबन्ध भक्ति तथा ज्ञान का अनमोल भण्डार है। आलवारों का संक्षिप्त परिचय नीचे दिया जा रहा है-

प्रथम तीन आलवारों में से पोरगे का जन्मस्थान काँचीपुरम, भूतन्तालवार का जन्मस्थन महाबलिपुरम और पेयालवार का जन्म स्थान चेन्नै (मैलापुर) बतलाया जाता है। इन आलवारों के भक्तिगान 'ज्ञानद्वीप' के रूप में विख्यात हैं। मद्रास से 15 मील दूर तिरुमिषिसै नामक एक छोटा सा ग्राम है। यहीं पर तिरुमिष्सिे का जन्म हुआ। मातापिता ने इन्हें शैशवावस्था में ही त्याग दिया। एक व्याध के द्वारा इनका लालन-पालन हुआ। कालांतर में ये बड़े ज्ञानी और भक्त बने। नम्मालवार का दूसरा नाम शठकोप बतलाया जाता है। पराकुंश मुनि के नाम से भी ये विख्यात हैं। आलवारों में यही महत्वपूर्ण आलवार माने जाते हैं। इनका जन्म ताम्रपर्णी नदी के तट पर स्थित तिरुक्कुरुकूर नामक ग्राम में हुआ। इनकी रचनाएँ दिव्य प्रबंधम् में संकलित हैं। दिव्य प्रबंधम् के 4000 पद्यों में से 1000 पद्य इन्हीं के हैं। इनकी उपासना गोपी भाव की थी। छठे आलवार मधुर कवि गरुड़ के अवतार माने जाते हैं। इनका जन्मस्थान तिरुक्कालूर नामक ग्राम है। ये शठकोप मुनि के समकालीन थे और उनके गीतों को मधुर कंठ में गाते थे। इसीलिये इन्हें मधुरकवि कहा गया। इनका वास्तविक नाम अज्ञात है। सातवें आलवार कुलशेखरालवार केरल के राजा दृढ़क्त के पुत्र थे। ये कौस्तुभमणि के अवतार माने जाते हैं। भक्तिभाव के कारण इन्होंने राज्य का त्याग किया और श्रीरंगम् रंगनाथ जी के पास चले गए। उनकी स्तुति में उन्होंने मुकुंदमाला नामक स्तोत्र लिखा है। आठवें आलवार पेरियालवार का दूसरा नाम विष्णुचित है। इनका जन्म श्रीविल्लिपुत्तुर में हुआ। आंडाल इन्हीं की पोषित कन्या थी। बारह आलवारों में आंडाल महिला थी। एकमात्र रंगनाथ को अपना पति मानकार ये भक्ति में लीन रहीं। कहते हैं, इन्हें भगवान की ज्योति प्राप्त हुई। आंडाल की रचनाएँ निरुप्पाबै और नाच्चियार तिरुमोषि बहुत प्रसिद्ध है। आंडाल की उपासना माधुर्य भाव की है। तोंडरडिप्पोड़ियालवार का जन्म विप्रकुल में हुआ। इनका दूसरा नाम विप्रनारायण है। बारहवें आलवार तिरुमगैयालवार का जन्म शैव परिवार में हुआ। ये भगवान की दास्य भावना से उपासना करते थे। इन्होनें तमिल में छ ग्रंथ लिखे हैं, जिन्हें तमिल वेदांग कहते हैं।

इन आलवारों के भक्तिसिद्धांतों को तर्कपूर्ण रूप से प्रतिष्ठित करने वाले अनेक आचार्य हुए हैं जिनमें रामानुजाचार्य और वेदांतदेशिक प्रमुख हैं।

परिचय

जब-जब भारत में विदेशियों के प्रभाव से धर्म के लिए खतरा उत्पन्न हुआ, तब-तब अनेक संतों की जमात ने लोक मानस में धर्म की पवित्र धारा बहाकर, उसकी रक्षा की। दक्षिण के आलवार संतों की भी यही भूमिका रही है। ‘आलवार’ का अर्थ है ‘जिसने अध्यात्म ज्ञान रूपी समुद्र में गोता लगाया हो।’ आलवार संत गीता की सजीव मूर्ति थे। वे उपनिषदों के उपदेश के जीते जागते नमूने थे।

आलवार संतों की संख्या बारह मानी गई है। उन्होंने भगवान नारायण, राम, कृष्ण आदि के गुणों का वर्णन करने वाले हजारों पद रचे। इन पदों को सुन-गाकर आज भी लोग भक्ति रस में डुबकी लगाते हैं। आलवार संत प्रचार और लोकप्रियता से दूर रहे। ये इतने सरल और सीधे स्वभाव के संत थे कि न तो किसी को दुःख पहुंचाते न ही किसी से कुछ अपेक्षा करते।

उन्होंने स्वयं कभी नहीं चाहा, न ही इसका प्रयास किया कि लोग उनके पदों को जानें। ये आलवार संत भिन्न-भिन्न जातियों में पैदा हुए थे, परंतु संत होने के कारण उन सबका समान रूप से आदर है। क्योंकि इन्हीं के कथनानुसार संतों का एक अपना ही कुटुम्ब होता है, जो सदा भगवान में स्थित रहकर उन्हीं के नामों का कीर्तन करता रहता है। वास्तव में नीच वही है, जो भगवान नारायण की प्रेम सहित पूजा नहीं करते।

आलवार संत स्वामी, पिता, सुहृद, प्रियतम तथा पुत्र के रूप में नारायण को ही भजते थे। और नारायण से ही प्रेम करते थे। ‘‘मेरा हृदय स्वप्न में भी उनका साथ नहीं छोड़ता है। जब तक मैं अपने स्वरूप से अनभिज्ञ था, तब तक ‘मैं’ और ‘मेरे’ के भाव को ही पुष्ट करता रहता था। परंतु अब मैं देखता हूं कि जो तुम हो वही मैं हूं, मेरा सब कुछ तुम्हारा है, अत: हे प्रभो! मेरे चित्त को डुलाओ नहीं, उसे सदा अपने पादपद्मों से दृढ़तापूर्वक चिपकाए रखो।’’ आलवार संतों की वाणी तथा भक्ति इसी प्रकार की थी।

क्रम संख्याआलवार सन्तजीवनकाल (आधुनिक मत)[2]जीवनकाल (परम्परागत मत)[3][4] एवं स्थानरचनाएँमास (तमिल)नक्षत्रअवतार
1 Poigai Alvar713 CE 4203 BCE, काँचीपुरमMudhal Thiruvandhadhi, 100 verses. Aiypasseeश्रावणपाञ्चजन्य (विष्णु का शंख)
2 Bhoothathalvar713 CE 4203 BCE, महाबलिपुरम्Irandam Thiruvandhadhi, 100 verses. Aiypassee Avittam (Dhanishta)कौमोदकी
3 पेयालवार713 CE 4203 BCE, MylaporeMoondram Thiruvandhadhi, 100 verses. AiypasseeSadayam (Satabhishak)नन्दक (विष्णु की तलवार)
4 Thirumalisai Alvar720 CE 4203 BCE ThirumazhisaiNanmugan Thiruvandhadhi, 96 verses; ThiruChanda Virutham, 120 verses. ThaiMagam (Maghā)सुदर्शन चक्र
5
नम्मालवार798 CE 3102/3059[5] Azhwar Thirunagari (Kurugur)Thiruvaymozhi, 1102 verses; Thiruvasiriyam, 7 verses; Thiruvirutham, 100 verses; Periya Thiruvandhadhi, 87 verses. VaikasiVishaakam (Vishākhā)विश्वकसेन (विष्णु के सेनापति)
6 मधुरकवि आलवार800 CE 3102 BC, Thirukollur Kanninun Siruthambu, 11 verses. ChitthiraiChitthirai (Chithra)गरुड़
7 King Kulasekhara Alvar767 CE 3075 BC, Thiruvanchikkulam, Later Chera kingdomPerumal Thirumozhi, 105 verses. MaaseePunar Poosam (Punarvasu)कौस्तुभ
8 पेरियावरार785 CE 3056 BC, SrivilliputhurPeriyazhwar Thirumozhi, 473 verses. Aaniस्वातिगरुड़
9 आण्डाल767 CE 3005 BC, Srivilliputhur Nachiyar Thirumozhi, 143 verses; Thiruppavai, 30 verses. AadiPooram (Pūrva Phalgunī (Pubbha))भूदेवी (विष्णु-पत्नी तथा पृथ्वीदेवी)
10 Thondaradippodi Alvar726 CE 2814 BCE, Thirumandangudi Thirumaalai, 45 verses; Thirupalliezhuchi, 10 verses. Margazhiज्येष्ठावैजयन्ती (विष्णु की माला)
11 Thiruppaan Alvar781 CE 2760 BCE, UraiyurAmalan Adi Piraan, 10 verses. Karthigaiरोहिणीश्रीवत्स (विष्णु के वक्ष पर स्थित पवित्र चिह्न)
12 Thirumangai Alvar776 CE 2706 BCE, Thirukurayalur Periya Thirumozhi, 1084 verses; Thiru Vezhukootru irukkai, 1 verse; Thiru Kurun Thandagam, 20 verses; Thiru Nedun Thandagam, 30 verses. Kaarthigaiकृतिकाशारंग (विष्णु का धनुष)

सन्दर्भ

  1. "Meaning of Alvar" Archived 2010-01-24 at the वेबैक मशीन ramanuja.org. Retrieved 2007-07-02.
  2. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; Chari नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  3. "Ancient India: Collected Essays on the Literary and Political History of Southern India Archived 2017-04-20 at the वेबैक मशीन", by Sakkottai Krishnaswami Aiyangar, p. 403-404, publisher = Asian Educational Services
  4. "Music and temples, a ritualistic approach", by L. Annapoorna, p. 23, year = 2000, isbn = 9788175740907
  5. "History of Classical Sanskrit Literature Archived 2014-06-26 at the वेबैक मशीन", by M. Srinivasachariar, p. 278, isbn=9788120802841

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ