आर्क वेल्डन
आर्क वेल्डन (work shop mechanical engineering) (Arc Welding) विधि में जोड़ी जानेवाली वस्तुओं की टक्करों को गलाने के लिए एक इलेक्ट्रोड तो वेल्डन की बत्ती के रूप में होता है और दूसरा उन जोड़नेवाले भागों के रूप में होता है तथा इन दोनों इलेक्ट्रोडों के बीच में विद्युत् आर्क स्थापित कर, आवश्यक ऊष्मा प्राप्त कर ली जाती है। इस काम के लिए दिष्ट और प्रत्यावर्ती किसी भी धारा का प्रयोग किया जा सकता है, लेकिन दिष्ट धारा अधिक सुविधाजनक रहती है।
वेल्डन के इलेक्ट्रोड
इलेक्ट्रोड दो प्रकार के होते हैं : (1) कार्बन के और (2) धातु के। धातु के इलेक्ट्रोड भी तीन प्रकार के होते हैं: (1) नंगे, (2) ढँके और (3) पोले। धातु के इलेक्ट्रोड की अधिक काम में आते हैं। कार्बन के इलेक्ट्रोड तो कुछ स्वचालित यंत्रो में ही प्रमुख होते हैं। जिन इलेक्ट्रोडों में 0.9 प्रतिशत से अधिक मैंगनीज़ मिला होता है, वे भी अच्छा काम देते हैं। इसी प्रकार ऐलुमिनियम की वेल्डन की बत्तियाँ भी अच्छा काम देती हैं।
विद्युत् धारा का विभवत्व (Electric voltage)
यह धातु की बत्तियों के साथ 18 से 30 वोल्ट और कार्बन के साथ 80 से 100 वोल्ट तक रखा जाता है। यह आर्क की लंबाई के अनुसार ही घटता बढ़ता रहता है और उसी के अनुपात से गलित धातु का जमाब भी होता है। हाथ से वेल्डन करने के उपकरणों में बहुधा 20 से 300 ऐंपीयर तक की धारा का प्रयोग किया जाता है, लेकिन स्वचालित यंत्रों में वह 1,200 ऐंपियर तक पहुँच जाता है।
इलेक्ट्रोडों की मोटाई
धातु के इलेक्ट्रोड 1/16 इंच से 3/8 इंच व्यास के और 12 इंच से 18 इंच तक लंबे होते हैं तथा कार्बन के इलेक्ट्रोड 5/32 इंच से 1 इंच व्यास के और 12 इंच लंबे होते हैं। विद्युत् धारा का प्रवाह इलेक्ट्रोड के कार्य और मोटाई के अनुसार ही होना चाहिए।
यदि धारा का प्रवाह हलका होगा, तो इलेक्ट्रोड की धातु झिरियों में प्रवेश नहीं करेगी और वेल्डनवाली सतह भी नहीं गलेगी। यदि प्रवाह बहुत तेज होगा, तो इलेक्ट्रोड की धातु जल जाएगी और जोड़ कमजोर पड़ जाएगा। फिर भी यही उचित है कि विद्युत् धारा की गति अनुपात से मंद रखने की अपेक्षा कुछ तेज ही रखी जाए। ढँके हुए इलेक्ट्रोडों में अधिक तेज धारा प्रवाहित करने से उसकी गली धातु पर स्लैग नहीं आने पाता, जो उसकी रक्षा के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। वह बहुत श्यान प्रकृति का होता है। इस स्लैग का गली धातु के भीतर ही कैद हो जाने का डर रहता है। नंगे इलेक्ट्रोडों का प्रयोग करने से, उसकी धातु गलकर बड़ी बड़ी बूँदों के रूप में जोड़ने की जगह पर जम जाती है, जिससे विद्युत् आर्क लघुपथम (short circuit) करन लगता है ढँक इलेक्ट्रोडों से छोटी बूँदें निकलती हैं, धारा एकरस चलती है और लघुपथन भी नहीं होता।
वेल्डन की विधि
वेल्डन किए जाने वाली तल की रेखा से इलेक्ट्रोड को 60 से 75 अंश के कोण तक झुका हुआ रखना चाहिए। अपने सिर के ऊपर (overhead) के जोड़ों को झालते समय बत्ती का कोण 60 से 90 अंश तक रखा जाता है।
- जोड़ों को तैयार करना
वेल्डन के पहले जोड़ों को तैयार करना बड़े ही महत्त्व की बात है और इसी पर वेल्डन की सफलता निर्भर करती है।
18 गेज अथवा उससे कम मोटाई की चादरों के वेल्डनवाले किनारों को थोड़ा मोड़ दिया जात है, जिससे उनके वेल्डन के समय बत्ती की आवश्यकता नहीं पड़ती। इनसे मोटे, अर्थात् 3/16 इंच से 1/4 इंच तक मोटाई के, प्लेटों में भी कोई खांचा डालने की आवश्कता नहीं पड़ती, लेकिन इनसे अधिक मोटे प्लेटों के झाले जाने वाले किनारों पर चित्र 1. की आकृति क से च तक दिखाए अनुसार आकार क खाँचा, आधा आधा दोनों भागों में काटकर, तैयार करना चाहिए। कुछ लोग आकार का खाँचा काटना भी पसंद करते हैं। आकृति च में दोनों तरफ खाँचा काटा गया है। खाँचे के बीच का कोण प्राय: 60 डिग्री से 90 डिग्री तक बनाया जात है। इस विधि में भी दाहिने हाथ और बायें हाथ का वेल्डन करने का रिवाज है। सकरे कोण के साथ सीधे हाथ के वेल्डन में सुविधा रहती है और बाएँ हाथ की झाल लगाने के लिए चौड़े कोण की आवश्यकता होती है। दाएँ और बाएँ का भेद समझने के लिए देखें गैस द्वारा वेल्डन। चित्र 1. की आकृति क से च तक खाँचा बनाते समय दोनों प्लेटों के बीच कुछ फासला स्वत: रह जाता है, जो बड़े महत्त्व की चीज है। अधिक फासला रखने से गली हुई धातु नीचे गिर जाती है तो फिर वेल्डन करना कठिन हो जाता है और कम फासला छोड़ने से प्लेटों की जड़ तक धातु नहीं पहुँचने पाती। अत: पतले प्लेटों में तो फासला लगभग 1/16 इंच चौड़ा और 2 इंच मोटाई तक के प्लेटों में उसे क्रमश: बढ़ाते हुए 3/16 इंच तक कर दिया जाता है। समकोण पर रखकर झाले जानेवाले प्लेटों को थाई (फिलेट) का जोड़ कहते हैं, जो चित्र 1. की थ से प तक की आकृतियों में दिखाया गया है। ऊपर नीचे रखकर जोड़े जानेवाले प्लेटों की भी धाइयाँ झाली जाती है, जैसा चित्र 1. के ट और ठ में दिखाया गया है, इनके लिए किसी प्रकार का खाँचा काटना आवश्यक नहीं है। आकृति छ और ज में एकहरी पट्टी का जोड़ है और झ में दोहरी पट्टी का, जिसे "बट" जोड़ भी कहते हैं। वेल्डन करते समय पतले प्लेटों में जिनकी मोटाई लगभग 3/16 इंच होती है, तो झलाई के एक दौरे (run) से भी काम चल जाता है। अधिक मोटी चीजों के वेल्डन में सीधी ओर उलटी कई परत लगानी होती है जिसमें उनका खाँचा पूरा भर जाए।
बाहरी कड़ियाँ
- Arc Flash Awareness video (25:39) from U.S. National Institute for Occupational Safety and Health
- The American Welding Society
- Canadian Welding Association
- The Welding Institute