आपत्तिखण्डन
ईसाई धर्मशास्त्र में धार्मिक सिद्धांतों या विश्वासों के समर्थन में लिखे गए निबंधों को सामूहिक रूप में अपोलोजेटिक्स (Apologetics) का नाम दिया गया। इस शब्द की व्युत्पत्ति ग्रीक 'अपोलोजेटिकोस्' से है जिसका अर्थ है 'समर्थन के योग्य वस्तु'। ग्रेट ब्रिटेन में इस प्रकार के धार्मिक साहित्य को 'एविडेन्सेज़ ऑव रेलिजन' (धर्म के प्रमाण) भी कहते हैं, परंतु अधिकतर ईसाई देशों में अपोलोजेटिक्स शब्द ही सामान्यत: प्रचलित है।
वैसे तो किसी भी धर्म के अपौरुषेय अंग की हिमायत 'अपोलोजेटिक्स' के क्षेत्र में आती है, लेकिन धार्मिक साहित्य परंपरा में कैथोलिक सिद्धांतों के समर्थन में ही इस शब्द का प्रयोग किया गया है। आधुनिक युग में जर्मनी के अतिरिक्त किसी अन्य देश में यह परंपरा सशक्त नहीं रही। इस तरह के साहित्य का अब निर्माण नहीं होता और न उसकी आवश्यकता ही रह गई है। रोमन नागरिकों, अधिकारियों तथा लेखकों द्वारा ईसा मसीह के विरुद्ध की गई आपत्तियों का खंडन करना ही 'अपोलोजेटिक्स' का उद्देश्य था। इस उद्देश्य से ईसाई धर्मपंडितों ने लंबे 'पत्र' लिखे जिनमें से अधिकतर तत्कालीन रोमन सम्राटों को संबोधित किए गए। इस प्रकार के पत्र को 'अपोलोजी' कहते थे।
सबसे पहली 'अपोलोजी' क्वाद्रेतस ने सम्राट् हाद्रियन (117 से 138 ई. तक) के नाम लिखी, उसके बाद परिस्टिडीज़ और जस्तिन ने सम्राट् अंतोनाइनस (सन् 138 से 161 तक) के नाम ऐसे ही पत्र लिखे। इनमें जस्तिन की अपोलोजी सबसे अधिक ख्यातिप्राप्त है। यद्यपि इसमें ऐतिहासिक दृष्टि से अनेक अशुद्धियाँ हैं, फिर भी ईसाई धर्म के अनेक विवादग्रस्त सिद्धांतों का इसमें प्रभावशाली समर्थन मिलता है। सम्राट् मार्कस ओरिलियस (सन् 169 से 177तक) के शासनकाल में, मेलितो तथा एपोलिनेरिस की रचनाओं में, 'अपोलोजेटिक्स' का चरम विकास हुआ। इसके बाद भी सदियों इस तरह के लेख लिखे गए, परंतु उनका विशेष महत्त्व नहीं है। मध्युगीन अपोलोजेटिक्स में कृत्रिमता और शाब्दिक ऊहापोह तर्क की अपेक्षा अधिक है।
जिन ऐतिहासिक पुस्तकों में 'अपोलोजेटिक्स' का विस्तृत वर्णन उपलब्ध है उनमें यूसीबिअस का ग्रंथ 'क्रिश्चियन चर्च का इतिहास' विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
बाहरी कड़ियाँ
- CARM - Christian Apologetics and Research Ministry: A General Apologetics Website
- FAIR - Foundation for Apologetic Information & Research