आनन्दबोध
आनंदबोध, शांकर वेदांत के प्रसिद्ध लेखक।
ये संभवत: 11वीं अथवा 12वीं शती में विद्यमान थे। इन्होंने शांकर वेदांत पर कम से कम तीन ग्रंथ लिख थे- "न्यायदीपावली", "न्यायमकरंद" और "प्रमाणमाला"। इनमें से "न्यायमकरंद" पर चित्सुख और उनके शिष्य सुखप्रकाश ने क्रमश: "न्यायमकरंद टीका" और "न्यायमकरंद विवेचनी" नामक व्याख्या ग्रंथ लिखे।
13वीं शती में आनंदज्ञान के गुरु अनुभूतिस्वरूपाचार्य ने भी आनंदबोध के तीनों ग्रंथों पर टीकाएँ लिखीं। इन्होंने कोई मौलिक योगदान नहीं किया। स्वयं आनंदबोध का यह कथन उद्धृत किया जाता है कि उन्होंने अपने समकालीन ग्रंथों से सामग्री एकत्र की। इन्होंने सांख्यकारिका के अनेकात्मवाद का खंडन किया। साथ ही न्याय, मीमांसा और बौद्धमत के भ्रम संबंधी सिद्धांतों का भी खंडन करते हुए उसके अनिर्वचनोयतावाद का समर्थन किया। "अविद्या" से संबंधित आनंदबोध का तर्कणा के संबंध में कहा जाता है कि वह मंडन से ली हुई है। वेदांतमत के परवर्ती लेखकों ने आनंदबोध के तर्कों का अनुसरण किया है; यहाँ तक कि माध्वमत के व्यासतीर्थ ने प्रकाशात्मन के साथ ही आनंदबोध के भी तर्कों का अनुसरण किया है। इससे यह प्रमाणित होता है कि आनंदबोध समकालीन एवं परवर्ती दोनों कालों के लेखकों के लिए प्रेरणास्रोत रहे।