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आदीग्राम कनौणियॉं

आदीग्राम कनौंणियाँ
—  एक ऐतिहासिक गाँव  —
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)
देश भारत
राज्यउत्तराखण्ड
ज़िलाअल्मोड़ा
लिंगानुपात862 /
क्षेत्रफल
ऊँचाई (AMSL)

• 1,010 मीटर (3,314 फी॰)
जलवायु
तापमान
• ग्रीष्म
• शीत
ऑलपाइन आर्द्र अर्ध-उष्णकटिबन्धीय (कॉपेन)
     28 - -2 °C (84 °F)
     28 - 12 °C (70 °F)
     15 - -2 °C (61 °F)
आधिकारिक जालस्थल: almora.nic.in

निर्देशांक: 29°49′54″N 79°16′48″E / 29.831783°N 79.280023°E / 29.831783; 79.280023आदीग्राम कनौंणियाँ रामगंगा नदी के पश्चिमी किनारे पर चौखुटिया ब्लॉक के तल्ला गेवाड़ नामक पट्टी में भारतवर्ष के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले में स्थित कनौंणियाँ बिष्ट नामक उपनाम से विख्यात कुमांऊँनी हिन्दू राजपूतों का एक पुश्तैनी गाँव है। यह अपनी ऐतिहासिक व सॉस्कृतिक विरासत, ठेठ कुमांऊँनी सभ्यता व संस्कृति, पर्वतीय जीवन शैली तथा समतल उपजाऊ भूमि के लिए प्रसिद्ध है। तल्ला गेवाड़ के वर्तमान माँसी में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले ऐतिहासिक सोमनाथ मेले की तत्कालीन ऐतिहासिक आराध्य भूमि, प्रस्तुत आदीग्राम कनौणियाँ का ही पर्याय है।

इतिहास

प्राचीन इतिहास के अनुसार, जैसा कि अाज भी उत्तराखंड के इतिहासकार तथा गेवाड़ घाटी के अधिकॉश अनुभववेत्ता इस इतिहास से भली भॉति सहमत हैं। तल्ला गेवाड़ के सूर्यवंशी ठाकुर मेलदेव कनौणियाँ ने स्वेच्छा से अपने राज्य को कई हिस्सों में विभाजित किया था। जिनमें से कुछों के साक्ष्य सर्वविदित हैं। जैसा कि अपने चार पुत्रों और एक पुत्री में। यानि छ: भागों में विभाजन। पहला विभाजन शीर्ष पुत्र को यह है रामगंगा के पश्चिमी ओर का दक्षिणी भू भाग (कनौंणी), दूसरा विभाजन दूसरे पुत्र को यह है रामगंगा के पश्चिमी ओर का उत्तरी क्षेत्र (डाँग), तीसरा विभाजन तीसरे पुत्र को यह है रामगंगा के पूर्व में राज्य का दक्षिणी भू भाग (काला चौना), चौथा विभाजन चौथे पुत्र को रामगंगा के पश्चिम की ओर आदीग्राम बंगारी और आदीग्राम फुलोरिया के बीच का पठार (आदीग्राम कनौणियाँ ) तथा पॉचवां विभाजन यह है रामगंगा के पूर्वी छोर से लगा आदीग्राम कनौणियाँ के सामने से लेकर काला चौना की सीमा रेखा तक का भू भाग, यह दिया अपनी पुत्री को। जो आज माँसी के नाम से प्रसिद्ध है।

इस प्रकार यह आदीग्राम कनौणियॉ नामक गाँव सूर्यवंशी ठाकुर मेलदेव कनौणियॉ के तीसरे पुत्र को आबंटित भू भाग है। जो आज तल्ला गेवाड़ में रामगंगा नदी के पश्चिमी किनारे पर आदीग्राम फुलोरिया और आदीग्राम बंगारी के बीच बसा आदीग्राम कनौणियाँ नाम से विख्यात है। यहाँ के निवासी कनौणियाँ बिष्ट कहलाने वाले हिन्दू सूर्यवंशी ठाकुर मेलदेव कनौंणियाँ (जिन्हें कत्यूरी राजवंश के लड़देव की वंशावली का माना जाता है) के तृतीय पुत्र के वंशज कहलाते हैं। यहाँ की कुल आबादी के मूल निवासी कनौंणियाँ बिष्ट नामक उपनाम से हिन्दू राजपूतों में से एक कहलाते हैं।

भौगोलिक संरचना

सभ्यता एवम् संस्कृति

आदीग्राम कनौंणियाँ की सभ्यता एवम् संस्कृति पूर्ण रूप से कुमांऊँनी और हिन्दू है। घरों की बनावट व सजावट में ही सर्वप्रथम पर्वतीय लोक कला व संस्कृति दृष्टिगोचर होती है। दशहरा, दीपावली, नामकरण, जनेऊ आदि शुभ अवसरों पर महिलाएँ घर में ऐंपण (अर्पण) बनाती हैं। इसके लिए घर, ऑंगन तथा सीढ़ियों को गेरू से लीपा जाता है। चावल को भिगोकर पीसा जाता है तथा उसके लेप से आकर्षक चित्र बनाए जाते हैं। विभिन्न अवसरों पर नामकरण चौकी, सूर्य चौकी, स्नान चौकी, जन्मदिन चौकी, यज्ञोपवीत चौकी, विवाह चौकी, धूमिलअर्ध्य चौकी, वर चौकी, आचार्य चौकी, अष्टदल कमल, स्वस्तिक पीठ, विष्णु पीठ, शिव पीठ, शिव शक्ति पीठ, सरस्वती पीठ तथा विभिन्न प्रकार की परम्परागत कलाकृतियॉ बनाई जाती हैं। इन्हेें तकरीबन महिलाऐं व बालिकाऐं ही बनाती हैं।

आदीग्राम कनौंणियाँ में बोली जाने वाली भाषा को पाली पछांऊँ की कुमांऊँनी कहा जाता है। सरकारी कामकाज में बोलने व लिखने की भाषा हिन्दी व अंग्रेजी है। अध्ययन व अध्यापन हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में पाया जाता है।

पहले ठंड की अधिकता के कारण घर छोटे लेकिन पक्के हुआ करते थे। जो लकड़ी व पत्थर के नक्काशीयुक्त होते हैं। घरों के ऊपर यानि छतों पर पत्थर बिछाने का प्रचलन है। प्रत्येक घर के आगे खुली जगह और खुला आॅगन होता है, जिनमें कलाकारी के साथ पत्थर बिछे होते हैं। आॅगन के तीनों छोर खोई भिड़ नामक चारदिवारीयुक्त होता है। समयानुसार इमारती लकड़ियों व उचित पत्थरों की कमी और बदलते सामाजिक परिवेश के अनुरूप घरों की बनावट में परिवर्तन होने लगा है। लोग सीमेण्ट व ईंट के घरों का उपयोग करने लगे हैं।

पारम्परिक रूप से यहाँ की महिलायें घाघरा, आँगड़ी, पिछोड़ी, कुर्ती पहनतीं थीं। अब पेटीकोट, ब्लाउज व साड़ी पहननेे लगीं हैं। पुरूष मर्दानी धोती, कुर्ता, चूड़ीदार पजामा,अंगरखोई, फतोई, भोटुवा, साफा, टोपी पहनते थे। जाड़ों (सर्दियों) में ऊनी कपड़ों का उपयोग होता है। विवाह आदि शुभ कार्यो के अवसर पर कई क्षेत्रों में अभी भी सनील का घाघरा और पिछोड़ी पहनने की परम्परा है। सिर में शीषफूल। गले में गुलोबन्द, चर्‌यो, माला, सुत, जजीर, हॅसुली। नाक में नथ, बुलॉग, फूली। कानों में कर्णफूल, कुण्डल। हाथों में सोने या चाँदी के पौंजी, धागुले। पैरों में बिछुए पजेब, पौंटा इत्यादि प्रकार के आभूषण पहनने की परम्परा प्राचीनकाल से रही है। विवाहित औरत की पहचान गले में चरेऊ पहनने से होती है। विवाह इत्यादि शुभ अवसरों पर पिछौड़ा पहनने का भी यहाँ प्रचलन है।

मेले एवम् त्यौहार

सोमनाथ मेला, सोमनाथ, सल्डिया सोमनाथ यानि वर्तमान ऐतिहासिक सोमनाथ कहा जाने वाला मेला कनौणियाँ बिष्ट व माँसीवाल नामक उपनाम के लोगों से सम्बन्धित है।[1][2] इस तल्ला गेवाड़ में माँसी के समीप परन्तु अब माँसी में प्रतिवर्ष होने वाले ऐतिहासिक सोमनाथ मेले की आराध्य भूमि को सोमनाथेश्वर कहते हैं। जो आज भी तत्समय के इतिहास के सुनहरे पन्नों और पाली पछांऊँ इलाके की कुमांऊँनी सॉस्कृतिक विरासत को समेटे है। यहीं से मेले के इतिहास का पदार्पण हुआ था और इसी सोमनाथेश्वर महादेव नामक शिवालय से मेला शुरू होता था। वक्त बदला, लोग बदले और मेले का स्वरूप भी अछूता न रह सका और बीसवीं सदी के अन्त तक मेला माँसी के बाजार में होने लग गया और इतिहास भी काफी कुछ बदल गया।

उल्लेखनीय है, सोमनाथेश्वर (श्रीनाथेश्वर) महादेव नामक शिवालय पर सैकड़ों वर्ष पूर्व कत्यूरी राजवंशावली के लड़देव के वंशजों में से मेलदेव कनौणियाँ का षड़यंत्रों द्वारा वध कर दिया था। तबसे इस मेले की शुरुआत हुई है। यहाँ पर एक प्राचीन नौला (बावड़ी) है। इसी नौले में उनका कत्ल कर दिया था। तब से इस नौले का स्वच्छ साफ व शीतल जल सभी लोग पीते है। मात्र कनौंणियॉ नामक उपनाम से जाने जाने वाले चार गॉवों (कनौंणी, डाँग, काला चौनाआदीग्राम कनौणियाँ) के मेलदेव कनौणियाँ के वंशज इस नौले का पानी आज भी ग्रहण नहीं करते।

आवागमन के स्रोत

सन्दर्भ

  1. "आज से शुरू हुआ माँसी का प्रसिद्ध एेतिहासिक सोमनाथ मेला". Uttaranchaltoday.com. मूल से 7 नवंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 नवम्बर 2017.
  2. "सोमनाथ मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम". हिन्दुस्तान, हिन्दी दैनिक. मूल से 29 अक्तूबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 नवम्बर 2017.

इन्हें भी देखिये

बाहरी कड़ियॉ