आचार्य आनन्दवर्धन
आचार्य आनन्दवर्धन, काव्यशास्त्र में ध्वनि सम्प्रदाय के प्रवर्तक के रूप में प्रसिद्ध हैं। काव्यशास्त्र के ऐतिहासिक पटल पर आचार्य रुद्रट के बाद आचार्य आनन्दवर्धन आते हैं और इनका ग्रंथ ‘ध्वन्यालोक’ काव्य शास्त्र के इतिहास में मील का पत्थर है।
आचार्य आनन्दवर्धन कश्मीर के निवासी थे और ये तत्कालीन कश्मीर नरेश अवन्तिवर्मन के समकालीन थे। इस सम्बंध में महाकवि कल्हण ‘राजतरंगिणी’ में लिखते हैं:
- मुक्ताकणः शिवस्वामी कविरानन्दवर्धनः।
- प्रथां रत्नाकराश्चागात् साम्राऽयेऽवन्तिवर्मणः ॥
कश्मीर नरेश अवन्तिवर्मन का राज्यकाल 855 से 884 ई. है। अतएव आचार्य आनन्दवर्धन का काल भी नौवीं शताब्दी मानना चाहिए। इन्होंने पाँच ग्रंथों की रचना की है- विषमबाणलीला, अर्जुनचरित, देवीशतक, तत्वालोक और ध्वन्यालोक।
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- Bamzai, P. M. K. Kashmir – The Home of Sanskrit Language and Literature. Retrieved on 15 November 2008.
- revised GRETIL e-text of the Dhvanyāloka, based on the edition by K. Krishnamoorthy, Delhi: Motilal Banarsidass, 1982.