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आई हैव ए ड्रीम

मार्टिन लूथर किंग 1963 में भाषण देते हुए।
बाहरी ऑडियो
audio icon I Have a Dream, 28 अगस्त 1963, एजुकेशनल रेडियो नेटवर्क[1]

आई हैव ए ड्रीम (अंग्रेज़ी: I Have a Dream, अर्थ: "मेरा एक सपना है") एक सार्वजनिक भाषण है जो अमेरिकी नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और बैप्टिस्ट मंत्री मार्टिन लूथर किंग द्वारा 28 अगस्त, 1963 को दिया गया था।[2] भाषण में किंग ने नागरिक और आर्थिक अधिकारों की वकालत की और संयुक्त राज्य अमेरिका में नस्लवाद के अंत का आवाहन किया। वाशिंगटन डीसी में लिंकन मेमोरियल की सीढ़ियों से 2,50,000 से अधिक नागरिक अधिकार समर्थकों को दिया गया भाषण अफ्रीकी-अमेरिकी अधिकार आंदोलन के सबसे प्रसिद्ध क्षणों में से एक था और अमेरिकी इतिहास में सबसे प्रतिष्ठित भाषणों में से एक है।[3][4]

1863 में अब्राहम लिंकन द्वारा अमरीकी गृह युद्ध के बीच में गुलामों को स्वतंत्र करने के आदेश से शुरुआत करते हुए, किंग ने कहा "एक सौ साल बाद भी नीग्रो अभी भी स्वतंत्र नहीं है"। भाषण के अंत में किंग अपने पहले से तैयार भाषण से इतर चले जाते हैं और एक वक्तव्य बोलना शुरू करते हैं। इसी का विषय होता है, "मेरा एक सपना है"। भाषण के इसी भाग ने श्रोताओं को सबसे अधिक उत्साहित किया और अब यह सबसे प्रसिद्ध हो गया है। इसमें किंग ने दासता और घृणा की भूमि से उत्पन्न स्वतंत्रता और समानता के अपने सपनों का वर्णन किया।

जॉन मेचम लिखते हैं कि, "एक वाक्यांश के साथ, किंग ने अपने आप को जेफरसन और लिंकन के साथ आधुनिक अमेरिका को आकार देने वाले पुरुषों की श्रेणी में शामिल कर लिया।"[5] 1999 में सार्वजनिक उद्बोधन के विद्वानों के एक सर्वेक्षण में इस भाषण को 20वीं शताब्दी के शीर्ष अमेरिकी भाषण का दर्जा दिया गया था।

सन्दर्भ

  1. "Special Collections, March on Washington, Part 17". Open Vault. at WGBH. 28 अगस्त 1963. मूल से 26 दिसंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 सितम्बर 2016.
  2. मंडल, दीपक के (27 अगस्त 2018). "'I Have a Dream' वो भाषण जिसे दुनिया 55 साल बाद भी सुन रही है". द क्विंट. अभिगमन तिथि 16 जून 2023.
  3. "ग्रेट स्पीच ऑफ द वर्ल्ड:'मेरा एक सपना है' मार्टिन लूथर किंग जूनियर का ऐतिहासिक भाषण". दैनिक भास्कर. अभिगमन तिथि 16 जून 2023.
  4. "The Nobel Peace Prize 1964". NobelPrize.org. अभिगमन तिथि 16 जून 2023.
  5. Meacham, Jon (26 अगस्त 2013). "One Man". टाइम . पृ॰ 26.