अष्टदिग्गज
अष्टदिग्गज (तेलुगु: అష్టదిగ్గజాలు) विजयनगर राज्य के राजा कृष्णदेव राय के दरबार में विभूषित आठ कवियों के लिये प्रयुक्त शब्द है। कहा जाता है कि इस काल में तेलुगु साहित्य अपनी पराकाष्ठा तक पहुंच गया था। कृष्णदेव के दरबार में ये कवि साहित्य सभा के आठ स्तम्भ माने जाते थे। इस काल (१५४० से १६००) को तेलुगू कविता के सन्दर्भ में 'प्रबन्ध काल' भी कहा जाता है।[1]
ये अष्टदिग्गज ये हैं-
- अल्लसानि पेदन्न,
- नन्दि तिम्मन,
- धूर्जटि,
- मादय्यगारि मल्लन
- अय्यलराजु रामभध्रुडु
- पिंगळि सूरन
- रामराजभूषणुडु (भट्टुमूर्ति)
- पंडित तेनालि रामकृष्णा
कृष्णदेव राय स्वयं तेलुगु और संस्कृत के अच्छे विद्वान् थे। उनकी बहुत-सी रचनाओं में से राजनीति पर तेलुगु में लिखी एक पुस्तक और एक संस्कृत नाटक ही उपलब्ध है। उनके राज्यकाल में तेलुगु साहित्य का नया युग प्रारम्भ हुआ, जबकि संस्कृत से अनुवाद की अपेक्षा तेलुगु में मौलिक साहित्य लिखा जाने लगा। वह तेलुगु के साथ-साथ कन्नड़ और तमिल वाक्यों की भी सहायता करते थे।
'अष्टदिग्गज' में सर्वाधिक महत्वपुर्ण 'अल्लसानि पेद्दन' को तेलुगु कविता के पितामह की उपाधि प्रदान की गई है। उनकी मुख्य कृति है- ‘स्वारोचित-सम्भव’ या 'मनुचरित' तथा ‘हरिकथा सार’।
दूसरे महान् कवि 'नन्दी तिम्मन' ने ‘पारिजातहरण’ की रचना की थी।
तीसरे कवि 'भट्टूमुर्ति' ने अलंकार शास्त्र से सम्बन्धित पुस्तक ‘नरसभूपालियम’ की रचना की थी।
चौथे कवि 'धूर्जटि' ने ‘कालहस्ति-महात्म्य’ की रचना की।
पाँचवे कवि 'मादय्यगरि मल्लन' ने 'राजशेखरचरित' की रचना कर ख्याति प्राप्त की थी।
छठे कवि 'अच्चलराजु रामचन्द्र' ने ‘सफलकथा सारसंग्रह’ एवं ‘रामाभ्युदयम्’ की रचना कर कृष्णदेव राय से सम्मान पाया था।
सातवें कवि 'पिंगलीसूरन्न' ने ‘राघव-पाण्डवीय’ की रचना की। 'पांडुरंग महात्म्य' की गणना 5 महाकाव्यों में की जाती है।
कृष्णदेव राय ने संस्कृत भाषा में एक नाटक ‘जाम्बवतीकल्याण’ की रचना की थी। साहित्य के क्षेत्र में कृष्णदेव राय के काल को "तेलुगु साहित्य का क्लासिकी युग" कहा गया है। कृष्णदेव राय ने ‘आंध्र भोज’, ‘अभिनव भोज’, ‘आन्ध्र पितामह’ आदि उपाधियाँ धारण कीं।
सन्दर्भ
- ↑ "Prabandhamulu". Microsoft. मूल से 2008-02-11 को पुरालेखित.
इन्हें भी देखें
- दिग्गज
- तेनाली रामा
- नवरत्न, सम्राट विक्रमादित्य तथा अकबर के दरबार के सुशोभित विद्वानों के लिये प्रयुक्त शब्द
- तेलुगू साहित्य