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अश्वमेधदत्त

महाभारत के पश्चात के कुरु वंश के राजा।

कुरु वंश - महाभारत पर्यान्त वंशावली

रवानी (बृहद्रथ) वंश

यह वंश मगध साम्राज्य का संस्थापक इसका कोई साक्ष्य नहीं मिलता।

मुचि सुचि | क्षमय | सुवत | धर्म | सुश्रवा | दृढ़सेन |

सत्यजीत | विश्वजीत | रिपुंजय | समरंजयइनके बाद मगध पर इस वंश का शासन समाप्त होता है

मगध वंश

नन्द वंश

संदर्भ

महाभारत में कौरव और पांडवों के बीच लड़ाई हुई थी, लेकिन कौरव और पांडव दोनों ही कुरुवंश से नहीं थे। वैसे देखा जाए तो कुरुवंश का अंतिम व्यक्ति भीष्म पितामह ही थे। लेकिन पुराणों के अनुसार उस काल का अंतिम शासक निचक्षु था। पुराणों के अनुसार हस्तिनापुर नरेश निचक्षु ने, जो परीक्षित का वंशज (युधिष्ठिर से 7वीं पीढ़ी में) था, हस्तिनापुर के गंगा द्वारा बहा दिए जाने पर अपनी राजधानी वत्स देश की कौशांबी नगरी को बनाया। इसी वंश की 26वीं पीढ़ी में बुद्ध के समय में कौशांबी का राजा उदयन था। निचक्षु और कुरुओं के कुरुक्षेत्र से निकलने का उल्लेख शांख्यान श्रौतसूत्र में भी है। एक अन्य मत के अनुसार..


जब अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु युद्ध में मारा गया था तब उसकी पत्नी उत्तरा के गर्भ में उसका बच्चा परीक्षित था। परीक्षित से जनमेजय का जन्म हुआ।

जन्मेजय के बाद क्रमश: शतानीक, अश्वमेधदत्त, धिसीमकृष्ण, निचक्षु, उष्ण, चित्ररथ, शुचिद्रथ, वृष्णिमत सुषेण, नुनीथ, रुच, नृचक्षुस, सुखीबल, परिप्लव, सुनय, मेधाविन, नृपंजय, ध्रुव, मधु, तिग्म्ज्योती, बृहद्रथ और वसुदान राजा हुए जिनकी राजधानी पहले हस्तिनापुर थी तथा बाद में समय अनुसार बदलती रही। बुद्धकाल में शत्निक और उदयन हुए। उदयन के बाद अहेनर, निरमित्र (खान्दपनी) और क्षेमक हुए।

मगध वंश में क्रमश: क्षेमधर्म (639-603 ईपू), क्षेमजित (603-579 ईपू), बि‍म्बिसार (579-551), अजातशत्रु (551-524), दर्शक (524-500), उदायि (500-467), शिशुनाग (467-444) और काकवर्ण (444-424 ईपू) ये राजा हुए।


नंद वंश में नंद वंश उग्रसेन (424-404), पण्डुक (404-294), पण्डुगति (394-384), भूतपाल (384- 372), राष्ट्रपाल (372-360), देवानंद (360-348), यज्ञभंग (348-342), मौर्यानंद (342-336), महानंद (336-324)। इससे पूर्व ब्रहद्रथ का वंश मगध पर स्थापित था।


एक अन्य वंशावली के अनुसार यह क्रम इस प्रकार है:- 1.अर्जुन 2.अभिमन्यु 3.परीक्षित 4.जनमेजय 5. अश्वमेघ 6. दलीप 7. छत्रपाल 8. चित्ररथ 9. पुष्टशल्य 10. उग्रसेन 11. कुमारसेन 12. भवनति 13. रणजीत 14. ऋषिक 15. सुखदेव 16.नरहरिदेव 17. सूचीरथ 18. शूरसेन 19. दलीप द्वितीय 20. पर्वतसेन 21. सोमवीर 22. मेघाता 23. भीमदेव 24. नरहरिदेव द्वितीय

25. पूर्णमल 26. कर्दबीन 27. आपभीक 28. उदयपाल 29. युदनपाल 30. दयातराज 31. भीमपाल 32. क्षेमक 33. अनक्षामी 34. पुरसेन 35. बिसरवा 36. प्रेमसेन 37. सजरा 38. अभयपाल 39. वीरसाल 40. अमरचुड़ 41. हरिजीवि 42. अजीतपाल 43. सर्पदन 44. वीरसेन 45. महेशदत्त 46. महानिम 47. समुद्रसेन 48. शत्रुपाल 49. धर्मध्वज 50. तेजपाल 51. वालिपाल 52. सहायपाल 53. देवपाल

54. गोविन्दपाल 55. हरिपाल 56. गोविन्दपाल द्वितीय 57. नरसिंह पाल 58. अमृतपाल 59. प्रेमपाल 60. हरिश्चंद्र 61. महेंद्रपाल 62. छत्रपाल 63. कल्याणसेन 64. केशवसेन 65. गोपालसेन 66. महाबाहु 67. भद्रसेन 68. सोमचंद्र 69. रघुपाल 70. नारायण 71. भनुपाद 72. पदमपाद 73. दामोदरसेन 74. चतरशाल 75. महेशपाल 76. ब्रजागसेन 77. अभयपाल 78. मनोहरदास 79. सुखराज

80. तंगराज 81. तुंगपाल- (इन्हीं के नाम से आगे तोमर या तंवर वंश चला) 82. अनंगपाल तंवर (तोमर)- दिल्ली राज्य के संस्थापक अनंगपाल तंवर चंद्रवंशी क्षत्रिय हैं, और इनका संबंध पाण्डु-पुत्र-अर्जुन से जुड़ता हैं।


कहते हैं कि शाकंभरी के शासक महाराजा विग्रहराज चौहान (चतुर्थ) ने दिल्ली को जीत के अपने चौहान साम्राज्य के अधीन किया था और उस समय दिल्ली के तंवरवंशी शासक चौहानों के सामंत बने और दिल्ली पर अपना अधिकार बनाए रखा। पृथ्वीराज चौहान के बाद तंवरों ने दिल्ली छोड़ राजस्थान के बहरोड़ के पास अपना डेरा जमाया। हालांकि दिल्ली की तरफ से होने वाले निरंतर आक्रमणों के कारण तंवरों ने कुल को बचाने के लिए रंजीतसिंह (रणसी) के पुत्रों अजमलजी और धनरूपजी को पश्चिम राजपुताना क्षेत्र की ओर भेज दिया। उनके कुल में पोकरण के पूर्व शासक राजा रामदेवजी हुए जिन्हें रूणिचा वाले बाबा रामदेवजी कहा जाता है। रूणिचा रामदेवरा के नाम से विख्‍यात रामदेवजी अर्जुन के वंशज हैं।

नोट : उपरोक्त जानकारी के क्रम में फेरबदल हो सकता है। इसलिए पाठक अपने विवेक से काम लें।