सामग्री पर जाएँ

अवटु ग्रंथि

यह लेख आज का आलेख के लिए निर्वाचित हुआ है। अधिक जानकारी हेतु क्लिक करें।
अवटु

सामने से देखने पर मानव अवटु ग्रंथि (भूरा); और ग्रंथि को रक्तापूर्ति करती धमनियां (लाल)।

अवटु ग्रंथि गले में टेंटुए के ठीक नीचे स्थित होती है।
विवरण
लातिनीGlandula thyreoidea
अग्रगामीThyroid diverticulum (an extension of endoderm into 2nd pharyngeal arch)
तंत्रअंत:स्रावी तंत्र
Superior, Inferior thyroid arteries
Superior, middle, Inferior thyroid veins
अभिज्ञापक
टी एA11.3.00.001
एफ़ एम ए9603
शरीररचना परिभाषिकी

अवटु (थाइरॉयड) मानव शरीर में पायी जाने वाली सबसे बड़ी अंत:स्रावी ग्रंथियों में से एक है। यह द्विपिंडक रचना निम्न ग्रीवा में अवटु उपास्थि (थाइरॉयड कार्टिलेज़) स्वरयंत्र के नीचे वलयाकार उपास्थि (क्राइकॉइड कार्टिलेज़) के लगभग समान स्तर पर स्थित होती है। यह थायरॉकि्सन (T4), ट्राइ-आयडोथाइरोनीन (T3) और थाइरोकैल्सिटोनीन नामक हार्मोन स्रावित करती है[1] जिससे शरीर के ऊर्जा क्षय, प्रोटीन उत्पादन एवं अन्य हार्मोन के प्रति होने वाली संवेदनशीलता नियंत्रित होती है। ये हार्मोन चयापचय की दर और कई अन्य शारीरिक तंत्रों के विकास और उनके कार्यों की दर को भी प्रभावित करते हैं। हार्मोन कैल्सीटोनिन कैल्शियम साम्यावस्था (कैल्शियम होमियोस्टैसिस) में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। आयोडीन T3 और T4 दोनों का एक आवश्यक घटक है।

कार्य

थायरॉक्सिन हार्मोन वसा, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट के मेटाबोलिज्म को बढ़ाता है। यह रक्त में शर्करा, कोलेस्टरोल तथा फास्फोलिपिड का मात्रा को कम कर देता है। लाल रक्त कोशिका के निर्माण को बढ़ा कर रक्ताल्पता की रोकथाम करता है। यह हड्डियों, पेशियों, लैंगिक तथा मानसिक वृद्धि को नियंत्रित करता है। यह दुग्ध स्राव को भी बढाता है। यह हृदय गति एवं रक्तचाप को नियंत्रित करता है।

असमान्य अवस्था

अवटु ग्रंथि हाइपोथैलेमस, पीयूष ग्रंथि आदि कारकों द्वारा नियंत्रित होती है। अवटु ग्रंथि की सबसे सामान्य समस्याएँ अवटु ग्रंथि की अतिसक्रियता (हाइपरथाइरॉयडिज़्म) और अवटु ग्रंथि की निम्नसक्रियता (हाइपोथाइरॉयडिज़्म) हैं। जब अवटुग्रंथि बहुत अधिक मात्रा में हार्मोन बनाने लगती है तो शरीर, उर्जा का उपयोग मात्रा से अधिक करने लगता है। इसे हाइपर थाइराडिज़्म कहते हैं। जब अवटुग्रंथि पर्याप्त मात्रा में हार्मोन नहीं बना पाती तो शरीर, उर्जा का उपयोग मात्रा से कम करने लगता है। इस अवस्था को हाइपोथायराडिज़्म कहते हैं। ये असमान्य अवस्थाएँ किसी भी आयु वाले व्यक्ति में हो सकती है तथापि पुरुषों की तुलना में पांच से आठ गुणा अधिक महिलाओं में यह बीमारी होती है।

सन्दर्भ

  1. यादव, रामनन्दन (जुलाई २००5). अभिनव जीवन विज्ञान. कोलकाता: निर्मल प्रकाशन. पृ॰ 26. |access-date= दिए जाने पर |url= भी दिया जाना चाहिए (मदद)