अल-मुजादिला
सूरा अल-मुजादिला (इंग्लिश: Al-Mujadila) इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 58 वां सूरा (अध्याय) है। इसमें 22 आयतें हैं।
नाम
इस सूरा के अरबी भाषा के नाम को क़ुरआन के प्रमुख अनुवाद में सूरा अल-मुजादला[1]और प्रसिद्ध किंग फ़हद प्रेस के अनुवाद में सूरा अल्-मुजादिला[2] दिया गया है। यह नाम पहली ही आयत के शब्द "तुजादिलु-क" (तुमसे तकरार कर रही है ) से उद्धृत है।
अवतरणकाल
मदनी सूरा अर्थात् पैग़म्बर मुहम्मद के मदीना के निवास के समय हिजरत के पश्चात अवतरित हुई।
सूरा 33 (अहज़ाब ) में अल्लाह ने मुँहबोले बेटे के सगा बेटा होने को नकारते हुए केवल यह कहकर छोड़ दिया था कि “और अल्लाह ने तुम्हारी उन पत्नियों को , जिनसे तुम ज़िहार करते हो तुम्हारी माँ नहीं बना दिया है।” (ज़िहार से अभिप्रेत है, पत्नी को माँ की उपमा देना।) किन्तु उसमें यह नहीं बताया गया था कि ज़िहार करना कोई पाप या अपराध है और न यह बताया गया था कि शरीअत का इस कर्म के विषय में क्या आदेश है। इसके विपरीत इस सूरा में ज़िहार का पूरा क़ानून बयान कर दिया गया है। इससे मालूम होता है कि यह विस्तृत आदेश उस संक्षिप्त आदेश के पश्चात् अवतरित हुए हैं। (इस तथ्य के अन्तर्गत यह) बात निश्चित रूप से कही जा सकती है कि इस सूरा का अवतरणकाल अहज़ाब के अभियान (शव्वाल सन् 5 हिजरी) के बाद का है।
विषय और वार्ताएँ
इस्लाम के विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि इस सूरा में मुसलमानों को उन विभिन्न समस्याओं के सम्बन्ध में आदेश दिए गए हैं, जो समस्याएँ उस समय खड़ी हो गई थीं। सूरा के आरम्भ से आयत 6 तक ज़िहार के सम्बन्ध में शरीअत के आदेश वर्णिय किए गए हैं और इसके साथ मुसलमानों को अत्यन्त कड़ाई के साथ सावधान किया गया है कि इस्लाम के बाद भी अज्ञान की रीतियों पर दृढ़ रहना और अल्लाह की निर्धारित मर्यादाओं को तोड़ना निश्चय ही ईमान के विपरीत कर्म है, जिसकी सज़ा दुनिया में भी अपमान और अपयश है और परलोक में भी इसपर सख्ती से पूछगछ होनी है।
आयत 7 से 10 तक में कपटाचारियों की इस नीति पर पकड़ की गई है कि वे आपस में गुप्त कानाफूसियाँ करके तरह - तरह की शरारतों की योजनाएँ बनाते थे और अल्लाह के रसूल (सल्ल.) को यहूदियों की तरह ऐसे ढंग से सलाम करते थे जिससे दुआ कि जगह बददुआ का पहलू निकलता था। इस सम्बन्ध में मुसलमानों को तसल्ली दी गई है कि कपटाचारियों की ये कानाफूसियाँ तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकतीं। इसलिए तुम अल्लाह के भरोसे पर अपना कार्य करते रहो। और इसके साथ उनको यह नैतिक शिक्षा भी दी गई है कि सच्चे ईमानवालों का काम पाप और अन्याय और अत्याचार और रसूल की अवज्ञा के लिए कानाफूसी करना ठीक तरीके नहीं है । वे यदि आपस में बैठकर एकान्त में कोई बात करें भी तो यह नेकी और ईशपरायणता की बात होनी चाहिए।
आयत 11-13 तक में मुसलमानों को सभा सम्बन्धी सभ्यता के कुछ नियम सिखाए गए हैं और कुछ ऐसे सामाजिक अवगुणों को दूर करने के आदेश दिए गए हैं जो पहले भी लोगों में पाए जाते थे और आज भी पाए जाते हैं।
आयत 14 से के अन्त तक मुस्लिम समाज के लोगों को जिनमें सत्यनिष्ठ ईमानवाले और कपटाचारी और दुविधाग्रस्त सब मिले-जुले थे, बिलकुल दो से बताया गया है कि धर्म में आदमी के सत्यानिष्ठ होने का मापदण्ड क्या है। इस प्रकार से मुसलमान वे हैं जो इस्लाम के शत्रुओं से मित्रता का सम्बन्ध रखते हैं और अपने हित के लिए धर्म के साथ गद्दारी करने में उन्हें कोई झिझक नहीं होती। दूसरे प्रकार के मुसलमान वे हैं जो ईश्वरीय धर्म के मामले में किसी और का ध्यान रखना तो अलग रहा, स्वयं अपने बाप- भाई, सन्तान और घराने तक की उन्हें परवाह नहीं होती। अल्लाह ने इन आयतों में स्पष्टतः कह दिया है कि पहले प्रकार के लोग चाहे कितनी ही सौगन्धे खा मुसलमान होने का विश्वास दिलाएँ, वास्तव में वे शैतान के दल के लोग हैं और अल्लाह के दल में सम्मिलित होने का श्रेय केवल दूसरे प्रकार के मुसलमानों को प्राप्त है।
सुरह "अल-मुजादिला का अनुवाद
बिस्मिल्ला हिर्रह्मा निर्रहीम अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है।
इस सूरा का प्रमुख अनुवाद:
क़ुरआन की मूल भाषा अरबी से उर्दू अनुवाद "मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ खान", उर्दू से हिंदी [3]"मुहम्मद अहमद" ने किया।
बाहरी कडियाँ
इस सूरह का प्रसिद्ध अनुवादकों द्वारा किया अनुवाद क़ुरआन प्रोजेक्ट पर देखें Al-Mujadila 58:1
सन्दर्भ:
- ↑ सूरा अल-मुजादला, (अनुवादक: मौलाना फारूक़ खाँ), भाष्य: मौलाना मौदूदी. अनुदित क़ुरआन - संक्षिप्त टीका सहित. पृ॰ 817 से.
- ↑ "सूरा अल्-मुजादिला का अनुवाद (किंग फ़हद प्रेस)". https://quranenc.com. मूल से 22 जून 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 जुलाई 2020.
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में बाहरी कड़ी (मदद) - ↑ "Al-Mujadila सूरा का अनुवाद". http://tanzil.net. मूल से 25 अप्रैल 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जुलाई 2020.
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में बाहरी कड़ी (मदद)