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अल-फ़ातिहा

कुरआन का सूरा क्र.- 1
سورة الفاتحة
सूरा अल-फ़ातिहा
आरम्भ
वर्गीकरणमक्की सूरा
अन्य नाम
  • उम्म अल-किताब
  • उम्म अल-कुरान
  • कुन्जी
  • सूरा अल-हम्द
रहस्योद्घाटन का समयपैगंबर मुहम्मद की प्रवक्तावादी आरम्भिक जीवन में
स्थानपारा
रुकू की संख्या
शब्दों की संख्या २५
शुरुआती मुक़त्तआतनहीं
विशेष विषयों पर आयतों की संख्याईश्वर की स्तुति: 3
पालक (सृजनकर्ता) एवं पालित (सृजित) के बीच सम्बन्ध: 1
मानव जाति की प्रार्थना: 3
ٱلۡفَاتِحَةِ

सूरा अल-फ़ातिहा (अरबी: سورة الفاتحة‎), "आरम्भ्," इस्लाम की पवित्र ग्रन्थ कुरआन का पहला सूरा, या अध्याय है। इसमें 7 आयतें हैं। इसमें ईश्वर यानी अल्लाह के निर्देश एवं दया यानी रहम हेतु प्रार्थना की गई है। इस अध्याय का खास महत्त्व है, दैनिक प्रार्थना के आरम्भ में बोला जाने वाला सूरा है।

क़ुरआन का पहला सूरा

टिप्पणी

इस सूरा की प्रथम आयत

बिस्मिल्ला - हिर् - रह़्मा - निर् - रह़ीम

जिसका उच्चारण है "Bismillāhir rahmānir rahīm", (बिस्मिल्ला हिर्रहमा निर्रहीम), अरबी या अरबी जानने वाले लोगों के अलावा भी बहुत लोगों द्वारा सुना गया होगा। क्योंकि यह कुरान के प्रत्येक सूरा के पहले आता है। और दैनिक प्रार्थना एवं किसी शुभ कार्य को आरम्भ करने से पहले भी प्रायः बोला जाता है।

प्रकटीकरण

इसे दोनों मक्की एवं मदीनी सूरा गिना जाता है।

वैकल्पित नाम

  • नाम अल-फातिहा [1]("सलामी देनेवाला / खोलने वाला") सूरत की विषय-वस्तु के कारण है।
  • फातिहा यह है कि जो विषय या पुस्तक या किसी अन्य चीज को खोलता है दूसरे शब्दों में, एक प्रकार की प्रस्तावना।
  • इसे उम्म अल-क़िताब ("पुस्तक की मां") और उम्म अल-कुरान ("कुरान की माता") कहा जाता है; [2][3] सबा अल मथानी ("सात बार दोहराया [छंद ] ", कुरान के 15:87 सूरा से लिया गया पदनाम;)[3]
  • अल-हम्द (" प्रशंसा "), क्योंकि एक हदीस ने मुहम्मद ने यह कहा है:" प्रार्थना [अल-फतह] दो हिस्सों में विभाजित है मेरे और मेरे कर्मचारियों के बीच, जब सेवक कहता है, 'सभी प्रशंसा अल्लाह के लिए है', अल्लाह जिसका अस्तित्व है, अल्लाह कहते हैं, 'मेरे बंदे ने मेरी प्रशंसा की है'।[4]
  • अल-शिफा '(" इलाज " ), क्योंकि एक हदीस में मुहम्मद ने कहा था "इस का खोलना हर ज़हर का इलाज है"। [5][6]
  • अल-रुक़ाह ("उपाय" या "आध्यात्मिक इलाज "),[3] और अल-आसस," द फाउंडेशन ", पूरे कुरान के लिए एक नींव के रूप में अपनी सेवा का जिक्र करते हैं [7]

सारांश

यह सूरह मक्की है, इस में सात आयते है।

  • यह सूरह आरंभिक युग में मक्का में उतरी है, जो कुरान की भूमिका के समान है। इसी कारण इस का नाम सुरहा फातिहा अर्थात: “आरंभिक सूरह “है। इस का चमत्कार यह है कि इस की सात आयतों में पूरे कुरान का सारांश रख दिया गया है। और इस में कुरान के मौलिक संदेश: तौहीद, रीसालत तथा परलोक के विषय को संक्षेप में समो दिया गया है। इस में अल्लाह की दया, उस के पालक तथा पूज्य होने के गुणों को वर्णित किया गया है।
  • इस सुरह के अर्थो पर विचार करने से बहुत से तथ्य उजागर हो जाते है| और ऐसा प्रतीत होता है कि सागर को गागर में बंद कर दिया गया है।
  • इस सुरह में अल्लाह के गुण–गान तथा उस से पार्थना करने की शिक्षा दी गई है कि अल्लाह की सराहना और प्रशंशा किन शब्दो से की जाये। इसी प्रकार इस में बंदो को न केवल वंदना की शिक्षा दी गई है बल्कि उन्हें जीवन यापन के गुण भी बताये गये है।
  • अल्लाह ने इस से पहले बहुत से समुदायो को सुपथ दिखाया किन्तु उन्होंने कुपथ को अपना लिया, और इस में उसी कुपथ के अंधेरे से निकलने की दुआ है। बंदा अल्लाह से मार्ग–दर्शन के लिये दुआ (पार्थना) करता है तो अल्लाह उस के आगे पूरा कुरान रख देता है कि यह सीधी राह है जिसे तू खोज रहा है। अब मेरा नाम लेकर इस राह पर चल पड़।

अनुवाद

सूरए फातेहा मक्का में नाज़िल हुई इसीलिए इसे मक्की सूरत कहा जाता है। इस में 7 आयते हैं
अल-फ़ातिहा (अरबी: الفَاتِحَة‎)
आयतText लिप्यान्तारीकरण अनुवाद [8]
1.1. بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِबिस्मिल्लाहि र-रहमानि र-रहीम(शुरू करता हूँ) अल्लाह के नाम से, जो सब पर दया करता है, अत्यंत दयालु है।
1.2. ٱلْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَअल हम्दु लिल्लाहि रब्बि ल-आलमीनसब तारीफ़ अल्लाह (ही) के लिए हैं, जो पूरी दुनिया का ईश्वर है।
1.3. ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِअर रहमानि र-रहीमजो सब पर दया करता है, अत्यंत दयालु है।
1.4. مَالِكِ يَوْمِ ٱلدِّينِमालिकि यौमि द-दीनजो क़यामत (यानी बदले के दिन) का मालिक है।
1.5. إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُइय्याक न'आबुदु व इय्याक नस्त'ईन(ऐ अल्लाह!) हम आपका ही इबादत करते हैं और आप ही से मदद चाहते हैं।
1.6. ٱهْدِنَا الصِّرَاطَ ٱلْمُسْتَقِيمَइह्दिन स-सिरात अल-मुस्तक़ीम(ऐ अल्लाह!) हमें सही रास्ता दिखा।
1.7. صِرَاطَ ٱلَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ غَيْرِ ٱلْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلَا ٱلضَّآلِّينसिरात अल-लादीना अन'अमता अलैहिम ग़ैरिल मग़दूबि अलैहिम वलद दाल्लीनउन लोगों का रास्ता जिनपर आपने इनाम रखा। उनका रास्ता नहीं जो आपके गुस्से का शिकार हुए एवं न (ही) उनका जो भटके हुए हैं।

इन्हें भी देखें

पिछला सूरा:
कोई नहीं
क़ुरआनअगला सूरा:
अल-बक़रा
सूरा 01 - अल-फ़ातिहा

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सन्दर्भ

  1. Sheikh, Irfan. "Ala Hazrat Fatiha Ka Tarika In Hindi Mein फातिहा का तरीका हिंदी". Irfani-Islam - इस्लाम की पूरी मालूमात हिन्दी. अभिगमन तिथि 2022-02-16.
  2. Mulla Sadra. Tafsir al-Quran al-Karim. पपृ॰ 1:163–164.
  3. Ibn Kathir. Tafsir Ibn Kathir. मूल से 20 जून 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 जून 2017.
  4. Abu al-Qasim al-Khoei. Al-Bayan Fi Tafsir al-Quran. पृ॰ 446.
  5. Muhammad Baqir Majlisi. Bihar al-Anwar. पपृ॰ 89:238.
  6. Al-Hurr al-Aamili. Wasā'il al-Shīʿa. पपृ॰ 6:232.
  7. Joseph E. B. Lumbard, "Introduction to Sūrat al-Fātiḥah," The Study Quran. ed. Seyyed Hossein Nasr, Caner Dagli, Maria Dakake, Joseph Lumbard, Muhammad Rustom (San Francisco: Harper One, 2015), p. 3.
  8. "Al-Fatiha (Wikisource)". मूल से 28 अप्रैल 2019 को पुरालेखित.

बाहरी कडि़यां

विकिस्रोत में इस लेख से सम्बंधित, मूल पाठ्य उपलब्ध है: