अल-जासिया
क़ुरआन |
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सूरा अल-जासिया (इंग्लिश: Al-Jathiya) इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 45 वां सूरा (अध्याय) है। इसमें 37 आयतें हैं।
नाम
सूरा 'अल-जासिया[1]या सूरा अल्-जासिया[2]नाम आयत 28 के वाक्यांश “उस समय तुम हर गिरोह को घुटनों के बल गिरा (जासिया) देखोगे” से उद्धृत है। मतलब यह है कि यह वह सूरा है जिसमें जासिया शब्द आया है।
अवतरणकाल
मक्कन सूरा अर्थात् पैग़म्बर मुहम्मद के मक्का के निवास के समय हिजरत से पहले अवतरित हुई।
इस्लाम के विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि इसकी विषय-वस्तुओं से साफ़ महसूस होता है कि यह सूरा 44 (दुख़ान) के बाद निकटवर्ती समय में अवतरित हुई है। दोनों सूरतों की विषय-वस्तुओं में ऐसी एकरूपता पाई जाती है, जिससे ये दोनों जुड़वाँ सूरतें प्रतीत होती हैं।
विषय और वार्ताएँ
मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि
इसका विषय एकेश्वरवाद और परलोकवाद के सम्बन्ध में मक्का के काफ़िरों के सन्देहों और आक्षेपों का उत्तर देना और (उनकी विरोधात्मक) नीति पर उन्हें सचेत करना है। वार्ता का आरम्भ एकेश्वरवाद के प्रमाणों से किया गया है। इस सिलसिले में मनुष्य के अपने अस्तित्व से लेकर धरती और आकाश तक की फैली हुई अगणित निशानियों की ओर संकेत करके बताया गया है कि तुम जिधर भी निगाह उठाकर देखो, हर चीज़ उसी एकेश्वरवाद की गवाही दे रही है जिसे मानने से तुम इनकार कर रहे हो।
आगे आयत 12-13 में फिर कहा गया है कि मनुष्य इस संसार में जितनी चीज़ों से काम ले रहा है और जो अगणित चीजें और शक्तियाँ इस जगत् में उसके हित में सेवारत् हैं (वे सबकी सब एक ख़ुदा की प्रदान की हुई और कार्य में लगाई हुई हैं।) कोई व्यक्ति ठीक सोच-विचार से काम ले तो उसकी अपनी बुद्धि ही पुकार उठेगी कि वही अल्लाह इनसान का उपकारकर्ता और उसी का यह हक़ है कि मनुष्य उसका आभारी हो। तदनन्तर मक्का के काफ़िरों को उस हठधर्मी, अहंकार, उपहास और कुन के लिए दुराग्रह पर तीक्ष्ण भर्त्सना की गई है, जिससे वे कुरआन के आह्वान का मुक़ाबला कर रहे थे। उन्हें सचेत किया गया है कि यह कुरआन (एक महान वरदान है। इसे रद्द कर देने का परिणाम अत्यन्त विनाशकारी होगा)
इसी सिलसिले में अल्लाह के रसूल (सल्ल.) के अनुयायियों को आदेश दिया गया है कि यह ईश्वर से निर्भय लोग तुम्हारे साथ जो बेहूदगियाँ कर रहे हैं, उन पर क्षमा और सहनशीलता से काम लो। तुम धैर्य से काम लोगे तो ईश्वर स्वयं इनसे निमटेगा और तुम्हें इस धैर्य का बदला प्रदान करेगा। फिर परलोकवाद की धारणा के सम्बन्ध में काफ़िरों के अज्ञानपूर्ण विचारों की समीक्षा की गई है। (और उनके इस दावे के खण्डन में कि मरने के) बाद फिर कोई जीवन नहीं है, अल्लाह ने निरन्तर कुछ प्रमाण प्रस्तुत किए हैं। ये प्रमाण देने के पश्चात् अल्लाह पूरे ज़ोर के साथ कहता है कि जिस तरह तुम आप-से-आप जीवित नहीं हो गए हो, बल्कि हमारे जीवित करने से जीवित हुए हो। इसी तरह तुम आप-से-आप नहीं मर जाते, बल्कि हमारे मौत देने से मरते हो और एक समय निश्चित ही ऐसा आना है जब तुम सब एक वक्त एकत्र किए जाओगे। जब वह वक्त आ जाएगा तो तुम स्वयं ही अपनी आँखों से देख लोगे कि अपने ईश्वर के समक्ष प्रस्तुत हो और तुम्हारा सम्पूर्ण कर्मपत्र बिना कमी बेशी के तैयार है, जो तुम्हारे एक-एक करतूत की गवाही दे रहा है। उस समय तुमको मालूम हो जाएगा कि परलोकवाद की धारणा का यह इनकार और उसका जो उपहास तुम कर रहे हो, तुम्हें कितना अधिक महँगा पड़ा
सुरह "अल-जासिया का अनुवाद
बिस्मिल्ला हिर्रह्मा निर्रहीम
अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है।
इस सूरा का प्रमुख अनुवाद:
क़ुरआन की मूल भाषा अरबी से उर्दू अनुवाद "मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ खान", उर्दू से हिंदी "मुहम्मद अहमद" [3] ने किया।
बाहरी कडियाँ
इस सूरह का प्रसिद्ध अनुवादकों द्वारा किया अनुवाद क़ुरआन प्रोजेक्ट पर देखें Al-Jathiya 45:1
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ:
- ↑ अनुवादक: मौलाना फारूक़ खाँ, भाष्य: मौलाना मौदूदी. अनुदित क़ुरआन - संक्षिप्त टीका सहित. पृ॰ 717 से.
- ↑ "सूरा अल्-जासिया का अनुवाद (किंग फ़हद प्रेस)". https://quranenc.com. मूल से 22 जून 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 जुलाई 2020.
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में बाहरी कड़ी (मदद) - ↑ "Al-Jathiya सूरा का अनुवाद". http://tanzil.net. मूल से 25 अप्रैल 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जुलाई 2020.
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में बाहरी कड़ी (मदद)