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अलवर

अलवर
—  नगर  —
अलवर नगर में स्थित सागर जलाशय का एक दृश्य
अलवर नगर में स्थित सागर जलाशय का एक दृश्य
अलवर नगर में स्थित सागर जलाशय का एक दृश्य
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)
देश भारत
राज्यराजस्थान
महापौरघनश्याम
नगर निगम आयुक्त
। मनीष फौजदार
जनसंख्या
घनत्व
3,41,953 (2011) (मध्यम) (2011 के अनुसार )
• ७००० व्यक्ति प्रति वर्ग किमी
क्षेत्रफल
ऊँचाई (AMSL)
108 वर्ग किमी कि.मी²
• 300 मीटर मीटर
आधिकारिक जालस्थल: alwar.nic.in

निर्देशांक: 27°20′N 76°23′E / 27.34°N 76.38°E / 27.34; 76.38

अलवर भारत के राजस्थान राज्य का एक नगर है।अलवर नगर दिल्ली से 150 किमी  दक्षिण में और जयपुर से 150 किमी उत्तर में स्थित है। यह भारत के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आता है व राजस्थान में अलवर जिले का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। अलवर कई किलों, झीलों, हेरिटेज हवेलियों और प्रकृति भंडार के साथ पर्यटन का एक केंद्र है[1] । यह नगर राजस्थान के जयपुर अंचल के अंतर्गत आता है। दिल्ली के निकट होने के कारण यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल है। राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब १६० कि॰मी॰ की दूरी पर है। अलवर अरावली की पहाडियों के मध्य में बसा है। अलवर के प्राचीन नाम 'मत्स्यनगर', 'अरवलपुर', 'उल्वर', ' शालवापुर', 'सलवार', 'हलवार ' रहे हैं।[2] यह चारदीवारी और खाई से घिरे नगर में एक पर्वतश्रेणी की पृष्ठभूमि के सामने शंक्वाकार छन्द की पहाड़ी पर स्थित बाला क़िला इसकी विशिष्टता है। 1775 में इसे अलवर रजवाड़े की राजधानी बनाया गया था। वर्तमान में अलवर राजस्थान का महत्त्वपूर्ण औधोगिक नगर हैं तथा आठवाँ बड़ा नगर हैं। अलवर को राजस्थान का सिंह द्वार भी कहते हैं।

अलवर क्षेत्र का इतिहास

अलवर एक ऐतिहासिक नगर है और इस क्षेत्र का इतिहास महाभारत से भी अधिक पुराना है। लेकिन महाभारत काल से इसका क्रमिक इतिहास प्राप्त होता है। महाभारत युद्ध से पूर्व यहाँ राजा विराट के पिता वेणु ने मत्स्यपुरी नामक नगर बसा कर उसे अपनी राजधानी बनाया था। राजा विराट ने अपनी पिता की मृत्यु हो जाने के बाद मत्स्यपुरी से ३५ मील पश्चिम में विराट (अब बैराठ) नामक नगर बसाकर इस प्रदेश की राजधानी बनाया। इसी विराट नगरी से लगभग ३० मील पूर्व की ओर स्थित पर्वतमालाओं के मध्य सरिस्का में पाण्डवों ने अज्ञातवास के समय निवास किया था। तीसरी शताब्दी के आसपास यहाँ प्रतिहार वंशीय क्षत्रियों का अधिकार हो गया। इसी क्षेत्र में राजा बाधराज ने मत्स्यपुरी से ३ मील पश्चिम में एक नगर तथा एक गढ़ बनवाया। वर्तमान राजगढ़ दुर्ग के पूर्व की ओर इस पुराने नगर के चिह्न अब भी दृष्टिगत होते हैं। पाँचवी शताब्दी के आसपास इस प्रदेश के पश्चिमोत्तरीय भाग पर राज ईशर चौहान के पुत्र राजा उमादत्त के छोटे भाई मोरध्वज का राज्य था जो सम्राट पृथ्वीराज से ३४ पीढ़ी पूर्व हुआ था। इसी की राजधानी मोरनगरी थी जो उस समय साबी नदी के किनारे बहुत दूर तक बसी हुई थी। इस बस्ती के प्राचीन चिह्न नदी के कटाव पर अब भी पाए जाते हैं। छठी शताब्दी में इस प्रदेश के उत्तरी भाग पर भाटी क्षत्रियों का अधिकार था। राजौरगढ़ के शिलालेख से पता चलता है कि सन् ९५९ में इस प्रदेश पर गुर्जर प्रतिहार (राजपूत) वंशीय सावर के पुत्र मथनदेव का अधिकार था, जो कन्नौज के भट्टारक राजा परमेश्वर क्षितिपाल देव के द्वितीय पुत्र श्री विजयपाल देव का सामन्त था। पृथ्वीराज चौहान और मंगल निकुम्भ ने ब्यावर के राजपूतों की लड़कियों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किया। सन् १२०५ में कुतुबुद्दीन ऐबक ने चौहानों से यह देश छीन कर पुन: निकुम्भ राजपूतों को दे दिया। १ जून १७४० रविवार को मौहब्बत सिंह की रानी बख्त कुँवर ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम प्रताप सिंह रखा गया। इसके पश्चात् सन् १७५६ में मौहब्बत सिंह बखाड़े के युद्ध में जयपुर राज्य की ओर से लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ। राजगढ़ में उसकी विशाल छतरी बनी हुई है। मौहब्बत सिंह की मृत्यु के बाद उसके पुत्र प्रतापसिंह ने १७७५ ई. को अलवर राज्य की स्थापना की।[3]

अलवर को मेव नाहर खा के वंसज अलावल खां ने अपनी राजधानी बनाया था, उसके नाम पर ही इसका नाम अलवर पडा!

ब्रिटिश गैज़ेटर के अनुसार अलवर का क्षेत्र इन निम्नलिखित मुस्लिम शाखाओ के प्रभुत्व के अनुसार बटा हुआ था।


1. वई क्षेत्र - इस क्षेत्र पर शेखावत राजपूतो का प्रभुत्व था आज का थाना गाज़ी का क्षेत्र कहलाता है।

2. नरुखंड़ - इस क्षेत्र पर नरुका और राजावत राजपूतो का प्रभुत्व हुआ करता था। अलवर के सभी राजा इस क्षेत्र से थे और इस क्षेत्र के अधिकांस युवा फौज बन कर देश की सेवा कर रहे हैं

3. मेवात क्षेत्र - इस क्षेत्र पर मेव जाति(मुस्लिम), मेव जाति अधिक पाई जाती है। । मेवो में जाट राजपूत समेत मिणाओ का मिश्रण है। राजा नाहर खां के वंसजो का काफी समय तक अलवर पर शासन रहा। हसन खां मेवाती इनमे प्रमुख नाम है। जिन्होंने अलवर के किले का निर्माण कराया। राणा सांगा के साथ मिलकर खानवा के मेदान पर बाबर से टकराया और 12 हजार मेवो के साथ शहीद हो गया।

सन 1716 में सौंख के एक शक्तिशाली जाट राजा हठी सिंह तोमर ने संपूर्ण मेवात क्षेत्र को जीतकर मुगल सत्ता का दमन किया और हिंदुओं की रक्षा करी । राजा हठी सिंह ने ब्रज से मुगलों को जड़ से समाप्त कर दिया था ।

अलवर के पर्यटन स्थल

पूरे अलवर को एक दिन में देखा जा सकता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं, कि अलवर में देखने लायक ज्यादा कुछ नहीं है। अलवर ऐतिहासिक इमारतों से भरा पड़ा है। यह दीगर बात है कि इन इमारतों के उत्थान के लिए सरकार कुछ नहीं कर रही है। इसका जीता जागता उदाहरण है नगर की सिटी पैलेस इमारत। इस पूरी इमारत पर सरकारी दफ्तरों का कब्‍जा है, कहने मात्र के लिए इसके एक तल पर संग्राहलय बना दिया गया है, विजय मंदिर पैलेस पर अधिकार को लेकर कानूनी लडाई चल रही है। इसी झगडे के कारण यह बंद पड़ा है, बाला किला पुलिस के अधिकार में है। फतहगंज के मकबरे की स्थिति और भी खराब है, सब कुछ गार्डो के हाथों में है, वे चाहें तो आपको घूमने दें, या मना कर दें। घूमने के लिहाज से अलवर की स्थिति बहुत सुविधाजनक नहीं, पर अलवर का सौन्दर्य पर्यटकों को बार-बार यहां आने के लिए प्रेरित करता है। यह गुज्जर किला है।

फतहगंज का मकबरा पाँच मंजिला है और दिल्ली में स्थित अपनी समकालीन सभी इमारतों में सबसे उच्च कोटि का है। खूबसूरती के मामले में यह हूमाँयु के मकबरे से भी सुन्दर है। यह भरतपुर रोड के नजदीक, रेलवे लाइन के पार पूर्व दिशा में स्थित है। यह मकबरा एक बगीचे के बीच में स्थित है और इसमें एक स्कूल भी है। यह प्राय ९ बजे से पहले भी खुल जाता है। इसे देखने के बाद रिक्शा से मोती डुंगरी जा सकते हैं। मोती डुंगरी का निर्माण १८८२ में हुआ था। यह १९२८ तक अलवर के शाही परिवारों का आवास रहा। महाराजा जयसिंह ने इसे तुड़वाकर यहां इससे भी खूबसूरत इमारत बनवाने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने यूरोप से विशेष सामान मंगाया था, लेकिन दुर्भाग्यवश जिस जहाज में सामान आ रहा था, वह डूब गया। जहाज डूबने पर महाराज जयसिंह ने इस इमारत को बनवाने का इरादा छोड़ दिया। इमारत न बनने से यह फायदा हुआ कि पर्यटक इस पहाड़ी पर बेरोक-टोक चढ़ सकते हैं और नगर के सुन्दर दुश्य का आनंद ले सकते हैं।

यह एक खूबसूरत बाग है, जिसके बीच में एक बड़ा हरित हाऊस है जिसे शिमला कहा जाता है। महाराज शियोधन सिंह ने १८६८ में इस बगीचे को बनवाया और महाराज मंगल सिंह ने १८८५ में शिमला का निर्माण कराया। इस बगीचे में अनेक छायादार मार्ग हैं और कई फव्वारे लगे हुए हैं। आगे दिया शीर्षक कंपनी बाग़ इसी का वर्णन है।

कम्पनी बाग साल के बारह मास खुला रहता है। शिमला (हरित हाउस) में घूमने का समय सुबह 9 से शाम 5 बजे तक है। कम्पनी बाग देखने के बाद आप चर्च रोड की तरफ जा सकते हैं। यहां सेंट एन्ड्रयू चर्च है लेकिन यह अक्सर बंद रहता है। इस रोड के अंतिम छोर पर होप सर्कल है, यह नगर का सबसे व्यस्त स्थान है और यहां अक्सर ट्रैफिक जाम रहता है। इसके पास ही बहुत सारी दुकानें हैं और बीच में ऊपर एक शिव मंदिर है। होप सर्कल से सात सड़के विभिन्न स्थलों तक जाती है। एक घंटाघर तक जाती है जहाँ पर कलाकंद बाजार भी है। एक सड़क त्रिपोलिया गेट से सिटी पैलेस कॉम्पलेक्स तक जाती है। त्रिपोलिया में कई छोटे-मोटे मंदिर हैं। सिटी पैलेस की तरफ जाते हुए रास्ते में सर्राफा बाजार और बजाजा बाजार पड़ते हैं। यह दोनों बाजार अपने सोने के आभूषणों के लिए प्रसिद्ध है।

सिटी पैलेस एक खूबसूरत परिसर है: गेट के पीछे एक मैदान में कृष्ण मंदिर हैं। इसके बिल्कुल पीछे मूसी रानी की छतरी और अन्य दर्शनीय स्थल हैं। इस महल का निर्माण १७९३ में राजा बख्तावर सिंह ने कराया था। पर्यटक इसकी खूबसूरती की तारीफ किए बिना नहीं रह पाते। पूरी इमारत में जिलाधीश और पुलिस सुपरिटेण्डेन्ट आदि के सरकारी दफ्तरों का कब्‍जा है। वैसे इस इमारत के सबसे ऊपरी तल पर तीन हॉल्स में विभक्त संग्रहालय भी है जिसे देखने का समय सुबह १० बजे से शाम ५ बजे तक है, शुक्रवार को अवकाश रहता है। पहले हॉल में शाही परिधान और मिट्टी के खिलौने रखे हैं, दूसरे हॉल में मध्य एशिया के अनेक जाने-माने राजाओं के चित्र लगे हुए हैं। इस हॉल में तैमूर से लेकर औरंगज़ेब तक के चित्र लगे हुए हैं। तीसरे हॉल में आयुद्ध सामग्री प्रदर्शित है। इस हॉल का मुख्य आकर्षण अकबर और जहांगीर की तलवारें हैं। इसी संग्रहालय की 'एक मियान में दो तलवार' यहाँ का विशेष आकर्षण है।

सिटी पैलेस के बिल्कुल पीछे एक छोटा खूबसूरत जलाशय है, जिसे सागर कहते हैं। इसके चारों तरफ दो मंजिला खेमों का निर्माण किया गया है। तालाब के पानी तक सीढियाँ बनी हैं। इस जलाशय का प्रयोग स्नान के लिए किया जाता था। यहां कबूतरों को दाना खिलाने की परंपरा है। जलाशय के साथ मंदिरों की एक शृंखला भी है। दायीं तरफ राजा बख्तावर सिंह का स्मारक और शहीदों की याद में बना संगमरमर का स्मारक भी है। इसका नाम राजा बख्तावर सिंह की पत्नी मूसी रानी के नाम पर रखा गया है, जो राजा बख्तावर सिंह की चिता के साथ सती हो गई थी।

यह खूबसूरत महल १९१८ में बनाया गया था। यह महाराजा जयसिंह का आवास था। इसका ढांचा परंपरागत इमारतों से बिल्कुल अलग है। इसके अंदर एक राम मंदिर भी है। सामने से पूरी तरह दिखाई नहीं देता लेकिन इसके पीछे वाली झील से इस महल का मनोरम दृश्य देखा जा सकता है। महल को देखने के बाद झील के साथ वाले मार्ग से बाल किला पहुंचा जा सकता है। ऑटो वाले इन दोनों स्थलों तक पहुंचाने के लिए २०० रु लेते हैं। पारिवारिक ङागडे के कारण यह महल आजकल बंद है, यहां पर्यटकों को घूमने की अनुमति नहीं है।

सिटी पैलैस परिसर अलवर के पूर्वी छोर की शान है। इसके ऊपर अरावली की पहाड़ियाँ हैं, जिन पर बाला किला बना है। बाला किले की दीवार पूरी पहाड़ी पर फैली हुई है जो हरे-भरे मैदानों से गुजरती है। पूरे अलवर नगर में यह सबसे पुरानी इमारत है, जो लगभग ९२८ ई० में निकुम्भ राजपूतों द्वारा बनाई गई थी। अब इस किले में देख नहीं सकते, क्योंकि इसमे पुलिस का वायरलैस केन्द्र है। अलवर अन्‍तर्राज्‍यीय बस अड्डे से यहां तक अच्छा सड़क मार्ग है। दोनों तरफ छायादार पेड़ लगे हैं। रास्ते में पत्थरों की दीवारें दिखाई देती हैं, जो बहुत ही सुन्दर हैं। किले में जयपोल के रास्ते प्रवेश किया जा सकता है। यह सुबह ६ बजे से शाम ७ बजे तक खुला रहता है। कर्णी माता का मंदिर इसी के रास्ते में है और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए यह मंगलवार और शनिवार की रात को ९ बजे तक खुला रहता है। किले में प्रवेश करने के लिए तब पुलिस सुपरिटेण्डेन्ट की अनुमति की आवश्यकता नहीं पडती। पर्यटकों को केवल संतरी के पास रखे रजिस्टर में अपना नाम लिखना होता है। इसके बाद वह किले में घूम सकते हैं। आपातकाल के समय आप पर्यटक सुपरिटेण्डेन्ट के कार्यालय में फोन कर सकते हैं।

हरी-भरी पहाडियां केवल अलवर में ही नहीं है, इसके पास के इलाकों में भी अनेक खूबसूरत झीलें और पहाडियां हैं। यहां घूमने का सबसे उपयुक्त समय मानसून है। नगर के सबसे करीब जय समन्द झील है। इसका निर्माण अलवर के महाराज जय सिंह ने १९१० में पिकनिक के लिए करवाया था। उन्होंने इस झील के बीच में एक टापू का निर्माण भी कराया था। झील के साथ वाले रोड पर केन से बने हुए घर बड़ा ही मनोरम दृश्य प्रस्तुत करते हैं। यह झील का सबसे सुन्दर नजारा है। जय समन्द रोड बहुत ही परेशान करने वाला है। अत: जय समन्द, सिलीसेड और अलवर घूमने के लिए ऑटो के स्थान पर टैक्सी लीजिए। यह चार-पांच घंटे में आपको अंतर्राज्यीय बस अड्डे से अलवर पहुंचा देगी। इसके लिए टैक्सी वाले पर्यटकों से ४००-५०० रु लेते हैं। झील के पास रूकने की कोई व्यवस्था नहीं है।

सिलीसेड झील अलवर की सबसे प्रसिद्ध और सुन्दर झील है। इसका निर्माण महाराव राजा विनय सिंह ने १८४५ में करवाया था। इस झील से रूपारल नदी की सहायक नदी निकलती है। मानसून में इस झील का क्षेत्रफल बढ़कर १०.५ वर्ग किमी हो जाता है। झील के चारों ओर हरी-भरी पहाडियां और आसमान में सफेद बादल मनोरम दृश्य प्रस्तुत करते हैं। इस झील को राजस्थान का नंदनकानन भी कहते हैं इस झील की भराव क्षमता लगभग २८ फीट हैं। वर्षा ऋतु में यहाँ पर बहुत पर्यटक आते हैं। इस झील के पूर्व दिशा में एक अन्य झील जयसमंद स्थित है।

कुंडला

कुण्डला गाँव चारों ओर से पर्वत से घिरा हुआ है। यहाँ का दृष्य बहुत हरा-भरा रहता है। इस स्‍थान को गरबा जी भी कहा जाता है । यह स्‍थाना पर्वतारोहियों के लिये भी विख्‍यात है । विभिन्‍न प्रकार की कैडैट्स यहां पर पर्वत रोहण के लिए आते हैं । यहां पर एक झरना भी है । जिसमें नहा कर लोग आनंद की अनुभूति करते हैं ।

झिलमिलदेह झील अजबगढ

दौसा अलवर वाया अजबगढ थानागाजी रोड़ पर यह झील चारों ओर से अरावली श्रृंखलाओं से घिरे अजबगढ बाँध के एकदम निचे ( नहर क्षेत्र में ) स्थित है यहाँ पर एक छोटा सा घाट बना हुआ है जहाँ पर लोग कूद कूद कर नहाने का मोका नहीं गवाँते है। लेकिन वर्तमान में वर्षा के अभाव की वजह से यह झील अपना अस्तित्व बचाने की मुश्किल में है। इस झील के एक तरफ भारत की जानी पहचानी पाँच सीतारा होटल अम्नबाघ होटल है जो विदेशी पर्यटकों को अजबगढ भानगढ की ऐतिहासिक धरा पर बुलाने के लिए विश्व विख्यात है। वर्षाती दिनों में यदि अजबगढ बाँध पूर्ण रूप से भर जाए तो यहाँ का दृश्य मुम्बई और शिमला दोनों के मिश्रण जैसा हो जाता है क्योंकि अजबगढ बाँध समुद्र जैसा दृश्य दिखाने व इसके अन्दर पुरानी छत्तरीयाँ टापू की तरह और बाँध के ऊपरी छोर पर अजबगढ के 27 गुवाड़ा (गाँव) बसे हुए है जिसमें गुवाड़ा बिरकड़ी की सीमाओं में पाँच सीतारा होटल अमनबाग है जो प्रकृति की छँटाओं का आनंद लेने का अनोखा स्थान है। इसके अलावा अलवर में नैहड़ा की छतरी जिसमें मुख्यतः अजबगढ प्रतापगढ व थानागाजी के ऐतिहासिक खण्डर व किले महल शामिल है, ऐतिहासिक नगर भानगढ, पवित्र पूजनिय धाम नारायणी माता व ऋषि पाराशर महाराज का मंदिर है जो एक आस्था के साथ प्रकृति के सोन्द्रय लिय क्षेत्रीय लोगों के दिलों में बसा हुआ है। यहाँ का सुप्रसिद्ध नारायणी माता का मंदिर सती धाम है जिसकी शक्ति का आभास वहाँ जाते ही हो जाता है क्योंकि माँ की शक्ति की वजह से मंदिर के आगे आज भी पवित्र जल धारा बहती है जो नदी नाले से नहीं बल्कि समतल धरा से अपने आप निकल रही है, खास बात यह है कि यह धारा रूकी हुई नहीं बल्कि लगातार गतिशील है राजस्थान में यह धाम श्रद्धा के लिए व मनोकामना के लिए सुप्रसिद्ध है।

अलवर की संस्कृति

पहनावा

अलवर में धोती- कुर्ता तथा साफा (सिर पे पहनने का) पुरुषों का पहनावा है जो कि एक रौबदार पहनावा है। तथा स्त्रीयां लहंगा-लूगड़ी पहनती हैं।

संगीत

अलवर में भपंग वाद्ययंत्र राजस्थानी लोकगीत की पहचान है। यह मेवाती संगीत संस्कृति की धरोहर है। इस वाद्ययंत्र के उस्ताद जहुर खान मेवाती माने जाते हैं। इनकी कहानी बहुत ही रोचक है। सालों पहले एक दिन मेवाती जी बीडी बेच रहे थे और ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए भपंग बजा रहे थे। उस समय अभिनेता दिलीप कुमार अलवर में शूटिंग कर रहे थे। उन्होंने मेवाती जी को भपंग बजाते हुए सुन लिया। उनसे प्रभावित होकर दिलीप जी उन्हें बॉलीवुड ले गए। वहां उन्होंने अनेक फिल्मों का पार्श्‍व संगीत तैयार किया जिनमें गंगा-जमुना, नया दौर और आंखे प्रमुख हैं। उन्होंने देश से बाहर भी अपनी कला का प्रदर्शन किया। अब वह अलवर में ही रहे हैं और वहीं भपंग बजाने की शिक्षा देते रहे। भपंग बजाने वाले सभी कलाकार मुस्लिम होते हुए भी शिव भक्त हैं: वह यह मानते हैं कि इस वाद्ययंत्र की उत्पति शिव के डमरू से हुई है।

मानसून का जादू

मानसून में अलवर की पहाडियां हरियाली से भर जाती हैं, झील पानी से भरी होती हैं और पहाडियों से गिरते जल स्रोत अलवर की निराली छटा पेश करते हैं। अलवर से दक्षिण-पश्चिम की तरफ 45 किलोमीटर दूर तालवृक्ष नाम की जगह है। वर्षा ऋतु के समय यहां घूमने का अपना ही आनंद है। सरिस्का-अलवर रोड पर कुशलगढ से 10 किलोमीटर का रास्ता प्राकतिक सौन्दर्य से भरा पड़ा है। इसी रास्ते पर गंगा-मन्दिर है और गर्म-ठंडे पानी के जलस्त्रोत है। अलवर से 25 किलोमीटर दूर नतनी का बरन गांव हैं। यहां से 6 किलोमीटर दूर नालदेश्वर नामक जगह है। यह दोनों जगह अपनी हरियाली के लिए प्रसिद्ध है। यहां पर प्राकृतिक रूप से बना हुआ शिवलिंग भी है। सिलीसेड झील से 10 किलोमीटर दूर गर्भ जी और डेहरा गांव के निकट चुहाड सिद्ध नाम के ङारने हैं। इनसे थोडी ही दूरी पर विजय मंदिर पैलेस स्थित है।

ठहरने का स्थान

अलवर में रूकने के लिए बहुत सारे होटल हैं और यह सस्ते भी हैं। लेकिन इनमें से परिवारों के रूकने के लिए कुछ ही होटल उपयुक्त हैं। अलवर में रूकने के लिए अनेक वैभवशाली होटल भी हैं जहां ज्यादा पैसे देकर अनेक और भव्य सुविधाओं का लाभ लिया जा सकता है। यह सभी होटल अलवर के कुछ किलोमीटर के दायर में ही हैं।

विरासत

अलवर की सबसे प्रसिद्ध ऐतिहासिक विरासत नीमराना-रन द हिल फोर्ट केसरोली अलवर से १२ किमी दूर है। इस किले का निर्माण १४वीं सदी में किया गया था। अब यह एक होटल में बदल चुका है, इसमें २१ कमरें हैं। इन कमरों के नाम बड़े ही राजसी शैली में रखे गए हैं जसे हिंडोला महल और सितारा महल। जब अलवर में पर्यटकों की संख्या कम होती है तो १ मई से ३१ अगस्त तक यहां आने वालों को २०-४० प्रतिशत की छुट दी जाती है। इस समय कमरे को सुबह ९ बजे से शाम ५ बजे तक के लिए किराए पर लिया जा सकता है और इस पर होटल ६० प्रतिशत की छूट भी देता है। होटल ऊंटो की सवारी के लिए भी प्रबन्ध करता है। इसे भारत की सबसे पुरानी ऐतिहासिक विरासत कहा जाता है जहां आप रूक सकते हैं। यह होटल एक पहाड़ी पर बना हुआ है। इसका परकोटा २१४ फुट ऊंचा है। इसका निर्माण यदुवंशी राजाओं ने१४वीं सदी में करवाया था।

अलवर से लगभग ७ किलोमीटर दूर होटल बुर्ज हवेली है। यह हवेली अलवर की सबसे नवीन विरासतों में से एक है। इस हवेली को जून २००५ में होटल में परिवर्तित का दिया गया। यह २४० वर्ष पुरानी है और अलवर-राजगढ मार्ग पर बुर्ज गांव में स्थित है। इस होटल में सभागार, तरणताल और रेस्तरां आदि सुविधाएं दी जाती है। इसके अलावा यहां पर राजस्थानी, भारतीय, चाइनीज और कॉन्टिनेंटल व्यंजन परोसे जाते हैं।

इनके अलावा सर्किट हाऊस भी एक विकल्प है जहां पर ठहरा जा सकते हैं। यह महाराज जयसिंह की विरासत है, सर्किट हाऊस अलवर की दक्षिण दिशा में रघु मार्ग और नेहरू मार्ग के बीच में स्थित है। यहां ठहरने के लिए आपको जिला मजिस्ट्रेट की अनुमति की आवश्यकता पडती है। अनुमति प्राप्त करने के लिए आपको जिला मजिस्ट्रेट को फैक्स करना होता है। इसका फैक्स न. है २३३६१०१, टेलिफोन न. है २३३७५६५, इसके अलावा सिलीसेड में आर.टी.डी.सी. का होटल लेक पैलेस भी अच्छा विकल्प है। इसके अलावा और भी विकल्प है।

खानपान

नगर में खाने के बहुत सारे विकल्प है। बेकरी की कुछ दुकानें है लेकिन वहां पर केवल आईसक्रीम, पेस्ट्री और पिज्जा ही मिलते हैं। जिनका सेवन सब लोग नहीं कर सकते। नगर में बहुत से अच्छे रेस्तरां है।जिनमें से एक है प्रेम पवित्र भोजनालय। यह अपने राजस्थानी व्यंजनों के लिए प्रसिद्ध है विशेष तौर पर पालक पनीर कढी-पकौडी, गट्टे की सब्‍जी और मिस्सी रोटी के लिए। भोजन की विविधता इस बात पर भी निर्भर करती है कि आप कहां ठहरते हैं। मोती डुंगरी बस टर्मिनल के पास अच्छे भोजनालय है। यहां पर अनेक व्यंजनों का आनंद लिया जा सकता है। इन सबके अलावा अलवर का मिल्क केक भी बहुत प्रसिद्ध है। स्थानीय लोग इसे कलाकंद के नाम से पुकारते हैं। कलाकंद के लिए ठाकुर दास एण्ड सन्स की दुकान पूरे अलवर नगर में प्रसिद्ध है।अलवर का कलाकंद पूरे देश में बहुत पसंद किया जाता है।

खरीदारी

फोर्ट-पैलेस की अपनी दुकान है। इसका नाम नीमराना शॉप है। इस दुकान पर आप कपड़े, मोमबत्तियां आदि वस्तुएं खरीद सकते हैं। फोर्ट पैलेस के बिल्कुल नीचे दो दुकानें हैं। एक का नाम अमिका आर्टस है और दूसरी का श्याम सिल्वर क्राफ्ट। इन दुकानों से राजस्थानी स्मारिकाओं की खरीदारी की जा सकती है। अगर आप परंपरागत आभूषणों की खरीदारी करना चाहते हैं तो पुराने बाजार चले जाइए। यहां ३५-४० दुकानें हैं। यहां से मनपसंद आभूषणों की खरीदारी की जा सकती हैं। इन दुकानों की हाथ की बनी हुई पायल बहुत ही प्रसिद्ध है।

स्थिति

अलवर राजस्थान के उतर-पूर्व में अरावली की पहाडियों के बीच में स्थित है और दिल्ली के पास है।

दूरी

अलवर जयपुर से १४८ किलोमीटर और दिल्ली से १५६ किलोमीटर दूर है। यात्रा में लगने वाला समय: जयपुर से तीन घंटे, दिल्ली से साढे तीन घंटे

मार्ग

जयपूर से राष्ट्रीय राजमार्ग ८ द्वारा शाहपूरा और अमेर होते हुए अलवर पहुंचा जा सकता है। दिल्ली से राष्ट्रीय राजमार्ग ८ द्वारा धारूहेडा और मानेसर होते हुए अलवर पहुंचा जा सकता है।

भ्रमण समय

अलवर घूमने के लिए सबसे अच्छा मौसम अक्टूबर से मार्च का है लेकिन मानसून के समय भी अलवर घूमने जाया जा सकता है। उस समय अलवर की छटा देखने लायक होती है।

आवागमन

वायु मार्ग

अलवर के सबसे नजदीक हवाई अड्डा सांगनेर है। यहां से अलवर पहुंचाने के लिए टैक्सी वाले ७००-८०० रू लेते हैं।

रेल मार्ग

रेलमार्ग द्वारा भी आसानी से अलवर पहुंचा जा सकता है। दिल्ली से दिल्ली-जयपुर, अजमेर-शताब्दी, जम्मू-दिल्ली और दिल्ली-जैसलमेर एक्सप्रेस द्वारा आसानी से अलवर रेलवे स्टेशन पहुंचा जा सकता है। यहां से आगे की यात्रा आप टैक्सी द्वारा कर सकते हैं। अगर आपने होटल में आरक्षण करवा रखा है तो होटल की गाडी आपको स्टेशन पर लेने आएगी।

सडक मार्ग

दिल्ली से अलवर (राष्ट्रीय राजमार्ग ८ से) धारूहेडा पहुँच कर बाएं भिवाडी की ओर मुडिए, थोड़ा आगे दायें भिवाडी-अलवर टोल मार्ग से आसानी से अलवर पहुंचा जा सकता है। टॉल रोड पर चलने के लिए राजस्व नहीं देना पड़ता है। दिल्ली से गुड़गाँव, सोहना, फिरोजपुर झिरका, नौगाँव होकर भी अलवर पहुंचा जा सकता है। हालांकि यह दोनों राष्ट्रीय राजमार्ग नहीं हैं, पर दोनों ही मार्ग अब अच्छे हैं। दोनों ही से दूरी लगभग समान १६० कि॰मी॰है।


सन्दर्भ

  1. Alwar-Rajasthan. "History|Alwar Rajasthan,Alwar-Rajasthan". alwar.rajasthan.gov.in (अंग्रेज़ी में). मूल से 4 जुलाई 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-07-26.
  2. Alwar-Rajasthan. "History|Alwar Rajasthan,Alwar-Rajasthan". alwar.rajasthan.gov.in (अंग्रेज़ी में). मूल से 4 जुलाई 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-07-26.
  3. "जानिए अलवर के राजगढ़ का गौरवशाली इतिहास, आज हैं कुछ ऐसे हाल". Patrika News (hindi में). अभिगमन तिथि 2020-06-06.सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)


बाहरी कड़ियाँ

राजस्थान में अलवर का अतीत भी बड़ा भव्य है (प्रभासाक्षी)