अरारोट
अरारोट | |
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वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | पादप |
अश्रेणीत: | एंजियोस्पर्म |
अश्रेणीत: | एकबीजपत्री |
अश्रेणीत: | कॉमेलिनिड्स |
गण: | ज़िन्जीबेरालेस |
कुल: | मैरान्टेसी |
वंश: | मैरान्टा |
जाति: | M. arundinacea |
द्विपद नाम | |
मैरान्टा अरुंडिनेशी L. |
अरारोट, (अंग्रेज़ी:ऍरोरूट) जिसका वैज्ञानिक नाम 'मैरेंटा अरुंडिनेशी' (Maranta arundinacea) होता है, एक बहुवर्षी पौधा होता है। यह वर्षा वन का आवासी है। इसके राइज़ोम से प्राप्त होने वाले खाद्य मंड (स्टार्च) को भी अरारोट ही कहा जाता है। आयुर्वेद के अनुसार अरारोट सही पोषणकर्ता, शान्तिदायक, सुपाच्य, स्नेहजनक, सौम्य, विबन्ध (कब्ज) नाशक, दस्तावर होता है। पित्तजन्य रोग, आंखों के रोग, जलन, सिरदर्द, खूनी बवासीर और रक्तपिक्त आदि रोगों में सेवन किया जाता है। कमजोर रोगियों और बालकों के लिए यह काफी लाभदायक है यह आंत्र और मूत्राशय सम्बन्धी रोगों के बाद की कमजोरी में यह आराम पहुंचाता है।
विभिन्न भाषाओं में इसके कई नाम हैं। हिन्दी में अरारोट, बिलायती तीखुर, मराठी में आरारूट, बंगला में ओरारूट, तवक्षीर,गुजराती में तवखार, अरारोट; अंग्रेज़ी में ऍरोरूट, वेस्ट इण्डियन ऍरोरूट कहते हैं।[1]
अरारूट अथवा अरारोट (अंग्रेजी में ऐरोरूट) एक प्रकार का स्टार्च या मंड है जो कुछ पौधों की कंदिल (ट्यूबरस) जड़ों से प्राप्त होता है। इनमें मरेंटसी कुल का सामान्य शिशुमूल (मरंटा अरंडिनेसिया) नामक पौधा मुख्य है। यह दीर्घजीवी शाकीय पौधा है जो मुख्यत: उष्ण देशों में पाया जाता है। इसकी जड़ों में स्टार्च के रूप में खाद्य पदार्थ संचित रहता है। १० से १२ महीने तक के, पूर्ण वृद्धिप्राप्त पौधे की जड़ में प्राय: २६ प्रतिशत स्टार्च, ६५ प्रतिशत जल और शेष ९ प्रतिशत में अन्य खनिज लवण, रेशे इत्यादि होते हैं। मरंटा अरंडिनेसिया के अतिरिक्त, मैनीहार युटिलिस्मा, कुरकुमा अंगुस्टीफोलिया, लेसिया पिनेटीफ़िडा और ऐरम मैकुलेटम से भी अरारूट प्राप्त होता है।
अरारूट निकालने की विधि
कंदिल जड़ों को निकालकर अच्छी तरह धोने के पश्चात् उनका छिलका निकाल दिया जाता है। फिर उन्हें अच्छी तरह पीसकर दूधिया लुगदी बना ली जाती है। तब लुगदी को अच्छी तरह धोया जाता है, जिससे जड़ का रेशेदार भाग अलग हो जाता है। यह फेंक दिया जाता है। बचे हुए दूधिया भाग को, जिसमें मुख्यतया स्टार्च रहता है, महीन चलनी या मोटे कपड़े पर डालकर उसमें का पानी निकाल दिया जाता है। बचा हुआ सफेद भाग स्टार्च होता है जिसे पानी से फिर भली-भाँति धो तथा सुखाकर अंत में पीस लिया जाता है। इसी रूप में अरारूट बाजार में बिकता है।
अरारूट का स्टार्च बहुत छोटे दानों का और सुगमता से पचनेवाला होता है। इस गुण के कारण इसका उपयोग बच्चों तथा रोगियों के भोजन के लिए विशेष रूप से होता है।
अरारूट के नाम पर बाजार में बिकनेवाले पदार्थ बहुधा या तो कृत्रिम होते हैं या उनमें अनेक प्रकार की मिलावटें होती हैं। कभी-कभी आलू, चावल, साबूदाना या ऐसी ही अन्य वस्तुओं के महीन पिसे हुए आटे अरारूट के नाम पर बिकते हैं या इन्हें शुद्ध अरारूट के साथ विभिन्न मात्रा में मिलाकर बेचा जाता है। कृत्रिम या मिलावटी अरारूट को सूक्ष्मदर्शी द्वारा निरीक्षण करके पहचाना जा सकता है।
सन्दर्भ
- इन्हें भी देखें