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अमेरिकी साहित्य

आधुनिक काल के अमेरिकी साहित्य ने विश्व साहित्य पर अपनी छाप डाल दी है। विशेषतः शैली और प्रयोग पर यहाँ से नए विचार निकल पूरे विश्व के साहित्य में अपनाए गए। 'अमरीका' से यहाँ तात्पर्य संयुक्त राज्य अमरीका से है जहाँ की भाषा अंग्रेजी है। अमरीका की तरह उसका साहित्य भी नया है।

आदिकाल

१७वीं सदी में अमरीका में शरण लेनेवाले पिल्ग्रिम फादर अपने साथ इंग्लैंड की सांस्कृतिक परंपरा भी लेते आए। इसलिए लगभग दो सदियों तक अमरीकी साहित्य अंग्रेजी साहित्य की लीक पर चलता रहा। १९वीं सदी में जाकर उसे अपना व्यक्तित्व मिला।

नवागंतुकों के सामने जीवननिर्वाह की कठिनता, कला और साहित्य के प्रति प्यूरिटन संप्रदाय की अनुदारता और प्रतिभा की न्यूनता के कारण अमरीकी साहित्य का आदिकाल उपलब्धिविरल है। इस काल में वर्जीनिया और मसाच्यूसेट्स साहित्यरचना के प्रधान केंद्र थे, जिनमें वर्जीनिया पर सामंती और मसाच्यूसेट्स पर मध्यवर्गीय इंग्लड का गहरा असर था। किंतु दोनों ही केंद्रों में प्यूरिटनों का प्रभुत्व था। साहित्यरचना का काम पादरियों के हाथ में था, क्यांकि औरों की अपेक्षा उन्हें अधिक अवकाश था। इसलिए इस युग के साहित्य का अधिकांश धर्मप्रधान है। मुख्य रूप में यह युग पत्रों, डायरी, इतिहास और धार्मिक तथा नीतिपरक कविताओं का है।

नए उपनिवेश और उनके विकास की अमित संभावनाओं का वर्णन, शासन में धर्म और राज्य के पारस्परिक संबंधों के विषय में विचारसंघर्ष, आत्मकथा, जीवनचरित, साहसिक यात्राएँ तथा अभियान और धार्मिक उपदेश गद्यलेखकों के मुख्य विषय बने। रुक्ष और सरल किंतु सशक्त वर्णनात्मक गद्यरचना में वर्जीनिया के कैप्टेन जॉन स्मिथ और उनकी रोमांचकारी कृतियाँ, ए ट्रू रिलेशन (१६०८) और एक मैप ऑव वर्जीनिया, (१६१२) विशेष उल्लेखनीय हैं। इसी तरह का वर्णनात्मक गद्य जॉन हैंमंड, डेनियल डेंटन, विलयम पेन, टॉमस ऐश, विलयम वुड, मेरी रोलैंडसन और जॉन मेसन ने भी लिखा।

धार्मिक वादविवाद को लेकर लिखी गई नैथेनियल वार्ड की रचना, द सिंपिल कॉब्लर ऑव अग्गवाम (१६४७) अपने व्यंग्य और विद्रूप में उस युग की महत्वपूर्ण उपलब्धि है। वार्ड की तरह ही टॉमस मार्टन ने दि न्यू इंग्लिश कैनन (१६४७) में प्यूरिटनों का व्यंग्यात्मक चित्र प्रस्तुत किया था। दूसरी ओर स्टर्न जान व्थ्राॉिंप ने अपने जर्नल (१६३०-४९) और इंक्रिस मेदर और उसके पुत्र कॉटन मेदर ने अपनी रचनाओं में प्यूटिन आदर्शों और धर्मप्रधान राजसत्ता का समर्थन किया। कॉटान की मैगनेलिया क्रिस्टी अमेरिकाना तत्कालीन प्यूरिटन संप्रदाय की सबसे प्रतिनिधि और समृद्ध रचना है। उस युग के अन्य गद्यकारों में विलयम बेडफर्ड, सैमुएल सेवाल, टॉम्स शेपर्र्ड, जान कॉटन, रोजर विलियम्स और जॉन वाइज़ के नाम उल्लेखनीय हैं। इनमें से अनेक १८वीं सदी में भी लिखते रहे।

१७वीं सदी की कविता अनुभूति से अधिक उपदेश की है और उसका रूप अनगढ़ है। दि बे सामबुक (१६४०) इसका उदाहरण है। कवियों में तीन विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं-माइकेल विगिल्सवर्थ, ऐनी ब्रेडस्ट्रीट और एडवर्ड टेलर। दिव्य आनंद और वेदना, ईशभक्ति, प्रकृतिवर्णन और जीवन के साधारण सुख-दु:ख उनकी कविताओं के मुख्य विषय हैं। निष्कपट अनुभूति के बावजूद इनकी कविता में कलात्मक सौंदर्य की कमी है। ब्रेडस्ट्रीट की कविता में स्पेंसर, सिडनी और सिलवेस्टर तथा टेलर की कविता में डन, क्रेशा, हर्बर्ट इत्यादि अंग्रेजी कवियों की प्रतिध्वनियाँ स्पष्ट हैं।

नाटक और आलोचना का जन्म आगे चलकर हुआ।

१८वीं सदी

१७वीं सदी के यथार्थवादी और कल्पनाप्रधान गद्य तथा धार्मिक कविता की परंपरा १८वीं सदी में न केवल पुराने बल्कि नए लेखकों में भी जीवित रही। उदाहरणार्थ, विलियम विर्ड और जोनैदन एडवर्ड्‌स ने क्रमश: कैप्टेन स्मिथ और मेदर का अनुसरण किया। एडवर्ड्‌स की रचनाओं में उसकी तीव्र प्यूरिटन भावना, गहन चिंतन, अद्भुत तर्कशक्ति और रहस्यवादी प्रवृत्तियाँ दीख पड़ती हैं। लेकिन प्यूरिटन कट्टरपंथ के स्थान पर धार्मिक उदारता का भी उदय हो रहा था, जिसे जोनैदन मेह्म और सेवाल की रचनाओं ने व्यक्त किया। सेवाल ने अपनी डायरी में "धर्म की व्यावसायिक परिकल्पना' का आग्रह किया। बिर्ड की दि हिस्ट्री ऑव दि डिवाइडिंग लाइन (१७२९) और सेरानाइट के जर्नल (१७०४) में सत्रहवीं सदी के पुराने प्रभावों के बावजूद इंग्लैंड के १८वीं सदी के साहित्य की लौकिकता, मानसिक संतुलन, व्यंग्य और विनोदप्रियता, जीवन और व्यक्तियों का यथार्थ चित्रण और उचित लाघव तथा स्वच्छता के आदर्श की छाप है। वास्तव में इस सदी के अमरीकी साहित्यमंदिर की प्रतिमाएँ अंग्रेजी के प्रसिद्ध गद्यकार और कवि ऐडिसर, स्विफ्ट और गोल्डस्मिथ हैं। सदी के मध्य तक आते-आते धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक चिंतन में प्यूरिटन सहजानुभूति, रहस्यवाद और अलौकिकता को तर्क और विज्ञान ने पीछे ढकेल दिया। इंग्लैंड और उसके उपनिवेश के बीच बढ़ते हुए संघर्षों और अमरीकी राज्यक्रांति ने नई चेतना को और भी वेग तथा बल दिया। उसके सबसे समर्थ अग्रणी बेंजामिन फ्रैंकलिन (१७०६-९०) और टॉमस पेन (१७३७-१८०९) थे। अमरीका की आधुनिक संस्कृति के निर्माण में इसका महान्‌ योग है।

व्यवसायी, वैज्ञानिक, अन्वेषक, राजनीतिज्ञ और पत्रकार फ्ऱैकलिन के साहित्य का आकर्षण उसके असाधारण किंतु व्यावहारिक, संस्कृत, संयमित और उदास व्यक्तित्व में है। उसकी आटोबायोग्राफ़ी अत्यंत लोकप्रिय रचना है। उसके पत्रों और "डूगुड' शीर्षक तथा "बिज़ीबडी' नाम से लिखे गए निबंधों में सदाचार और जीवन की साधारण समस्याओं की सरल, आत्मीय और विनोदप्रिय अभिव्यक्ति है, लेकिन उसकी रचना "रूल्स फ़ॉर रिड्यूसिंग ए ग्रेट एंपायर टु ए स्माल वन' (१७९३) से उसकी प्रखर व्यंग्य और कटाक्षशक्ति का भी पता। चलता है। टामस पेन का साहित्य उसके क्रांतिकारी जीवन का अविभाज्य अंग है। फ्ऱैकलिन की सलाह से वह १७७४ ई. में इंग्लैंड छोड़कर अमरीका आया और दो वर्ष बाद ही उसने अमरीका की पूर्ण स्वतंत्रता के समर्थन में कामनसेंस की रचना की। दी एज ऑव रीजन (१७९४-९६) में उसने ईसाई धर्मे पर गहरी चोट कर डीइज्म का समर्थन किया। बर्क के विरुद्ध फ्रांसीसी क्रांति के पक्ष में लिखी गई उसकी रचना दि राइट्स ऑव मैन ने उस युग में हर देश के क्रांतिकारियों का पथप्रदर्शन किया। उसके गद्य में क्रांतिकारी विचारों की ऋजु ओजस्विता है।

सैमुएल ऐडम्स, जॉन डिकिन्सन, जोज़ेफ गैलोवे इत्यादि ने भी उस युग की राजनीतिक हलचल को अपनी रचनाओं से प्रभावित किया। लेकिन उनसे अधिक महत्वपूर्ण गद्यलेखक हेक्टर सेंट जान दि स्रेवेकूर है जिसने लेटर्स फ्रॉम ऐन अमेरिकन फार्मर (१७६२) और स्केचेज़ ऑव एटींथ सेंचुरी अमेरिका में अमरीकी किसान और प्रकृति का आदर्श रोमानी चित्र प्रस्तुत किया। दास-प्रथा-विरोधी जॉन वूलमैन (१७२०-७२) की विशेषता उसकी सरलता और माधुर्य है।

स्वतंत्रता के बाद शासन में केंद्रीकरण के पक्ष और विपक्ष में होनेवाले वादविवाद के संबंध में अलेक्ज़ैंडर हैमिल्टन, जॉन जे और टॉमस जेफर्सन के नाम उल्लेखनीय हैं। जेफ़र्सन द्वारा लिखित विश्वविख्यात दि डिक्लरेशन ऑव इंडिपेंडेंस का गद्य अपनी सरल भव्यता में अद्वितीय है।

१८वीं सदी की कविता का एक अंश उन गीतों का है जो युद्धकाल में लिखे गए और जिनमें यांकी डूडिल, नैथन हेल और एपिलोग बहुत प्रसिद्ध हैं। इस सदी के कुछ कवियों, जैसे ओडेल, हॉप्किन्सन, राबर्ट ट्रीट पेन, इवान्स और क्लिफ़्टन ने अत्यंत कृत्रिम शैली की रचनाएँ कीं। इनसे भिझ प्रकार के कवि कानेक्टिकट या हार्टफर्ड विट्स के नाम से पुकारे जानेवाले डेविड हफ्ऱेंज, टिमोथी ड्वाइट, जोएल्‌ बार्लो, जॉन ट्रंबल, डाक्टर सैमुएल हाप्किंस, रिचर्ड ऐल्सप और थियोडोर ड्वाइट थे जिन्होंने पोप को आदर्श मानकर व्यंग्यप्रधान द्विपदियाँ और महाकाव्य लिखे। इनके लिए रीतिसम्मत शुद्धता कविता का सबसे बड़ा गुण थी। इन कवियों में टिमोथी ड्वाइट् ट्रंबुल और बार्लो में अपेक्षाकृत अधिक मौलिकता थी। लेकिन इस सदी का सबसे बड़ा कवि फ़िलिप फ़ेनो (१७५२-१८३२) है जो एक ओर अत्यंत तिक्त विद्रूप दि ब्रिटिश प्रिज़नशिप (१७८१) का तो दूसरी ओर दि वाइल्ड हनीसक्‌ल्‌ जैसे तरल गीतिकाव्य का स्रष्टा है। उसकी कविताओं ने १९वीं सदी की रोमानी कविता की जमीन तैयार की।

इस सदी के अंतिम भाग में उपन्यास और नाटक का भी उदय हुआ। टॉमस गॉडफ़े द्वारा लिखित दि प्रिंस ऑव पार्थिया (१७५९) अमरीका का पहला नाटक है, जिसे १७६७ में व्यावसायिक रंगमंच पर खेला गया। इसी प्रकार रायल टाइलर रचित दि कंट्रास्ट (१७८७) अमरीका का पहला प्रहसन है, हालाँकि उसमें शेरिडन और गोल्डस्मिथ की प्रतिध्वनियाँ स्थान-स्थान पर हैं। विलयम डन्लप इस युग का एक और उल्लेखनीय नाटककार है।

अमरीका का पहला उपन्यासकार चार्ल्स ब्रॉकडेन ब्राउन (१७७२-१८१०) है जिसके प्रसिद्ध उपन्यास वाइलैंड (१७९६), आरमंड (१७९८), आथर मर्विन (१७९९), एडगर हंटली (१७९९) असंभावित कथानकों और बोझिल शैली के बावजूद अपनी भावप्रवणता और रोमानी चरित्रों के कारण रोचक हैं। इस समय के एक अन्य प्रमुख उपन्यासकार ब्रैकेन्‌रिज ने माडर्न शिवैलरी (१७९२-१८१५) में सेवांते और स्मालेट के आदर्श पर अति साहसिकतापूर्ण उपन्यास की रचना की। रिचर्डसन के अनुकरण पर भावुकतापूर्ण उपन्यास और कथाएँ भी विलियम हिल ब्राउन, श्रीमती राउसन और श्रीमती फास्टर द्वारा लिखी गई।

१९वीं सदी

इस सदी के प्रारंभिक वर्षों में न्यूयार्क में "निकरबॉकर' नाम से पुकारे जानेवाले लेखकों का उदय हुआ जो साहित्य में अर्विंग को व्यंग्यकृति द्येदरिख निकरबॉकर्स ए हिस्ट्री ऑव न्यूयार्क (१८९०) को मनोरंजक वार्तालाप की शैली को अपना आदर्श मानते थे। ऐसे लेखकों में उपन्यासकार जेम्स कर्क पाल्डिंग, नाटककार डनलप, कवि सैमुएल वुडवर्थ और जॉर्ज पी. पारिस थे। फिट्ज़-ग्रीन हैलेक और जोज़ेफ राउमन ड्रेक नीचे स्तर पर बायरन और कीट्स से मिलते-जुलते कवि थे। न्यूयार्क में दो अच्छे समझे जानेवाले किंतु वास्तव में साधारण गीतकार हुए-जॉन हावर्ड पेन और जेम्स गेट पर्सीवाल। पत्रिकाओं में सतही आलोचनाओं का भी उदय हुआ। दक्षिण में तीन काफी अच्छे उपन्यासकार हुए-जॉन पेडिलटन केनेडी, विलियम गिल्मोर सिम्स और जॉन इस्टेन कुक।

इन लेखकों के बीच १९वीं सदी के पूर्वार्ध में चार ऐसे लेखकों का उदय हुआ जिन्होंने अमरीकी साहित्य को मेरुदंड दिया और जो इसलिए अमरीका के प्रथम शुद्ध साहित्यिक समझे जाते हैं : वाशिंगटन अविंग (१७८३-१८५९), विलियम कलेन ब्रायंट (१७९४-१८७८), जेम्स फ़ेनिमोर कूपर (१७८९-१८५१) और एडगर एलेन पो (१८०९-४९)।

अर्विंग की शैली ऐडिसन, स्टील, गोल्डस्मिथ और स्विफ़्ट की तरह मँजी हुई, चपल, अद्भुत किंतु मोहक कल्पनायुक्त और आत्मव्यंजक है। उसकी क्रीड़ाप्रिय कल्पना का पुत्र रिप वान विंकिल संसार के अविस्मरणीय चरित्रों में है। उसके प्रसिद्ध रेखाचित्रों, निबंधों, कथाओं और अन्य कृतियों में वेस्टमिंस्टर अबे, स्ट्रैटफर्ड-आन-ऐवन, दि स्केच बुक, रिप वान विंकिल, दि म्यूटेबिलिटी ऑव लिटरेचर, दि स्पेक्टर ब्राइडग्रूम, दि स्लीपिंग हालो इत्यादि हैं। उसके विचारों में स्नायु और गहनता की कमी और भावुकता की अतिशयता है, किंतु अभिव्यक्ति के स्वच्छ लालित्य में वह अद्वितीय है।

ब्रायंट अमरीका का प्रकृतिकवि है। वह वर्ड्‌स्वर्थ के स्तर का नहीं किंतु उसी तरह का कवि है और उसमें वर्ड्‌स्वर्थ की चिंतनशीलता, संयम और नैतिकता है। उसने पहली बार कविता में अमरीका के दृश्यों, पेड़-पौधों और चिड़ियों का वर्णन किया। उसकी कविता में रोमानी तत्वों के साथ स्पष्टता भी है। अतुकांत छंद उसका प्रिय माध्यम था और उसमें उसे काफी दक्षता प्राप्त थी। थैनेटॉॅप्सिस कविता उसका उदाहरण है। वह अमरीका का पहला कवि है जिसमें केवल कौशल ही नहीं बल्कि उच्च कोटि की प्रतिभा के भी दर्शन होते हैं।

कूपर जनवाद, प्रकृतिसौंदर्य और निश्छल जीवन का रोमानी उपन्यासकार है। उसकी कल्पना जंगलों, घास के मैदानों और समुद्रों के ऊपर मँडराती है तथा साहस और पराक्रम पर मुग्ध हो उठती है। सभ्यता से अछूते रेड इंडियनों का चित्रण वह अंत्यंत सहानुभूति और सूक्ष्म अंतर्दृष्टि के साथ करता है; नैटी बंपो और लेदर स्टॉकिंग उसके महान्‌ चरित्र हैं। देशप्रेम के बावजूद वह अमरीकी समाज के जनविरोधी, आडंबरपूर्ण, क्रूर और स्वार्थप्रिय रूप का तीव्र आलोचक है। उसकी प्रसिद्ध रचनाओं में लेदरस्टॉकिंग टेल्स माला की ये कथाएँ हैं : दि पायेनियर्स (१८२३), दि लास्ट ऑव दि मोहिकंस (१८२६), दि प्रेयरी (१८२७), दि पाथफाइंडर (१८४०); दि डीयर स्लेयर (१८४१)। उसे सर वाल्टर स्काट के समकक्ष रखा जा सकता है।

पो अत्यद्भुत जीवन का कवि और कथाकार है। उसकी रचनाओं में मनोवैज्ञानिक आग्रहों का समावेश है। स्वयं अमरीका ने उसके कविरूप की उपेक्षा की, किंतु "दि रैवेन' (१८४५) आदि कविताओं ने फ्रांस के प्रतीकवादियों और आधुनिक यूरोपीय कविता को बहुत प्रभावित किया। उसकी कविताओं में सर्वथा मौलिक रचनाकौशल है और वे अपने संगीत की शुद्धता, सूक्ष्मता, सरल माधुर्य और विविधता के लिए प्रसिद्ध हैं। आलोचक के रूप में भी उसका महत्त्व है। पो जासूसी कहानियों के संस्थापकों में है, किंतु उसकी ख्याति टेल्स ऑव दि ग्रोटेस्क ऐंड अराबेस्क (१८४०) को रोमांचकारी वेदन और रहस्यात्मक वातावरणपूर्ण कथाओं पर अधिक निर्भर है।

नवजागरण काल

प्रेसिडेंट जैक्सन के शासन से लेकर पुनर्निर्माण तक का समय (१८२९-१८७०) औद्योगिक विकास और जनवादी आस्था के समानांतर अमरीकी साहित्य में नवजागरण का युग है। धर्म और राजनीति की तरह इस युग का साहित्य भी उदार और रोमानी मानवतावादी दृष्टिकोण से संपृक्त है।

हास्यसाहित्य पर भी इस जनवादी प्रवृत्ति की स्पष्ट छाप है। न्यू इंग्लैंड के हास्यकारों में सेबा स्मिथ (१७७२-१८६८) ने जैक डाउनिंग और जेम्स रसेल लॉवेल (१८१९-९१) ने होसिया बिगली और बर्डफ्राेेडम साविन और बेंजामिन पी. शिलैबर (१८१४-९०) ने मिसेज़ पाटिंगटन और उनके भतीजे आइक जैसे साधारण यांकी चरित्रों के माध्यम से राजनीतिक और सामाजिक समस्याओं की यथार्थ और विनोदपूर्ण समीक्षा की। डेवी क्रॉकेट (१७८६-१८३६), आगस्टस वाल्विन आंगस्ट्रीट (१७९०-१८७०), जॉन्सन जे. हूपर (१८१५-६३), टॉमस बैंग्स थॉर्प (१८१५-७८), जोज़ेफ जी. बाल्डविन (१८१५-६४) और जार्ज हैरिस (१८१४-६४) जैसे दक्षिण-पश्चिम के हास्यकार उनसे भी अधिक विनोदप्रिय थे।

नवजागरण काल के प्रारंभ के कवियों में अमरीका के लोकप्रिय कवि हेनरी वर्ड्‌स्वर्थ लांगफेलो (१८०७-८२) के अतिरिक्त आलिवर बेंडेल होम्स (१८०९-९४) और जेम्स रसेल ऑवेल विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। विश्वविद्यालयों में आचार्य पद पर काम करने के कारण इन्हें यूरोपीय सांस्कृतिक और साहित्यिक परंपराओं का गहरा ज्ञान था, लेकिन अमरीकी जीवन ही उनकी कविता का मूल स्रोत है। नैसर्गिक सरल प्रवाह के साथ कथा कहने या वर्णन करने में लांगफेलो अत्यंत सफल कवि है। उपदेश की प्रवृत्ति के बावजूद उसकी कविताएँ मर्मस्पर्शी हैं। उसकी प्रसिद्ध कविताओं में दि स्लेब्स ड्रीम और हायावाथा हैं। होम्स और लॉबेल की कविताओं की विशेषताएँ क्रमश: नागर विनोदप्रियता और भावों की उदात्तता हैं।

कवियों में अमरीकी जनवाद की सबसे महान्‌ और मौलिक उपज वाल्ट ह्विटमन (१८१९-९२) है। साधारण व्यक्ति की असाधारणता के विश्वास से भरे हुए स्वप्नद्रष्टा कवि में आदिकवियों का उझतवक्ष, साहसिक, उन्मादपूर्ण और वज्रतुमुल स्वर है। वह मुक्तछंद का जन्मदाता भी है। पहली बार १८५५ में प्रकाशित और समय के साथ परिवर्धित उसके काव्यसंग्रह जीब्स ऑव ग्रास ने फ्रांस के प्रतीकवादी कवियों और यूरोप की आधुनिक कविता पर गहरा असर डाला।

दक्षिण के कवियों में उल्लेखनीय नाम हेनरी टिमरॉड, पाल हैमिल्टन हेन और विलियम जे. ग्रेसन के हैं। इनमें से अधिकतर दासस्वामियों के जनविरोधी दृष्टिकोण के समर्थक थे। प्राकृतिक सौंदर्य के चित्रण, काव्यसंगीत और छंदप्रयोगों की दृष्टि से इनसे अधिक प्रतिभासंपझ कवि सिडनी लैनियर था।

इसी युग ने लोकोत्तरवादी कहे जानेवाले चिंतनशील गद्यकारों को उझत किया जिनमें राल्फ वाल्डो इमर्सन (१८०३-८२) और हेनरी डेविड थोरो (१८१७-६२) सबसे प्रसिद्ध हैं। ये मसाच्यूसेट्स के कांकॉर्ड नामक गाँव में रहते थे और इनकी रचनाओं पर न्यू इग्लैंड के यूनिटेरियन संप्रदाय की धार्मिक उदारता और रहस्यवादी अंतर्दृष्टि का स्पष्ट प्रभाव है। इमर्सन के अनुसार धर्म का तत्त्व नैतिक आचरण है। इसलिए उसका रहस्यवाद लोकजीवन के प्रति उदासीन नहीं है। सरल, चित्रमय शब्द, सूक्तिप्रियता, गहन किंतु कविसुलभ अनुभूतिमय चिंतन और शांत, स्निग्ध व्यक्तित्व उसके साहित्य की विशेषताएँ हैं। एसेज (१८४१, १८४४), रिप्रेजेंटेटिव मेन (१८५०) और इंग्लिश ट्रेज़ (१८५६) उसकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं।

थोरो ने पश्चिम और पूर्व के ग्रंथों का अध्ययन किया था। उसमें इमर्सन की तुलना में अधिक व्यावहारिकता और विनोदप्रियता है। उसमें प्रसिद्ध रचना वाल्डेन (१८५४) जीवन में नैसर्गिकता की ओर लौटने के दर्शन का प्रतिपादन है। अपनी दूसरी प्रसिद्ध पुस्तक सिविल डिस्‌ओबिडिएंस (१८४९) में उसने शासन में अराजकतावाद के सिद्धांत की स्थापना की। उसकी रचनाओं में अमरीकी व्यक्तिवाद की चरमावस्था व्यक्त हुई।

एमॉस ब्रांसन एल्कॉट, जॉर्ज रिपले, ओरस्टेस ब्राउंसन, मागैंरेट फ़ुलर और जोन्स बेरी उस युग के अन्य महत्वपूर्ण लोकोत्तरवादियों में हैं। लोकोत्तरवादियों में से अनेक १८४८ की क्रांति से प्रभावित हुए थे और उन्होंने तरह-तरह की अराजकतावादी, समाजवादी या साम्यवादी योजनाओं का प्रयोग किया और स्त्रियों के लिए मताधिकार, मजदूरों की स्थिति में सुधार और वेशभूषा तथा खानपान में संयम का आंदोलन चलाया।

सुधार के इस युग में अनेक लेखकों ने दासों की मुक्ति के लिए भी आंदोलन किया। इस संघर्ष का नेतृत्व विलियम एल. गेरिसन (१८०५-७९) ने किया। उसने दि लिबरेटर नामक साप्ताहिक निकाला जिसके प्रसिद्ध लेखकों में गद्यकार वेंडेल फिलिप्स (१८११-८४) और कवि जॉन ग्रीनजीफ़ ह्विटिएर (१८०७-९२) थे। ह्विटिएर की कविताएँ सर किंतु पददलितों के लिए अपार करुणा और स्नेह से पूर्ण हैं। पोएग्स रिटेन ड्यूरिंग दि प्रोग्रेस ऑव्‌ दि एबालिशन क्वेश्चन्‌ वॉयवेज़ ऑव्‌ फ्रीडम, सांग्ज़्‌ ऑव दि लेबर आदि उसके काव्यसंग्रहों के नाम से ही उसकी काव्यवस्तु का पता चल जाता है। उसकी कविता की भाषा और छंद पर भी ग्रामीण प्रभाव है। १९वीं सदी की सबसे प्रसिद्ध नीग्रो कवयित्री फ्रांसिस ऐलेन वाट्किंस हार्पर (१८२५-१९११) है, जिसकी कविताओं में बैलडों की सरलता है।

दास-प्रथा-विरोधी आंदोलन ने अमरीका के विश्वविख्यात उपन्यास अंकिल टॉम्स केबिन (१८५२) की लेखिका हैरिएट बीचर स्टोवे (१८११-९६) को उत्पन्न किया। उसके उपन्यास में विनोद, तीव्र अनुभूति और दारुण यथार्थ का दुर्लभ मिश्रण है।

इतिहास के क्षेत्र में भी इस काल में कुछ प्रसिद्ध लेखक हुए जिनमें प्रमुख जॉर्ज बैंक्राफ़्ट, जॉन ल्थ्रोाॉप मॉटले और फ्रांसिस पार्कमैने हैं।

अमरीका के दो महान्‌ उपन्यासकार, नथेनियल हाथॉर्न (१८०४-८४) और हर्मन मेलविल (१८१९-९१) इसी युग की देन हैं। हाथॉर्न की कथाओं का ढाँचा इतिहास और रोमांस के संमिश्रण से तैयार होता है, लेकिन उनकी आत्मा यथार्थवाद है। समाज और व्यक्ति के संघर्ष और उससे आविर्भूत अनेक नैतिक समस्याओं का सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक दृष्टि, कथारूपकों और प्रतीकों के सहारे प्रस्तुत करने में हाथॉर्न अद्वितीय है। उसकी सबसे प्रसिद्ध रचना दि स्कारलेट लेटर (१८५०) इसका प्रमाण है।

मेलविल आकर्षक किंतु पापमय संसार में मानव के अनवरत किंतु दृढ़ संघर्ष का उपन्यासकार है। नाविक जीवन के व्यापक अनुभव के आधार पर उसने इस दार्शनिक दृष्टिकोण को अपने महान्‌ उपन्यास मोबी डिक आर दि ह्वाइट ह्वेल में अहाब नामक नाविक और सफेद ह्वेल के रोमांचकारी संघर्ष में व्यक्त किया। रूपक और प्रतीक, उद्दाम चरित, भाव और भाषा, विराट् और रहस्यमय दृश्य, अंतर्दृष्टि के तड़ित्‌ आलोक में जीवन का उद्घाटन-ये मेलविल के उपन्यासों और कथाओं की विशेषताएँ हैं।

इस काल में डेनियल बेब्सटर, रेंडॉल्फ़ ऑव रोआनोक, हेनरी क्ले और जॉन सी. कैल्हाउन ने गद्य में वक्तृत्व शैली का विकास किया। वेब्स्टर ने दासप्रथा का विरोध किया। अंतिम तीन दक्षिण में प्रचलित दासप्रथा के समर्थक थे। प्रेसिडेंट अब्राहम लिंकन का स्थान इनमें सबसे ऊँचा हैं। फ़ेयरवेल टु स्प्रिंगफ़ील्ड (१८६१), दि फ़र्स्ट इनागरल ऐड्रेस (१८६१), दि गेटिस बर्ग स्पीच (१८६३) और दि सेकंड इनागरल ऐड्रेस (१८६५) भाषण में उपयुक्त शब्दों, चित्रों और लयों के प्रयोग की अद्भुत क्षमता के परिचायक हैं। लिंकन के गद्य पर बाइबिल और शेक्सपियर की स्पष्ट छाप है।

गृहयुद्ध से १९१४ तक

गृहयुद्ध और उसके बाद का समय विज्ञान की उन्नति के साथ अमरीका में नए उद्योगों और नगरों के उदय का है। १९वीं सदी के अंत तक जगलों के कट जाने के कारण देश की सीमा अटलांटिक से प्रशांत महासागर तक फैल गई। इस नई स्थिति में अपने व्यक्तित्व के प्रति सजग और आत्मविश्वास से भरे हुए आधुनिक अमरीका का उदय हुआ।

आत्मविश्वास का यह स्वर इस युग के अमरीकी हास्य साहित्य में मौजूद है। चार्ल्स फ़ेरस्ब्राउन, डेविड रॉस लॉक, चार्ल्स हेनरी स्मिथ, हेनरी ह्वीलर शा और एडगर डब्ल्यू. ने क्रमश: आर्टेमस वार्ड, पेट्रोलियम बी (वेसूवियस) नैज्बी, बिल आर्प, जॉश विलग्ज़ और बिल नाई के कल्पित नाम धारण कर अपनी समकालीन घटनाओं और समस्याओं पर जान बूझकर गँवारू, व्याकरण के दोषों से भरी हुई, रसभंगपूर्ण और लातीनी या विद्वतापूर्ण संदर्भों से लदी भाषा में विनोदपूर्ण विचारविमर्श किया। उन्होंने साहित्य में "रंजनकारी मूर्खों' के वेश में अमरीकी हास्य को विकसित किया।

कथासाहित्य में स्थानीय वातावरण या आंचलिकता का व्यापक ढंग से इस्तेमाल हुआ। ऐसे कथाकारों में, समय और स्थान दोनों ही दृष्टियों से, फ्रांसिस ब्रेट हार्ट प्रथम है। उसने प्रशांत महासागर के तटीय जीवन के चित्र अंकित किए। दि लक ऑव रोरिंग कैंप ऐंड अदर स्केचेज़ (१८७०) में उसने कैलिफ़ोर्निया के खदान मजदूरों के जीवन की विनोद और भावुकतापूर्ण झाँकी प्रस्तुत की। इसी तरह स्टोवे ने ओल्ड टाउन फ़ोक्स (१८६९) और सैम लाउसंस ओल्डटाउन फ़ायरसाइड स्टोरीज (१८७१) में न्यू इंग्लैंड केजीवन के मनोरंजक चित्र अंकित किए। एडवर्ड एगिल्स्टन का उपन्यास दि हूज़िएर स्कूलमास्टर (१८७१) इंडियाना के प्रारंभिक दिनों के जीवन पर आधारित है। विलियम सिडनी पोर्टर (ओर' हेनरी : १८६२-१९१०) ऐसी कथाओं के लिए प्रसिद्ध है। अतीत इतिहास में स्थित किंतु यथार्थ से प्रेरित इन कथाओं में भावुकता, विनोद, चित्रात्मकता और विलक्षणता की प्रधानता है। ऐसी कथाओं के रचनाकारों में जॉर्ज वाशिंगटन केबिल, टॉमस नेल्सन पेज, जोएल चैडलर हैरिस, मेरी नोआइलिस मार्फ़ी, सारा ओर्न जिवेट, हेनरी काइलर और मेरी विल्किंस फ्ऱीमैन भी महत्वपूर्ण हैं।

इन कथाकारों से अमरीका के महान्‌ साहित्यकार सैमुएल लैंघार्न क्लेमेंस (मार्क ट्वेन : १८३५-१९१०) का निकट संबंध है। मार्क ट्वेन के अनेक उपन्यासों पर उसके भ्रमणशील जीवन का असंदिग्ध प्रभाव है। दि ऐडवेंचर्स ऑव टॉम सायर (१८७६), लाइफ़ आन दि मिसिसिपी (१८२३) और दि ऐडवेंचर्स ऑव हक्लबेरी फ़िन (१८८४) मार्क ट्वेन के व्यापक अनुभव, चरित्रों के निर्माण की उसकी अद्वितीय प्रतिभा और काव्यमय किंतु पौरुषेय शैली की क्षमता के प्रमाण हैं। व्यंग्य और भांड के निर्माण में भी कम ही लेखक उसके समतुल्य हैं।

विलियम डीन हॉवेल्स ने जीवन के साधारण पक्षों के यथार्थ चित्रण पर जोर दिया। उसके समक्ष कला से अधिक महत्त्व मानवता का था। स्वाभाविक चित्रण पर जोर देनेवालों में ई. डब्ल्यू. होवे, जोज़ेफ़ कर्कलैंड और जॉन विलियम दि फ़ारेस्ट भी उल्लेखनीय हैं। हैमलिन गारलैंड ने किसानों के जीवन और यौन संबंधों के कटु यथार्थ को चित्रित किया।

अमरीका की यथार्थवादी परंपरा के महान्‌ लेखकों में थियोडोर ड्रेजर (१८७१-१९४५) का निर्विवाद स्थान है। ड्रेजर ने साहस के साथ अमरीका के पूंजीवादी समाज की क्रूरता और पतनशीलता का नग्न चित्र प्रस्तुत किया, जिससे कुछ लोग उसे अश्लील भी कहते हैं। किंतु सिस्टर कैरी, जेनी गरहार्ड्‌ट, दि फाइनेंसियर, दि टाइटन और ऐन अमेरिकन ट्रैजेडी जैसे उसके प्रसिद्ध उपन्यासों से स्पष्ट है कि जीवन के कटु यथार्थ के तीव्र बोध के बावजूद मूलत: वह सुंदर जीवन और मानवीय नैतिकता की तृषा से आकुल है।

फ्रैंक नॉरिस और स्टीफेन क्रेन (१८७०-१९००) प्रभाववादी कथाकार हैं। उनमें चमत्कारिक भाषा की असाधारण क्षमता है। हैरल्ड फ्रेडरिक (१८५६-१८९८) में व्यंग्यपूर्ण चरित्रचित्रण की असाधारण क्षमता है।

हेनरी जेम्स (१८४३-१९१६) चरित्रों के सूक्ष्म और यथार्थ मनोवैज्ञानिक अध्ययन के साथ-साथ कला के प्रति जागरुकता के लिए प्रसिद्ध है। कहानी के सुगठन की दृष्टि से वह संसार के इने-गिने लेखकों में है। आलोचक के रूप में वह दि आर्ट ऑव फ़िक्शन (१८८४) जैसी महत्वपूर्ण पुस्तक का प्रणेता है। अमरीकी और यूरोपीय संस्कृतियों की टकराहट प्रस्तुत करने में उसके उपन्यास बेजोड़ हैं।

रोमानी वातावरण में जीवन के यथार्थ को रूपायित करनेवाले उपन्यासकारों में जैक लंडन और अप्टन सिंक्लेयर प्रथम कोटि के हैं। जैक लंडन का दि काल ऑव दि वाइल्ड (१९०३) और सिंक्लेयर का दि जंगल (१९०६) इसके उदाहरण हैं। रोमानी और विलक्षण उपन्यासों तथा कहानियों के सफल लेखकों में फ़ांसिस मैरियन क्रॉफ़र्ड, ऐंब्रोज़ बीयर्स और लैफ़कैडियो हार्न हैं।

हेनरी ऐडम्स ने अपनी आत्मकथा "दि एजुकेशन ऑव हेनरी ऐडम्स' (१९०६) में आधुनिक अमरीकी जीवन का निराशापूर्ण चित्र अंकित किया। अमरीका की आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था की शल्यक्रिया इडा एम. टारवेल ने हिस्ट्री ऑव दि स्टैंडर्ड आयल कंपनी और लिंकन स्टीफ़ेंस ने दि शेम ऑव दि सिटीज में किया। चार्ल्स डडले वार्नर और एडवर्ड बेलागी ने भी पूंजी की बढ़ती हुई शक्ति और नौकरशाही के भ्रष्टाचार पर आक्रमण किया।

एडविन मार्खम और विलयम ह्वॉन मूडी की कविताओं में भी आलोचना का वही स्वर है।

इस प्रकार प्रथम महायुद्ध के पूर्व ही अमरीका की पूंजीवादी व्यवस्था की आलोचना होने लगी थी। अनेक लेखकों ने समाजवाद को मुक्ति के मार्ग के रूप में अपनाया। ऐसे लेखकों के अग्रणी थियोडोर ड्रेज़र, जैक लंडन और अप्टन सिंक्लेयर थे।

वाल्ट ह्विटमन को छोड़कर १९वीं सदी के अंतिम और २०वीं सदी के प्रारंभ के वर्ष कविता में साधारण उपलब्धि से आगे न जा सके। अपवाद स्वरूप एमिली डिकिन्सन (१८३०-१८८६) है जो निश्चय ही अमरीका की सबसे बड़ी कवयित्री है। उसकी कविताओं का स्वर आत्मपरक है और उनमें उसके ग्रामीण जीवन और असफल प्रेम के अनुभव तथा रहस्यात्मक अनुभूतियाँ अभिव्यक्त हुई हैं। डिकिन्सन की कविता में यथार्थ, विनोेद, व्यंग्य और कटाक्ष, वेदना और उल्लास की विविधता है। चित्रयोजना, सरल और क्षिप्र भाषा, खंडित पंक्तियों और कल्पना की बौद्धिक विचित्रता में वह आधुनिक कविता के अत्यंत निकट है।

प्रथम महायुद्ध के बाद

यूरोप की तरह अमरीका में भी यह काल नाटक, उपन्यास, कविता और साहित्य की अन्य विधाओं में प्रयोग का है।

नाटक के क्षेत्र में गृहयुद्ध के पहले रॉबर्ट मांटगोमरी बर्ड और जॉर्ज हेनरी बोकर अतुकांत दु:खांत नाटकों के लिए और डियर बूसीकॉल्ट अतिरंजित घटनाओं से पूर्ण नाटकों के लिए साधारण रूप में उल्लेखनीय हैं। गृहयुद्ध के बाद भी नाटकों का विकास बहुत संतोषजनक न रहा। जेम्स एं. हर्न, ब्रांसन हॉवर्ड, आगस्टस टॉमस और क्लाइड फ़िट्श में रंगमंच की समझ है, लेकिन उनके नाटकों में भावों और विचारों का सतहीपन है। प्रथम महायुद्ध के बाद नाटक के क्षेत्र में अनेक प्रयोग होने लगे और यूरोप का गहरा असर पड़ा। नाटक में गंभीर स्वर का उदय हुआ। इस आंदोलन का उत्कर्ष यूजीन ओ' नील (१८८८-१९५३) के नाटकों में प्रकट हुआ। ओ' नील के नाटकों में यथार्थवाद, अभिव्यंजनावाद और चेतना के स्तरों के उद्घाटन के अनेक प्रयोग हैं। किंतु इन प्रयोगों के बावजूद ओ' नील कविसुलभ कल्पना और भाववेग के साथ जीवन के प्रति अपने दु:खांत दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति पर अधिक बल देता है।

मार्क कॉनेली, जॉर्ज एस. कॉफ़मैन, एल्मर राइस, मैक्सवेल ऐंडर्सन, रॉबर्ट शेरउड, क्लिफ़र्ड ओडेट्स, थार्नटन वाइल्डर टेनैसी, विलियम्स और आर्थर मिलर ने भी नाटक में यथार्थवाद, प्रहसन, संगीतप्रहसन, काव्य और अभिव्यंजना के प्रयोग किए। यूरोप के आधुनिक नाट्यसाहित्य और अमरीका में "लघु' और ललित रंगमंचों के उदय ने उन्हें शक्ति और प्रेरणा दी।

आधुनिक अमरीकी कविता का प्रारंभ एडविन आलिंगटन रॉबिंसन (१८६९-१९३५) और राबर्ट फ्ऱास्ट (१८७४-१९६३) से होता है। परंपरागत तुकांत और अतुकांत छंदों के बावजूद उनका दृष्टिकोण और विषयवस्तु आधुनिक है; दोनों में अवसादपूर्ण जीवन के चित्र हैं। रॉबिंसन में अनास्था का मुखर स्वर है। फ्ऱास्ट की कविता की विशेषताएँ अंतरंग शैली में साधारण अनुभव की अभिव्यक्ति, संयमित, संक्षिप्त और स्वच्छ वक्तव्य, नाटकीयता और हास्य तथा चिंतन का सम्मिश्रण है। पो और डिकिन्सन रूपवादी शैली से प्रभावित अन्य उल्लेखनीय कवि वैलेस स्टीवेंस (ज. १८७९), एलिनार वाइली (१८८५-१९२८), जॉन गोल्डफ्लेचर (१८८६-१९५०) और मेरियन मूर (ज. १८८७) हैं।

हैरियट मुनरो (१८६०-१९३६) द्वारा शिकागो में स्थापित पोएट्री : ए मैगज़ीन ऑव वर्स अमरीकी कविता में प्रयोगवाद का केंद्र बन गई। इसके माध्यम से ध्यान आकर्षित करनेवाले कवियों में वैचेल लिंडसे (१८७९-१९३१), कार्ल सैंडबर्ग (ज. १८७८) और एडगर ली मास्टर्स (१८६९-१९५०) प्रमुख हैं। ये ग्रामों, नगरों और चरागाहों के कवि हैं। मास्टर्स कविता में गहरा विषाद है, लेकिन सैंडबर्ग की प्रारंभिक कविताओं में मनुष्य में आस्था का स्वर ही प्रधान है। हार्ट क्रेन (१८९९-१९३२) में ह्विट्मन का रोमानी दृष्टिकोण है। यह रोमानी दृष्टिकोण नाओमी रेप्लांस्को, जॉन गार्डन, जॉन हाल ह्विलॉक, आइवर विंटर्स और थियोडोर रोथेश्क की कविताओं में भी है। आर्किबाल्ड मैक्लीश (ज. १८९२) की कविताओं में सर्वहारा के संघर्षों का चित्र है। स्टीफेन विंसेंट बेने (१८९८-१९४३) व्यापक मानव सहानुभूति का कवि है। उसके वैलड अत्यंत सफल हैं। होरेस ग्रेगरी (ज. १८९८) और केनेथ पैचेन (ज. १९११) की कविताओं पर भी ह्विट्मन का प्रभाव स्पष्ट है। दूसरी ओर रॉबिंसन जेफर्स (ज. १८८७) है जो अपनी कविताओं में मनुष्य के प्रति आक्रोशपूर्ण घृणा और प्रकृति के दारुण दृश्यों से प्रेम के लिय प्रसिद्ध है।

एमी लॉवेल (१८७४-१९२५) और एच.डी. (हिल्डा डूलिटिल : ज. १८८६) ने इमेजिस्ट काव्यधारा का नेतृत्व किया। एज़रा पाउंड (ज.१८८५) और टी.एस. इलियट (१८८८-१९६५) ने आधुनिक अमरीकी कविता में प्रयोगवाद पर गहरा असर डाला। उनसे और "मेटाफ़िज़िकल' शैली के रूपवाद से प्रभावित कवियों में जान क्रोवे रैंसम (ज. १८८८), कॉनरॉड आइकेन (ज. १८८९), रॉबर्ट पेन वैरेन (ज. १९०५), ऐलेन टेट (ज. १८९९), पीटर वाइरेक (ज. १९१६), कार्ल शैपीरो (ज. १९१३), रिचर्ड विल्बुर (ज. १९२१), आर.पी. ब्लैकमूर (ज. १९०४) तथा अनेक अन्य कवि हैं। अभिव्यक्ति में घनत्व, चमत्कार और दीक्षागम्यता उनकी विशेषताएँ हैं। इनके अनुसार ""कविता का अर्थ नहीं, अस्तित्व होना चाहिए।

प्रयोगवादियों में ई.ई. कर्मिग्ज़ (ज. १८९४) पंक्तियों के प्रारंभ में बड़े अक्षरों को हटाने तथा विरामों और पंक्तियों के विभाजन में प्रयोगों के लिए प्रसिद्ध हैं।

२०वीं सदी की कवयित्रियों में सारा टीज़डेल (१८९४-१९३३) और एड्ना सेंट विंसेंट मिले (१८९२-१९५०) अपने सानेटों और आत्मपरक गीतों की स्पष्टोक्तियों के लिए प्रसिद्ध हैं। मिले में प्रखर सामाजिक चेतना है। जेम्स वेल्डेन जॉन्सन (१८७१-१९३८), लैंगस्टेन ्ह्रूाजेज़ (ज. १९०२) और काउंटी क्लैन (१९०३-४६) नीग्रो कवि हैं जिन्होंने नीग्रो जाति की समस्याओं पर ध्यान केंद्रित किया।

२०वीं सदी के अन्य प्रयोगवादियों में मार्क ह्वॉन डोरेन, लियोनी ऐडम्स, रॉबर्ट लॉवेल, हॉबर्ट होरन, जेम्स मेरिल, डब्ल्यू. एस. मर्विन, डेलमोर श्वार्ट्‌ज, म्यूरिएल रुकेसर, विनफ़ील्‌ड टाउनले स्कॉट, एलिज़ाबेथ बिशप, मेरिल मूर, ऑगडेन नैश, पीटर वाइरेक, जान कियार्डी आदि ऐसे कवि हैं जिनपर वाल्ट ह्विट्मन की कविता का आंशिक प्रभाव है। अपेक्षाकृत नए प्रयोगवादियों में जॉन पील विशप, रैंडाल जेरेल, रिचर्ड एबरहार्ट, जॉन बैरिमैन, जॉन फ्रेडरिक निम्स, जॉन मैल्कम ब्रिनिन और हॉवार्ड नेमेरोव हैं। सामाजिक यथार्थ और स्वस्थ जनवादी चेतना को महत्त्व देनेवाले आधुनिक कवियों में वाल्टर लोवेनफ़ेल्स, मार्था मिलेट, मेरिडेल ले स्यूर, टॉमस मैक्ग्राथ, ईव मेरियम, केनेथ रेक्सरॉथ इत्यादि उल्लेखनीय हैं।

प्रथम महायुद्ध के बाद की मुख्य प्रवृत्तियों को संक्षेप में इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है - सामाजिक यथार्थ के प्रति जागरूकता, उसकी विषमताओं से टकराकर टूटते हुए स्वप्नों का बोध, पूंजीवादी समाज और उसकी आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक मान्यताओं से विद्रोह और नई सामाजिक व्यवस्था तथा जीवन के नए मूल्यों की खोज।

इस विद्रोह में कथाकारों ने फ्रायड के मनोविज्ञान और मार्क्स के दर्शन का सहारा लिया। जैमस ब्रांच कैबेल ने जर्गेन (१९१९) में फ्रायडवादी प्रतीकों के माध्यम से अमरीकी समाज और यौन संबंधी उसके रूढ़िगत दृष्टिकोण की आलोचना की। जोना गेल (१८७४-१९३८) और रूथ सच्चो (ज. १८९२) ने गाँवों के जीवन पर से रोमानी आवरण हटा दिया। गाँवों के संकुचित जीवन और कुंठित यौन संबंधों का सबसे बड़ा चित्रकार शेरवुड ऐंडर्सन है।

यथार्थवाद को प्रबल बनाने में ड्रेज़र के अतिरिक्त एफ. स्काट फिट्जेराल्ड और सिंक्लेयर लिविस का बहुत बड़ा हाथ था। फिट्जेराल्ड के दिस साइड ऑव पैराडाइज़ (१९२०) और दि ग्रेट गैट्ज्बी (१९३५) में अमरीका के भग्न स्वप्नों और नैतिक ्ह्रास का चित्र है। लेविल ने मेन स्ट्रीट (१९२०) में गाँवों, बैबिट (१९२२) में व्यवसाय, एरोस्मिथ (१९२५) में पूंजीवादी विज्ञान, एल्मर गैंट्री (१९२७) में धर्म, इट कांट हैपेन हियर (१९३५) में फासिज्म की प्रवृत्तियों और किंग्ज़ब्लड रॉयल (१९४७) में नीग्रो जाति के प्रति अन्याय के चित्र प्रस्तुत कर अमरीकी समाज में व्यापक ्ह्रास के लक्षण दिखाए। लेकिन इनमें लिविस का स्वर पराजय का नहीं बल्कि समाजवाद की स्थापना द्वारा समस्याओं पर अंतिम विजय का था। जेम्स टी. फेरेल ने तीन खंडों में लिखे गए उपन्यास स्टड्स लांजियन (१९३२-३५) में सामाजिक विषमताओं को चित्रित किया। रिचर्ड राइट के उपन्यासों में नीग्रो जाति के जीवन का चित्र है। एच.एल. मेंकेन ने प्रेजुडीसेज़ (१९१९-२७) में सामाजिक अंधविश्वासों और अन्यायों पर आक्रमण किया। राबर्ट पेन वारेन ने आल दि किंग्ज़ मेन में व्यंग्य और आक्रोश के साथ फासिज्म को धिक्कारा। जॉन डॉस पसॉस की ख्याति युद्धविरोधी उपन्यास ्थ्राी सोल्जर्स से हुई और दूसरे युद्ध तक उसने मनहटन ट्रांसफ़र और फ़ॉर्टी-सेकंड पैरेलेल, १९१९ और दि बिग मनी नामक तीन खंडों के उपन्यास में आधुनिक अमरीकी समाज की कटु आलोचना की।

अर्नेस्ट हेमिंग्वे (१८९९-१९६१), विलियम फ़ॉकनर (१८९७-१९६२) और जान स्टाइनबेक (ज. १९०२) की गणन आधुनिक काल के तीन बड़े उपन्यासकारों में है। इन्होंने निराशा से प्रारंभ किया, लेकिन बाद में आस्था की ओर लौटे। स्पेन के गृहयुद्ध ने हेमिंग्वे को जनता की शक्ति का बोध कराया और उसके दो प्रसिद्ध उपन्यास टु हैव ऐंड नॉट (१९३७) और फॉर हूम दि बेल टॉल्स (१९४०) इसी विश्वास की उपज हैं। हेमिंग्वे बुल-फाइट में प्रदर्शित मानव के अपार पराक्रम और उसमें मनुष्य या पशु के अनिवार्य अंत से उत्पन्न करुणा का कथाकार भी है। हेमिंग्वे की शैली में बाइबिल से मिलती-जुलती सरलता, स्नायविकता और माधुर्य है।

फॉकनर "चेतना की अंतर्धारा' शैली का उपन्यासकार है। उसके उपन्यासों में दासप्रथा के गढ़ दक्षिण के सामाजिक और सांस्कृतिक क्षय के चित्र हैं। दक्षिण के जीवन के सूक्ष्मातिसूक्ष्म विवरणों के ज्ञान के कारण वह अमरीका का सबसे बड़ा आंचलिक उपन्यासकार माना जाता है। उसके उपन्यासों में दीक्षागम्यता की प्रवृत्ति भी है। स्टाइनबेक ने ऐतिहासिक उपन्यासों में समाजविरोधी और अराजकवादी दृष्टिकोण से प्रारंभ किया। बाद में उसने मार्क्सवादी दर्शन अपनाया और इस प्रभाव के युग में लिखे गए उसके दो उपन्यास इन डुबियस बैटिल (१९३९) और दि ग्रेप्स ऑव राथ अत्यंथ प्रसिद्ध हैं।

चरित्रों के रागात्मक पक्ष, प्रतीकों और वाक्यरचना में लय पर बल देनेवाले उपन्यासकारों में विला केदर, कैथरीन ऐनी पोर्टर और टॉमस वुल्फ का प्रमुख स्थान है। नए प्रयोगों से प्रभावित किंतु मुख्यत: उपन्यास के परंपरागत रूप को सुरक्षित रखनेवाले उपन्यासकारों में तीन महिलाएँ उल्लेखनीय हैं-एडिथ ह्वार्टन, ऐलेन ग्लैस्गो और पर्ल एस. बक। मार्क्सवादी या अमरीका की स्वस्थ जनतांत्रिक परंपरा के प्रति सचेत समकालीन उपन्यासकारों में इरा बुल्फ़र्ट, मेलर हेनरी राथ, डब्ल्यू.ई.बी. डुबॉय, जान सैंफर्ड, बार्बरा गाइल्स, हॉवर्ड फ़ास्ट, रिंग लार्डनर जूनियर, डाल्टन ट्रंबो, फ़िलिप बोनोस्की, लॉयड एल. ब्राउन, वी.जे. जेरोम और बेन फ़ील्ड ने भी महत्वपूर्ण कार्य किया है। गद्य शैली की मौलिकता की दृष्टि से गर्ट्रूड स्टीन अमरीका का अद्वितीय लेखक है।

२०वीं सदी का पूवार्ध आलोचना साहित्य में अत्यंत समृद्ध है। इसका प्रारंभ "मानवतावादी' ईविग बैबिट और उसके सहयोगियों, पाल एल्मर मोर, नार्मन फ़ारेस्टर और स्टुअर्ट शेरमन द्वारा मानव में आस्था के नाम पर यथार्थवाद के विरोध के रूप में हुआ। दूसरी ओर एच.एल. मेंकेन ने यथार्थवाद का समर्थन किया। साहित्य में स्वस्थ सामाजिक दृष्टिकोण पर जोर देनेवाले आलोचकों में वानविक ब्रुक और बी. एल. पैरिंगटन का बहुत ऊँचा स्थान है।

आलोचना में मार्क्सवादी दृष्टिकोण का सूत्रपात करनेवालों में वी. एफ. कैलवर्टन, ग्रैनविल हिक्स और माइक गोल्ड थे। इसका पुट एडमंड विल्सन, केनेथ बर्क और जेम्स टी. फ़रेल की आलोचनाओं में भी है। आज भी अनेक आलोचक इस दृष्टिकोण से लिखते हैं और उनमें प्रमुख सिडनी फ़िकेलस्टीन, सैमुएल सिलेन, लूई हैरप, फ़िपि बोनोस्की, अलबर्ट माल्ट्ज, वी.जे. जेरोम, चार्ल्स हंबोल्ड्ट और हर्बर्ट ऐप्थेकर हैं।

मार्टन डी. ज़ैबेल, एज़रा पाउंड, हुल्म, आई। ए. रिचर्ड्‌स और टी. एस. इलियट की आलोचनाओं ने अमरीका की "नई आलोचना' को जन्म दिया। "नई आलोचना' मुख्यत: रूपवादी आलोचना है जो वस्तु और दृष्टिकोण के स्थान पर रचना की प्रक्रियाओं पर जोर देती है। इसके प्रधान प्रचारकों में दक्षिण के रूढ़िवादी साहित्यकार और आलाचक आर. पी. ब्लैकमूर, ऐलेन टेट, जान क्रोवे रैंसम, क्लिंथ ब्रुक्स और राबर्ट पेन वैरेन हैं।

नग्न यौन चित्रण और पाशविक प्रवृत्तियों के जोर पकड़ने से दूसरे महायुद्ध के बाद अमरीकी साहित्य का संकट बहुत गहरा हुआ है। लिविस, डास पैसॉस, स्टाइनबेक, सैंडबर्ग, हिक्स, हॉवर्ड फ़ास्ट आदि अनेक लेखकों ने समाजवादी देवता के कूच कर जाने की बात कही है। लेकिन समाजवाद के साथ-साथ अमेरिकी साहित्य और संस्कृति की महान्‌ जनवादी परंपराओं का विसर्जन आधुनिक अमरीकी साहित्य के विकास में बाधक है।

अमरीकी साहित्य (१९४५-१९७०)

द्वितीय महायुद्ध के बाद से १९७० तक का अमरीकी साहित्य काव्यरूपों को तोड़ता एवं पुनर्निर्मित करता रहा है। परंपराओं पर आघात उनके आंतरिक शक्तिपात का ही द्योतक है। युद्धोत्तर साहित्य में हमें मानव के अस्तित्व का नवीकृत बोध मिलता है। मनुष्य की निजी हस्ती पर होने वाले आक्रमणों के प्रतिरोध की अभिव्यक्ति मिलती है। प्रतिज्ञाबद्धताओं एवं आस्थाओं का पुनर्निरीक्षण किया गया है। इस काल के अमरीकी साहित्य में लेखक के जीवनदर्शन के समरूप ही अन्त:करणी विरोध का साहस है। वह आत्महस्ती एवं समाज के भिड़ंत के आधारगत तथ्य का अन्वेषण साहित्यिक कला के रूप एवं विरोध द्वारा सतत करता रहा है। यह साहित्य प्रत्याख्यानी एवं नया है।

यह साहित्य युद्धोत्तर विघटक गर्त एवं विनाशकारी अस्तव्यस्तता की पृष्ठभूमि से अंकुरित हो अपना निर्माण करता है। युद्ध के बाद सतत शीतयुद्ध ने उसे जीवन की अनुभूतियाँ दीं, जिनमें प्रमुख ये हैं-प्रबल किंतु अर्थहीन हिंसा, आत्मापराग, समाज से अपराग, मनुष्य का अमानवीकरण, अंबारी समाज एवं महाराज्य के पैशाची परा यथार्थ में व्यक्ति की दुर्गति, सर्वशक्तिसंपझ आर्थिक एवं राजनीतिक निहितस्वार्थों द्वारा विज्ञापन तथा प्रचार के माध्यम से लोगों का मस्तिष्क प्रक्षालन। ऐसे पैशाची जगत्‌ में सर्जित होनेवाला साहित्य अजनबी के माध्यम से प्रेम एवं स्वतंत्रता का अन्वेषण करता है। वह दमन के सामाजिक वातावरण में लिखा गया व्यक्ति की आत्महस्ती का साहित्य है, जिसमें वृत्तिगत अनिवार्यताएँ ही मार्गनिर्देशक हैं। नैतिकता भी वैयक्तिक एवं अस्तित्वपरक हो गई है और इसीलिए व्यंग्यात्मक तथा अनिश्चित। राज्य एवं समाज में मूल्यों का सर्वनाश हो जाने पर भी यह साहित्य अपने को आत्महस्ती एवं जीवन के प्रति समर्पित करता है। इसका संकल्प धर्मोत्साह के सन्निकट है।

यहाँ यह संकेत कर देना आवश्यक है कि ऊर्ध्ववर्णित मनुष्य एवं समाज की स्थिति तथा तत्संबंधी साहित्यिक प्रवृत्तियाँ मात्र अमरीकी नहीं, अपितु अंतरराष्ट्रीय हैं। युद्धोत्तर विश्व का अमरीकीकरण हो चुका है अथवा हो रहा है।

उपन्यास

युद्धोत्तर कथासाहित्य शक्तिशाली एवं वैविध्यपूर्ण है। युद्धसंबंधी उपन्यास भी इस तथ्य की पुष्टि करते हैं। जान हर्सी, जार्ज, मैंडल, जान हार्न बर्न्ज़ (द गैलरो, १९४७), नार्मन मेलर (द नेकेड ऐंड द डेड, १९४८), जान हाक्स (द कैनिबल, १९४९), जेम्स जोन्स (फ्राम हियर टु इटर्निटी, १९५१), टामस बर्गर (क्रैज़ी इन बर्लिन, १९५८), तथा जाज़ेफ़ हेलर (कैच--२२, १९६१) के युद्धसंबंधी कथासाहित्य में भी रूप एवं साहित्यिक उद्देश्य की प्रचुर विविधता है। उपन्यास की यह अनेकरूपता एवं अनेकोद्देश्यता सतह के नीचे समाज के खंड-खंड हो जाने के कारण है। बर्नार्ड मेलमूड के उपन्यासों में यहूदी समाज का चित्रण है, फ़्लैनरो ओ' कानर में दक्षिणी अमरीकियों का, जैक केरुआक में चापलूसों का, जान चीवर एवं लुई ऑकिन्क्लास में परिनागरों का। यह स्थिति समाज के विघटन को प्रतिबिंबित करती है। दक्षिणी उपन्यासकार यहूदी लेखक, नीग्रो कथाकार एवं बीटनिक लेखक संस्कृति की संत्रासी अंतर्भूमि से अपनी अस्तित्वपरक अनुभूतियों को मुखरित करते हैं। इन लेखकों की संस्थिति को प्रकृतिवाद व्यक्त करने में असमर्थ था। अतएव उसने प्रतीकात्मकता, रूमानी अथवा बीभत्स सनसनी, पुराख्यानी एवं आद्यरूपी तंतुजाल, कलात्मक अथवा गड़बड़ कसीदेवाले क्षेत्रों में प्रवेश किया।

इस काल के उपन्यासों में नायक की मूलत: निष्कलुषता पर बल है, जो पतितोद्धारी गुण के रूप में अभिव्यक्त हुआ है। निष्कलुष नायक कभी तो विद्रोही शिकार एवं विद्रोही बलिपशु के रूप में निरूपित किया जाता है तो कभी अजनबी, बच्चा, किशोर, अपराधी, संत अथवा विदूषक के रूप में। प्रत्येक दशा में नायक की आत्महस्ती एवं पतित समाज के बीच समाधान नहीं हो पाता और इस अर्थ में उसकी दीक्षा अधूरी ही रह जाती है। विद्रोह, विध्वंस अथवा आत्महस्ती अभिपुष्टि पर बल रहता है। जैक केरुयक, बरोज, ब्रासर्ड, विडल एंव मेलर के उपन्यासों में यही संरचना मिलती है। बेलो, जोंस, बोल्ज, मेलमूड स्टाइरन एवं मकलर्ज के उपन्यासों में विद्रोही नायक का अंत शहादत, आत्महत्या अथवा पराजय में होता है। यही बात सैलिंजर, कपोट, एलिसन एवं डान्लेवी के उपन्यासों पर भी लागू होती है। सभी नायक को अपराधी संत अथवा ्ख्राोस्त रूप में प्रस्तुत करते हैं। हाक्स, कपोट, नैबाकोव एवं ओंकॉनर के कुछ उपन्यासों में विरूपी पिशाच भी यही भूमिका अदा करते हैं। अपने सपनों की दुनियाँ में बंद विरूपी पात्र समाज का संत्रस्त शिकार होने पर शैतान के रूप में परिणत हो जाता है एवं समाज की सारी ही सामान्य मान्यताओं पर आघात करता है। इन उपन्यासों में प्रत्याख्यान पैशाची विद्रोह का रूप धारण कर लेता है। अमरीकी उपन्यासों पर यूरोपियन अस्तित्ववाद का भी प्रभाव पड़ा है। स्टाइरन, बोल्ज, बेलो, जान अपडाइक, डान्लेवी एवं जान बार्थ के उपन्यासों पर यूरोपीय अस्तित्ववाद का प्रभाव स्पष्ट है।

कविता

द्वितीय महायुद्धोत्तर कालीन अमरीकी कविता बीट अथवा बीटनिक कवियों एवं विद्योचित कवियों के पारस्परिक संघर्ष एवं विरोध को लक्षित करती है। राबर्ट लोवल के शब्दों में यह संघर्ष अनगढ़ एवं परिष्कृत कविता के बीच पारस्परिक विरोध का संघर्ष है। इस वर्गीकरण के बावजूद हम देखते हैं कि इस २५ वर्ष की अवधि में अनेक बीटनिक कवि विद्योचित बन गए तथा अनेक विद्योचित कवियों ने बीटनिक शैली को अपनाया।

बीटनिक कवियों में समाज के प्रति विद्रोह की भावना है। वे सभी सामाजिक संस्थाओं को घृणा की दृष्टि से देखते हैं और अपने लिए आत्यंतिक व्यक्तिगत स्वतंत्रता चाहते हैं। वे अति मुक्तछंद में मानमाने ढंग से लिखते हैं। काव्य उनकी जीवनशैली का मात्र उपफल है। वे मदिरा, नशा, यौन प्रयोगों, एवं मादक द्रव्यों की सहायता से भावोद्दीपन की तीक्ष्णता को बढ़ाने का प्रयास करते हैं एवं नीग्रो तथा जैज़ संगीतज्ञों के संत्संग में भगवद्दर्शन की आशा रखते हैं। अपनी कविताओं को वे विलियम कार्लास विलियम्ज़ अथवा जैक केरुआक को समर्पित करते हैं। जैन, बौद्ध, एवं पूर्वी संस्कृति के तांत्रिक अथवा "असामाजिक' पक्षों से आकर्षित ये नए बोहिमियाई "आवारे' हैं जो समाज का विरोध एवं आदिमवाद, मूलवृत्ति, शक्ति तथा रक्त की उपासना करते हैं। काव्य में बीटनेक शैली के प्रमुख लेखक हैं ऐलन गिंसबर्ग, ग्रेगोरि कोरसो, गैरी स्नाइडर तथा लारेंस फ़लिगेटी। केनेथ रेक्सराथ, केनथ पैचन, राबर्ट डंकन, डेनिस लेवरतोव, चार्ल्ज़ ओल्सन, राबर्ट क्रीली जडसन क्रूज तथा जिल आर्लोवित्स की कविताओं पर भी बीटनिक शैली का प्रभाव पड़ा है। बीट कविता की आसन्नता एवं ओज मानवी अस्तित्व के नंगे चरित्र को गीत देता है।

ऐलन गिंसबर्ग की हाउल (१९५६) अमरिकी समाज के नरकवासी कवि द्वारा मनुष्य के आधुनिक अस्तित्व का उच्छेदन करती है। उनकी पंक्तियाँ प्रेम, अथवा क्रोधरूपी कोड़े की फटकार से आधुनिक जगत्‌ के सारे संत्रास एवं विभीषिका का स्पर्श कर उनसे आगे ब्रह्मांडी य पवित्रता तक पहुँचती हैं। राजनीतिक, हत्या, पागलपन, स्वापकव्यसनी, समलिंगसंबंध, अथवा तांत्रिक या ज़ेन तटस्थता की विषयवस्तु का भार उनकी पंक्तियाँ सदा ही वहन करने में समर्थ नहीं होती। गिंज्बर्ग की कविता की सबसे बड़ी विशेषता उसका रहस्वादी तत्त्व है। उसका दूसरा प्रकाशन "कैडिश' (१९६०) भी इन्हीं गुणों से युक्त है एवं मनुष्य की संवेदना को अनुभूत यथार्थ के सीमातंक क्षेत्र तक ले जाता है। "बाट' शब्द के प्राय: तीन अर्थ दिए जाते है-(१) समाज का निम्नस्तर जहाँ संस्थाओं एवं परिपाटियों ने दलित कवि को दबा रखा है, (२) जैज़ संगीत की लय एवं ताल जो काव्यसंगीत को उत्प्रेरित करता है, एवं (३) भगवद्दर्शन। ग्रेगरी कोर्सो के "द वेस्टल लेडी आन ब्रैटल', "गैसोलीन', तथा "द हैपी बर्थडे ऑव डेथ' में छंद बीट आदर्श के संनिकट हैं। वह जैज़ के विस्फोटक प्रभाव एवं हिप्स्टर नर्तकों की भाषा तथा शब्दों का अनुकरण करता है। लारंस फलिगेटी के "अ कॉनी' आइलंड ऑव द माइंड' में गली काव्य लिखने का प्रयास किया गया है। कविता को अध्ययन कक्ष के बाहर गलियों में लाया गया है। अन्य बीट कवियों के नाम हैं गे स्नाइडर, फिल वेलन एवं माइकेल मक्लूअर। बीट कविता अमरीका की अंतर्भौम कविता है। बीट ही के समान दो अन्य अंतर्भोम संप्रदाय भी हैं-ब्लैक माउंटन कवि एवं न्यू पार्क कवि। पहले संप्रदाय में चार्ल्ज़ ओलसन, राबर्ट क्रीली, राबर्ट डंकन एवं जानथन विलियम्ज़ आते हैं। दूसरे संप्रदाय के अंतर्गत डेनिस लेवर्तोव, ल राय जोंज़ एवं फ्रैंक ओ' हारा आते हैं। बहुत सारे बीट्निक कवि आत्मसंन्धान के लिये भारत में भी आये थे और हिन्दु धर्म से काफि प्रभावित हुए थे।

विद्योचित कवियों में सबसे महत्वपूर्ण हैं अपराधस्वीकारी कवि राबर्ट लोवल, स्नोडग्राम, ब्रदर अंटोनिनुस, सिल्विया प्लैथ एवं थेओडोर रेथके। लाइल ग्लेज़ियर की कविताएँ (आर्चर्ड पार्क अंड इस्तांबूल, १९६५, यू टू, १९६९, द डार्विसिज, १९७०, एवं वाइसिज़ ऑव दडेड, १९७१) भी इसी श्रेणी में आएँगी। राबर्ट ब्लाई, जेम्ज़ राइट, राबर्ट केली, विलियम डफ़ी एवं जेरेमो रादनबर्ग अपने को नितलबिंबीय कति कहते हैं। इनके अतिरिक्त बेरीमन, श्वार्त्स, जारल, शपियरो, नेमरोव, एबर्हार्ट, कुनित्स, वियरेक, स्मिथ, विल्बर एवं डिकी भी विद्योचित्त कवि हैं। स्त्री कवियों में हाज़, स्वेंसन, मिलर, मक्गिनली, बिशप, रकेसर, सेक्स्टन एवं गार्डनर के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। नीग्रो कवियों में वाकर, ग्वेंडलिन, डाड्सन, टाल्सन, बेंड, जोंज़, ओडेन, रिवर्ज़ आदि नीग्रों लोकगीतों से प्रेरणा प्राप्त करते हैं।

कहना नहीं होगा, पाउंड, टेट, रेंसम, एलियट, ऑडन एवं कमिंग्ज़ के समान द्वितीय महायुद्धोत्तर २५ वर्षो में नवोदित कवियों ने सुख्याति अभी तक नहीं प्राप्त की।

नाटक

द्वितीय महायुद्धोत्तर नाटय साहित्य में आत्यंतिक प्रयोग हुए हैं। उपन्यास एवं कविता के समान ही नाटक ने आत्महस्ती के बिंबोंपर बल दिया है। मानवीय सत्य को निरूपित करने के लिए उसने अभिव्यंजनावाद अथवा अतियथार्थवाद की सहायता ली एवं मानव प्रकृति के तरल पक्ष पर बल दिया। आर्थर मिलर में सामाजिक संवेग के होते हुए भी वैयक्तिक मन:स्थिति का संत्रस्त बोध है। टेनेसी विलियम्ज़ में संस्कृति की प्राचीरों पर स्वप्न एवं इच्छाओं का सशक्त प्रहार होता है। एडवर्ड आल्बो एवं जैक गेल्बर विवेक के सीमांतक क्षेत्र से मनुष्य के आंतरिक गर्त एवं अंधकार पर दृष्टिपात करते हैं। इन चार नाटककारों का स्थान इस समय सर्वोपरि है। वैसे रिचर्डसन, हेज़, विलिंगम, विडल, फूट, गिब्सन, चायफ़्स्की, नैश, इंज, लारंट्स, ऐंडर्सन, कपोट, मकलर्ज़, माज़ेल फ्रग्ज, लॉगन, ब्रेट, शुल्बर्ग एवं वोक ने भी इस काल में नाटक लिखे हैं।

आर्थर मिलर के नाटकों में एक नई गरिमा एवं सारगर्भ है जो मनुष्य की कायम रहने की इच्छाशक्ति, मानवीय संबंधों के घनत्व एवं अनुभूति के वैचित््रय से ओतप्रोत है। मिलर के अनुसार मनुष्य अपने सामाजिक एवं राजनीतिक वातावरण द्वारा यथोचित अंश में परिभाषित नहीं हो सकता और न ही वह अव्यक्त शक्तियों के प्रभाव से ही अछूता रह सकता है। मिलर के पात्रों की शक्ति वफादारी के बढ़ते हुए वृत्त में उनके सपनों में निहित है। पापयुक्त संवेग तब तक सार्थक नहीं होता जब तक बृहत्तर प्रतिज्ञाबद्धताएँ उसका खंडन न करें। बृहत्तर प्रतिज्ञाबद्धताएँ व्यक्ति एवं समाज दोनों के ही ऊपर हैं। ये प्रवृत्तियाँ "द मैन हू हैड आल द लक' (१९४४); "आल माई संज़' (१९४७); "डैथ आव द सेल्ज़मन' (१९४७); "दक्रसिब्ल' (१९५३); "व्यू फ्राम द ब्रिज' (१९५५); एवं "अ मेमरी ऑव टू मांडिज' (१९५५); एवं "अ मेमरी ऑव टू मांडिज' (१९५५); में स्पष्ट देखी जा सकती हैं।

टेनेसी विलियम्ज़ के स्वप्न, इच्छाएँ एवं पुराकथाएँ मिलर के यथार्थीय, नैतिक एवं सामाजिक दर्शन के विपरीत हैं। विलियम्ज़ के पात्र एकाकी शिकार, अजनबी, लीकपतित एवं भगोड़े हैं। उनके नाटक भयावह कृत्य, हत्या, कामविकृति, नरभक्षण, शीलअपहरण एवं सनसनीदार बीभत्स घटनाओं से भरे हैं। जब बलिपशु पात्र ऐसी भयावह अस्तित्वपरक स्थितियों से होकर गुजरता है तो उसकी कल्पना धार्मिकता का स्पर्श करती है। ये विशिष्टताएँ "द ग्लास मिनाज्शरी (१९४५); "अ स्ट्रीटकार नेम्ड डिजाएर' (१९४७); "कामीनो रेयाल' (१९५३); "आर्फयूस डिसेंडिंग' (१९५५); "सड्न्ली लास्ट समर' (१९४८); "नाइट ऑव दि इगुआना' (१९६१); आदि नाटकों में दृष्टिगत हैं।

टेनेसी विलियम्ज़ ने जिन मूल वृत्तियों पर बल दिया उन्हीं को आधार बनाकर एडवर्ड आल्बी एवं जैक गेल्बर ने अमरीका में निरर्थक अस्तित्व के नाटयसाहित्य का निर्माण किया। उनका जीवनदर्शन यह स्पष्ट देखता है कि मनुष्य ने वर्तमान सामाजिक संगठन एवं संस्थाओं के कारण अपनी नियति पर अपना नियंत्रण खो दिया है। अत: अस्तित्व निरर्थक है एवं मनुष्य अपने अंत की असहाय प्रतीक्षा कर रहा है। एडवर्ड आल्बी के "दि अमरीकन ड्रीम' (१९५९); "द डेथ ऑव बेसी स्मिथ' (१९५९); "हूज़ अफ्रेड ऑव वर्जीनिया वुल्फ' (१९६०); एवं जैक गेल्बर के "द कनेक्शन' (१९५९); तथा "दि ऐप्ल' (१९६१) में निरर्थक अस्तित्व के नाटयसाहित्य की प्रमुख विशिष्टताएँ स्पष्ट लक्षित हैं।

आलोचना

द्वितीय महायुद्धोत्तर २५ वर्षों को प्राय: ही अमरीकी साहित्य में आलोचना का युग कहा जाता है। रैंडल जारल की "पोइट्री ऐंड दि एज' (१९५३); कार्ल शपियरों की "इन डिफेंस ऑव इग्नरंस' (१९६०), नार्मन मेलर की "अडवर्टिज्मंट फार माइसेल्फ' (१९५९); जेम्ज़ बाल्डविन की "नोबडी नोज़ माई नेम' (१९६१); होफ़मान की "फ्राईडियनिज्म अंड द लिट्ररी माइंड (१९४५), ब्राउन की "लाइफ़ अगेंस्ट डेथ' (१९५९); एवं ट्रिलिंग की "फ्राइड अंड द क्राइसिस ऑव अवर कलचर' (१९५५); को पर्यापत सैद्धांतिक ख्याति मिली। युद्धोत्तर संकट एवं विश्वव्यापी संत्रास के भाव ने आलोचकों एवं विचारकों में आत्मबोध के भार को उत्प्रेरित किया तथा वे मात्र रसवाद से कहीं परे आलोचनात्मक सिद्धांतों का नियोजन करने के लिए बाध्य हुए। आधारगत समस्याओं से उत्प्रेरित उनके मानसिक प्रयास ने मनुष्य के अपनी आत्महस्ती के प्रति, समाज के प्रति एवं भगवान्‌ के प्रति संबंधों का एक नया आलोचनात्मक दर्शन प्रस्तुत किया।

इस काल की अमरीकी आलोचना का सबसे महान्‌ पक्ष है पुरागाथी आलोचना, जिसका इस लघु अवधि में ही विश्वव्यापी प्रभाव पड़ा है। पुरागाथी आलोचना के प्रमुख प्रवर्तक हैं जोज़फ कैंपबेल, फ्रैंसिस फ़र्ग्युसन, वेन शुमेकर, फ़िलिप वीलराइट एवं नर्थ्राप फ्राई। इस आलोचनाप्रवाह पर मनोविज्ञान, मनोविश्लेषण तथा मानवशास्त्र का व्यापक प्रभाव पड़ा है। पुरागाथी आलोचना के आधारभूत सिद्धांतों का संक्षिप्त विवरण ही यहाँ संभव है।

साहित्य पुराकथाओं के समान ही मनुष्य की आकांक्षाओं तथा दु:स्वप्नों का शाब्द प्रक्षेपण है, अतएव साहित्यिक विश्वसंभावनाओं अथवा शक्यताओं का काल्पनिक विश्व है। साहित्य विधाओं, प्रतीकों, कथाओं एवं प्रकारों का अंतर्बध है। विधाएँ पाँच है: देवाख्यान विधा, अद्भुत विधा, उच्चानुकृति विधा, निम्नानुकृति विधा, एवं व्यंग्य विधा। विधाओं के समरूप ही पाँच प्रतीक है : रहस्यवादी एक अथवा चिदण, पुरागाथी आद्यरूप, रौपिक बिंब अपकेंद्रीय निर्देशात्मक चिह्न एवं अभिकेंद्रीय आक्षरिक मूलभाव। कथाएँ चार हैं-कामदीय, अद्भुत कथा, त्रासदीय कथा ही शारदीय कथा है, एवं व्यंग्य हेमंती है। साहित्यप्रकारों का वर्गीकरण लय एवं प्रस्तोतामाध्यम के आधार पर किया गया है। इस आलोचना की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके सारे ही नियम स्वयं साहित्यानुमानित हैं वैसे ही जैसे भौतिकी के नियम विश्व एवं प्रकृति के अवलोकन से ही प्राप्त किए गए हैं। पुरागाथी आलोचना ने समीक्षा को पहली बार एक क्रमानुगत विकासोन्मुख शास्त्र के रूप में प्रस्तुत किया है। आनेवाली पीढ़ियाँ तथ्य एवं तर्क की त्रुटियों को सुधार सकती हैं।

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