अमरसिंह राठौड़
अमरसिंह राठौड़ (11 दिसम्बर 1613 - 25 जुलाई 1644) मारवाड़ राज्य के प्रसिद्ध राजपूत थे। वो १७वीं सदी में भारत के मुग़ल सम्राट शाह जहाँ के राजदरबारी थे।[1] अपने परिवार द्वारा निर्वासित करने के बाद वो मुग़लों की सेवा में आये। उनकी प्रसिद्ध बहादुरी और युद्ध क्षमता के परिणामस्वरूप उन्हें सम्राट द्वारा शाही सम्मान और व्यक्तिगत पहचान मिली। जिसके बाद उन्हें नागौर का सुबेदार बनाया गया और बाद में उन्होंने ही यहाँ शासन किया।[1] सन् १६४४ में उनकी अनधिकृत अनुपस्थिति में सम्राट द्वारा कराधान से नाराज हुए और कर लेने के लिए जिम्मेदार सलाबत खान का तलवार से गला काट दिया।[2] उनका वर्णन राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पंजाब के कुछ लोकगीतो में प्रसिद्धि प्राप्त है।[3] [4]राव अमर सिंह के दो पुत्र थे, रायसिह और ईश्वरी सिंह। आगरा के क़िले का एक द्वार बुखारा द्वार या अमरसिंह फाटक के नाम से भी जाना जाता है। अमरसिंह के बाद उसके पुत्र रायसिह को चार हजारी जात, चार हजार सवारो का मनसब,राजा का खिताब दिया गया था।
राव सिंधल जी -राव सिंधल का जन्म वि.स.१३४९ (१२९२ ई.)इनके पिता राव जोपसाजी थे तथा दादा श्री राव आस्थान जी ।राव सिंधल का विवाह उमादे देवल (वजेपाल लाखसिगोतरी) के साथ हुआ था।इनके पांच पुत्र १.चाहड ऊर्फ साहड २.वेरीसाल ३.सेखोजी ४.विक्रमात ५.रामोजी थे। राव सिंधल का अधिकार जालोर के पास बालवाडा पर रहा।बाद में भाद्राजुन,जैतारण,सोजत,रायपुर पर कुछ समय के लिये अधिकार रहा।इसके अलावा कवलां,पांचोटा,आकोरापादर,जेतपुरा,अजीतपुरा,मानपुरा,रोडलां,अणगोर,भागली,जाखोडा,कुटेलाव आदि पर वर्चस्व रहा। राव सिंधल के भाई उहड ,जोलु,जोरा,सीवाल,मुलु थे।
किंवदंती
राजा गज सिंह मुगल शासक शाहजहां के अधीन मारवाड़ क्षेत्र के शासक थे । उनके पुत्र अमरसिंह राठौड़ एक महान योद्धा और एक देशभक्त थे, लेकिन उनके पिता ने उन्हें मुगलों से एक डाकू को बचाने के कारण राज्य से निर्वासित कर दिया था। बाद में वह शाहजहां की दिल्ली सल्तनत में शामिल हो गए, जहाँ उन्होंने शाहजहां को अपनी वीरता से प्रभावित किया, जिससे उन्हें नागौर का जागीरदार बनाया गया । हालांकि सम्राट के भाई सलाबत खान, राज्य में अमर सिंह राठौड़ के उत्थान से जलते थे और अमर सिंह को बदनाम करने का अवसर की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्हें जल्द ही यह मौक़ा मिल गया, जब अमर सिंह की अनधिकृत अनुपस्थिति के बारे में कुछ छोटी-छोटी बातों के बारे में पता चला । सलाबत खान ने एक मुद्दे के रूप में इसे इतना बढ़ा दिया कि शाहजहां ने सलाबत को अमर सिंह को दंड देने का आदेश दिया । इसका फायदा उठाते हुए, सलाबत ने अमर सिंह को धमका कर उसी वक्त दंड का भुगतान करने को कहा। सलाबत ने यह भी चेतावनी दी कि वह अमर सिंह को बिना दंड का भुगतान किये उन्हें जाने नहीं देगा । अमर सिंह ने अपनी तलवार बाहर निकाली और सलाबत को मौके पर मौत के घाट उतार दिया । सम्राट शाहजहां भी इस घटना से अचंभित हो गए और अमर सिंह को मारने के लिए अपने सैनिकों को आदेश दिया। हालांकि, बहादुर अमर ने अपना युद्ध कौशल दिखाया और उन सभी को मार डाला, जिन्होंने उनपर आक्रमण किया था। और अपने घोड़े पर सवार होकर किले से घोड़े सहीत छलांग लगा दी और किले से बाहर निकल कर सुरक्षित स्थान पर लौट गए।
अगले दिन अदालत में सम्राट ने घोषणा की कि अमर सिंह को मारने वाले को जागीरदार बना दिया जाएगा, हालांकि कोई भी अमर सिंह राठौर के साथ दुश्मनी मोल लेने के लिए तैयार नहीं था, क्योंकि उन्हें सिर्फ एक दिन पहले ही अमर सिंह क्रोध का सामना करना पड़ा था । अर्जुन सिंह जो अमर सिंह के साले थे, ने लालच में आकर इस चुनौती को स्वीकार कर लिया। अर्जुनसिंह ने अमरसिंह से कहा कि शाहजहां को अपनी गलती का एहसास हो गया है, और वह अमर सिंह जैसा योद्धा नहीं खोना चाहता । हालांकि अमर सिंह को शुरुआत में इस बात पर विश्वास नहीं था, परन्तु जल्द ही वे अर्जुनसिंह के विश्वासघात की कला के झांसे में आ गए।
इस बीच, शाहजहां की अदालत के सामने एक छोटा दरवाजा खड़ा किया गया था, जिससे अमर सिंह को अदालत में प्रवेश करने के लिए उसके सामने झुकना पड़े । पहले अमर के कृत्यों को और अदालत में कार्यवाही देखकर, एक उत्सुक फकीर ने सम्राट से पूछा, "हम इतने सारे योद्धाओं वाले हिंदुस्तान को कैसे जीत सकते हैं" शाहजहां ने कहा, "रुको और देखो कि हम कैसे करते हैं"। अमर सम्राट के सामने झुकने के लिए तैयार नहीं था और अर्जुनसिंह ने ये जान लिया। उसने अमर सिंह को पहले प्रवेश करने कहा। अमर ने उसकी सलाह मान ली, अर्जुनसिंह दूसरी तरफ से आया और अमर सिंह की छाती में खंजर घोंप दिया,अमर सिंह वही पर वीरगति को प्राप्त हुए। तो अर्जुनसिंह ने उनका सर काटा और सम्राट के पास ले गया । राजा ने फकीर की ओर इशारा किया और कहा "अब तुम्हें पता हो गया कि हमने योद्धाओं से कैसे छुटकारा पा लिया"। बाद में शाहजहां ने अर्जुनसिंह को भी मार दिया ।
अमर सिंह की मृत्यु की सूचना पर, उनकी पत्नी, बल्लू जी चंपावत और राम सिंह के नेतृत्व में राजपूत सैनिकों ने किले पर हमला किया, जहां अमर सिंह का मृत शरीर पड़ा था । हालांकि हजारों मुगल सैनिकों ने राजपूत बलों को घेर लिया, बहादुर राजपूत बलों ने उनका सामना किया, जब तक कि अमर सिंह के शरीर को किले से दूर नहीं ले जाया गया। यद्यपि उन सभी राजपूत लड़ाकों ने अपना जीवन मृत्यु को समर्पित कर दिया, लेकिन वे कभी भी मुगल सल्तनत के सामने झुके नहीं । बाद में, किले का वह संकीर्ण दरवाजा आम तौर पर "अमर सिंह दरवाजा" के रूप में जाना जाने लगा, क्योंकि यह मुस्लिम सेना के समक्ष राजपूत बहादुरी का प्रतीक था। कुछ इतिहासकारों का दावा है कि शाहजहां ने स्थायी रूप से दरवाजा बंद करने का आदेश दिया, क्योंकि वह उसे राजपूत बलों के हाथों से उनकी हार की याद दिलाता था। नागौर जिले में अमरसिंह राठौड़ की 16 खंबो की छतरी है। अमरसिंह राठौड़ को "कटार का धनी" कहा जाता है। लोक कथा में उन राजपूत लड़ाकों की प्रशंसा में एक हृदयस्पर्शी गायन शैली विकसित हुई, जो स्वाभिमान के लिए लड़े और गर्व से मरे । आज आगरा के किले में आने वाले पर्यटकों के लिए मुख्य द्वार अमर सिंह द्वार ही है ।
लोकप्रिय संस्कृति में स्मरण
अमर सिंह राठौड़ को असाधारण शक्ति, इच्छा और स्वतंत्रता का प्रतीक माना जाता है। न ही डर, न ही लालच अपने फैसले को प्रभावित करने में सक्षम थे। वह एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में अमर सिंह राठौर वीरगति को प्राप्त हुए और बल्लू जी चंपावत (गांव- हरसोलाव) की बहादुरी अभी भी राजस्थान में लोकगीतों और आगरा के आसपास याद है। अमर सिंह पर आधारित एक हिंदी फिल्म 1 9 70 में 'वीर अमर सिंह राठौड़' नामक फिल्म बनाई गई थी और राधाकांत द्वारा निर्देशित थी। देव कुमार, कुमकुम और ज़ब्बा रहमान, ब्लैक एंड व्हाईट में फिल्म के प्रमुख अभिनेता थे। एक गुजराती फिल्म को एक ही विषय पर बनाया गया था और मुख्य भूमिका गुजराती सुपर स्टार उपेंद्र त्रिवेदी ने की थी। आगरा के किले का एक द्वार उन्हें 'अमर सिंह गेट' के रूप में नामित किया गया जो आगरा में एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण है।
मूल | अंग्रेजी अनुवाद |
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सन्दर्भ
- ↑ अ आ Jeffrey G. Snodgrass, Casting kings: bards and Indian modernity, ऑक्सफोर्ड यूनिवरसिटि प्रेस यूएस, २००६, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-19-530434-3, मूल से 6 जुलाई 2014 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 6 मार्च 2015,
... Amar Singh Rathore was seventeenth-century noble belonging to Jodhpur's royal Rajput family during the reign of the Mughal emperor Shah Jahan ... made the emperor's representative (subedar) of Nagaur district ...
- ↑ Thomas William Beale, A oriental biographical dictionary: founded on materials collected by the late Thomas William Beale, Kraus Reprint, 1881, मूल से 6 जुलाई 2014 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 6 मार्च 2015,
... Sala'bat Khan, صلابت خان, a nobleman who held the title of Mir Bakhshi or paymaster general in the time of the emperor Shah Jahan. He was stabbed in the presence of the emperor by a Rajput chief named Amar Singh Rathor the son of Gaj Singh ...
- ↑ R. C. Temple, Legends of the Panjab, Part 3, Kessinger Publishing, 2003, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-7661-6349-2, मूल से 6 जुलाई 2014 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 6 मार्च 2015,
... Jabbal kadhi misri nikali do dhari, Mare Salabat Khan di ja khili pari ...
- ↑ रेऊ, पंडित विश्वेश्वरनाथ (1950). मारवाड़ का इतिहास. जोधपुर: आर्कियोलॉजी डिपाटमंट जोधपुर. पपृ॰ ६५६.