अबू उबैदाह इब्न अल-जर्राह
अबू उबैदाह इब्न अल-जर्राह Abu Ubaidah Ibn Al-Jarrah | |
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बाल्का प्रांत, जार्डन में स्थित हजरत अबू उबैदाह का मजार | |
उपनाम | अबू उबैदाह अमीन अल-उम्मा |
जन्म | 583 मक्का, अरब |
देहांत | 639 जार्डन घाटी, जार्डन। |
निष्ठा | रशीदुन खिलाफत |
सेवा/शाखा | रशीदुन सेना |
सेवा वर्ष | 634 - 639 |
उपाधि | फील्ड कमांडर (632-634) कमांडर इन-चीफ (634-639) |
नेतृत्व | लेवंत गवर्नर (634-638) |
युद्ध/झड़पें | मुस्लिम-कुरैश युद्ध रशीदुन खिलाफत की लेवेंट पर विजय |
अबू उबैदाह इब्न अल-जर्राह; Abu Ubaidah Ibn Al-Jarrah: अरबी: أبو عبيدة عامر بن عبدالله بن الجراح) इस्लामी पैंगबर हजरत मुहम्मद सहाब के सहाबाओ में से एक थे और खलीफा हजरत उमर के खिलाफत शासन काल में एक बड़े वर्ग के कमांडर थे तथा खलीफा हजरत उमर के उत्तराधिकारियो की सूची में भी थे।
प्रारंभिक जीवन
हजरत अबू उबैदाह का जन्म 583 ईस्वी में मक्का, अरब में हुआ था। इनके पिता अबू उबैदाह अब्दुल्लाह इब्न अल जर्राह पेशे से एक व्यापारी थे जो अरब के एक कुरैश कबीले से थे। हजरत अबू उबैदाह कुरैश कबीले के धनी व्यक्तियो में से एक थे जिस कारण अपनी शीलता और बहादुरी के लिए मक्का में कुरैश के बीच प्रसिद्ध थे अबू उबैदाह ने हजरत अबु बक्रर सिद्दीक के इस्लाम स्वीकार करने के एक दिन बाद इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था।
सैन्य नेतृत्व
हजरत अबू उबैदाह ने लेवंत क्षेत्र में अधिक सैन्य नेतृत्व किया जिसमें रशीदुन सेना को महत्वपूर्ण सफलताएँ मिली जिसके लिए उन्हें 634 ईस्वी में लेंवत क्षेत्र का गवर्नर भी नियुक्त किया गया था जो 638 तक रहे गवर्नर के पद समाप्ति के एक वर्ष वाद 639 ईस्वी में मृत्यु हो गई थी।
सरिय्या अबू उबैदाह इब्न अल-जर्राह
एक प्रारंभिक इस्लामी अभियान था जो अगस्त 627 में इस्लामिक कैलेंडर के 6हिजरी के चौथे महीने में हुआ था। इस्लाम के पैग़म्बर मुहम्मद द्वारा साथी (सहाबा) मुहम्मद बिन मसलमा रज़ि० के नेतृत्व में बनू सालबा जनजाति पर पहला हमला विफल रहा, मसलमा रज़ि० के साथियों की शहादत के बाद रबीउल आखिर 06 हि० ही में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत अबू उबैदाह इब्न अल-जर्राह रजि० को जुलक़िस्सा की ओर रवाना फ़रमाया। उन्होंने चालीस व्यक्तिों को लेकर सहाबा किराम रजि० की शहादतगाह का रुख किया और रात भर पैदल सफर कर के बहुत सवेरे बनू सालवा के इलाके में पहुंचते ही छापा मार दिया, लेकिन लेकिन वे जल्दी से पहाड़ों पर भाग गए। मुसलमानों ने उनके मवेशी, कपड़े ले लिए और एक आदमी को पकड़ लिया। पकड़े गए आदमी ने इस्लाम कबूल कर लिया और मुहम्मद ने उसे रिहा कर दिया।[1]
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ सफिउर्रहमान मुबारकपुरी, पुस्तक अर्रहीकुल मख़तूम (सीरत नबवी ). "सरिय्या ज़ुल क़िस्सा -2". पृ॰ 646. अभिगमन तिथि 13 दिसम्बर 2022.