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अपोलो अभियान

अपोलो अभियान
CountryUnited States
OrganizationNASA
PurposeCrewed lunar landing
StatusCompleted
Program history
Cost
  • $25.4 billion (1973)[1]
Duration1961–1972
Maiden flight
  • SA-1
  • अक्टूबर 27, 1961 (1961-10-27)
First crewed flight
  • Apollo 7
  • अक्टूबर 11, 1968 (1968-10-11)
Last flight
  • Apollo 17
  • दिसम्बर 19, 1972 (1972-12-19)
Successes32
Failures2 (Apollo 1 and 13)
Partial failures1 (Apollo 6)
Launch site(s)
Vehicle information
Crew vehicle
Launch vehicle(s)

अपोलो कार्यक्रम यह संयुक्त राज्य अमरीका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा की मानव उड़ानो की एक श्रंखला थ। इस में सैटर्न 5 रॉकेट और अपोलो यानों का प्रयोग किया गया था।[2][3] यह श्रंखला उड़ान १९६१-१९७४ के मध्य में हुयी थी। यह श्रंखला अमरीकी राष्ट्रपत जॉन एफ॰ केनेडी के १९६० के दशक में चन्द्रमा पर मानव के सपने को समर्पित थी। यह सपना १९६९ में अपोलो ११ की उड़ान ने पूरा किया था।[4]

यह अभियान १९७० के दशक के शुरुवाती वर्षो में भी चलता रहा, इस कार्यक्रम में चन्द्रमा पर छः मानव अवतरणो के साथ चन्द्रमा का वैज्ञानिक अध्ययन कार्य किया गया। इस कार्यक्रम के बाद आज २००७ तक पृथ्वी की निचली कक्षा के बाहर कोई मानव अभियान नहीं संचालित किया गया है। बाद के स्कायलैब कार्यक्रम और अमरीकी सोवियत संयुक्त कार्यक्रम अपोलो-सोयुज जांच कार्यक्रम जिन्होने अपोलो कार्यक्रम के उपकरणो का प्रयोग किया था, इसी अपोलो कार्यक्रम का भाग माना जाता है।

बहुत सारी सफलताओं के बावजूद इस कार्यक्रम को दो बड़ी असफलताओं को झेलना पड़ा। इसमे से पहली असफलता अपोलो १ की प्रक्षेपण स्थल पर लगी आग थी जिसमें विर्गील ग्रीसम, एड व्हाईट और रोजर कैफी शहीद हो गये थे। इस अभियान का नाम AS२०४ था लेकिन बाद में शहीदों की विधवाओं के आग्रह पर अपोलो १ कर दिया गया था। दूसरी असफलता अपोलो १३ में हुआ भीषण विस्फोट था लेकिन इसमे तीनों यात्रियों को सकुशल बचा लिया गया था।

इस अभियान का नाम सूर्य के ग्रीक देवता अपोलो को समर्पित था। नील आर्मस्ट्रांग २० जुलाई १९६९ को चन्द्रमा की धरती पर पहला कदम रखा यह अमेरिकी नागरिक थे १

पृष्ठभूमि

अपोलो अभियान का प्रारंभ आइजनहावर के राष्ट्रपतित्व काल के दौरान १९६० के दशक की शुरूवात में हुआ था। यह मर्क्युरी अभियान का अगला चरण था। मर्क्युरी अभियान में एक ही अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी की निचली कक्षा में सीमीत परिक्रमा कर सकता था, जबकि इस अभियान का उद्देश्य तीन अंतरिक्षयात्री द्वारा पृथ्वी की वृत्तीय कक्षा में परिक्रमा और संभव होने पर चन्द्रमा पर अवतरण था। नवंबर १९६० में जान एफ केनेडी ने एक चुनाव प्रचार सभा में सोवियत संघ को पछाड़ कर अंतरिक्ष में अमरीकी प्रभूता साबित करने का वादा किया था। अंतरिक्ष प्रभूता तो राष्ट्रीय प्रतिष्ठा का प्रश्न था लेकिन इसके मूल में प्रक्षेपास्त्रो की दौड़ में अमरीका के पिछे रहना था। केनेडी ने अमरीकी अंतरिक्ष कार्यक्रम को आवश्यक वित्तीय सहायता उपलब्ध करायी।

१२ अप्रैल १९६१ में सोवियत अंतरिक्ष यात्री युरी गागरीन अंतरिक्ष में जाने वाले प्रथम मानव बने; इसने अमरीका के मन में अंतरिक्ष की होड़ में पिछे रहने के डर को और बड़ा दिया। इस उड़ान के दूसरे ही दिन अमरीकी संसद की विज्ञान और अंतरिक्ष सभा की बैठक बुलायी गयी। इस सभा में अमरीका के सोवियत से आगे बड़ने की योजनाओ पर विचार हुआ। सरकार पर अमरीकी अंतरिक्ष कार्यक्रम को तेजी से आगे बडाने के लिये दबाव डाला गया।

२५ मई १९६१ को केनेडी ने अपोलो कार्यक्रम की घोषणा की। उन्होने १९६० के दशक के अंत से पहले चन्द्रमा पर मानव को भेजने की घोषणा की।

अभियान की शुरूवात

केनेडी ने एक लक्ष्य दे दिया था, लेकिन इस में मानव जीवन, धन, तकनीक की कमी और अंतरिक्ष क्षमता की कमी का एक बड़ा भारी खतरा था। इस अभियान के लिये निम्नलिखित पर्याय थे

१. सीधी उडा़न : एक अंतरिक्षयान एक इकाई के रूप में चन्द्रमा तक सीधी उड़ान भरेगा, उतरेगा और वापस आयेगा। इसके लिये काफी शक्तिशाली रॉकेट चाहिये था जिसे नोवा रॉकेट का नाम दिया गया था।

२.पृथ्वी परिक्रमा केंद्रीत उडा़न: इस पर्याय में दो सैटर्न ५ रॉकेट छोडे़ जाने थे, पहला रॉकेट अंतरिक्षयान को पृथ्वी की कक्षा के बाहर छोड़ने के बाद अलग हो जाता जबकि दूसरा रॉकेट उसे चन्द्रमा तक ले जाता।

सीधी उड़ान के लिये प्रस्तावित यान- १९६१ (नासा)

३.चन्द्र सतह केंद्रीत उडा़न: इस पर्याय में दो अंतरिक्ष यान एक के बाद एक छोडे़ जाते। पहला स्वचालित अंतरिक्षयान ईंधन को लेकर चन्द्रमा पर अवतरण करता, जबकि दूसरा मानव अंतरिक्ष यान उसके बाद चन्द्रमा पर पहुंचता। इसके बाद स्वचालित अंतरिक्ष यान से ईंधन मानव अंतरिक्षयान में भरा जाता। यह मानव अंतरिक्षयान पृथ्वी पर वापस आता।

४.चन्द्रमा कक्षा केंद्रीत अभियान : इस पर्याय में एक सैटर्न रॉकेट द्वारा विभीन्न चरणो वाले अंतरिक्ष यान को प्रक्षेपित करना था। एक नियंत्रण यान चन्द्रमा की परिक्रमा करते रहता, जबकि चन्द्रयान चन्द्रमा पर उतरकर वापस नियंत्रण यान से जुड़ जाता। अन्य पर्यायों की तुलना में इस पर्याय में चन्द्रयान काफी छोटा था जिससे चन्द्रमा की सतह से काफी कम द्रव्यमान वाले यान को प्रक्षेपित करना था।

१९६१ में नासा के अधिकतर विज्ञानी सीधी उड़ान के पक्ष में थे। अधिकतर अभियंताओं को डर था कि बाकि पर्यायों की कभी जांच नहीं की गयी है और अंतरिक्ष में यानों का विच्छेदीत होना और पुनः जुड़ना एक खतरनाक और मुश्किल कार्य हो सकता है। लेकिन कुछ विज्ञानी जिसमें जान होबाल्ट प्रमुख थे, चन्द्रमा परिक्रमा केंद्रीत उड़ानों की महत्त्वपूर्ण भार में कमी वाली योजना से प्रभावित थे। होबाल्ट ने सीधे सीधे इस कार्यक्रम के निदेशक राबर्ट सीमंस को एक पत्र लिखा। उन्होने इस पर्याय पर पूरा विचार करने का आश्वासन दिया।

इन सभी पर्यायों पर विचार करने के लिये गठित गोलोवीन समिती ने होबाल्ट के प्रयासो को सम्मान देते हुए पृथ्वी परिक्रमा केंद्रीत पर्याय और चन्द्रमा केन्द्रीत पर्याय दोनों के मिश्रीण वाली योजना की सिफारिश की। ११ जुलाई १९६२ को इसकी विधिवत घोषणा कर दी गयी।

अंतरिक्ष यान

अपोलो अंतरिक्ष यान के तीन मुख्य हिस्से और दो अलग से छोटे हिस्से थे। नियंत्रण कक्ष(नियंत्रण यान) वह हिस्सा था जिसमें अंतरिक्ष यात्री अपना अधिकतर समय (प्रक्षेपण और अवतरण के समय भी) बिताने वाले थे। पृथ्वी पर सिर्फ यही हिस्सा लौटकर आने वाला था। सेवा कक्ष में अंतरिक्षयात्रीयो के उपकरण, ऑक्सीजन टैंक और चन्द्रमा तक ले जाने और वापस लाने वाला इंजन था। नियंत्रण और सेवा कक्ष को मिलाकर नियंत्रण यान बनता था।

अपोलो नियंत्रण यान चन्द्रमा की कक्षा में।

चन्द्रयान चन्द्रमा पर अवतरण करने वाला यान था। इसमे अवरोह और आरोह चरण के इंजन लगे हुए थे जो कि चन्द्रमा पर उतरने और वापस मुख्य नियंत्रण यान से जुड़ने के लिये काम में आने वाले थे। ये दोनों इंजन भी नियंत्रण यान से जुड़ने के बाद मुख्य यान से अलग हो जाने वाले थे। इस योजना में चन्द्रयान का अधिकतर हिस्सा रास्ते में ही छोड़ दिया जानेवाला था, इसलिये उसे एकदम हल्का बनाया जा सकता था और इस योजना में एक ही सैटर्न ५ रॉकेट से काम चल सकता था।

चन्द्रमा की सतह पर अपोलो चन्द्रयान

चन्द्रमा पर अवतरण के अभ्यास के लिये चन्द्रमा अवतरण जांच वाहन(Lunar Landing Research Vehicle-LLRV) बनाया गया। यह एक उड़ान वाहन था जिसमें चन्द्रमा की कम गुरुत्व का आभास देने के लिये एक जेट इंजन लगाया गया था। बाद में LLRV को LLTV(चन्द्रमा अवतरण प्रशिक्षण वाहन -Lunar Landing Training Vehicle) से बदल दिया गया।

अन्य दो महत्त्वपूर्ण थे LET और SLA। LET (Launch Escape Tower) यह नियंत्रण यान को प्रक्षेपण यान से अलग ले जाने के लिये प्रयोग में लाया जाना था, वहीं SLA(SpaceCraft Lunar Module Adapter) यह अंतरिक्षयान को प्रक्षेपण यान से जोड़ने के लिये प्रयोग में लाया जाना था।

इस अभियान में सैटर्न 1B, सैटर्न ५ यह रॉकेट प्रयोग में लाये जाने थे।

सैटर्न ५ राकेट

अभियान

अभियान के प्रकार

इस अभियान में निम्नलिखित तरह के अभियान प्रस्तावित थे।

  • A मानव रहित नियंत्रण यान जांच
  • B मानव रहित चन्द्रयान जांच
  • C मानव सहित नियंत्रण यान पृथ्वी की निचली कक्षा में।
  • D मानव सहित नियंत्रण यान तथा चन्द्रयान पृथ्वी की निचली कक्षा में।
  • E मानव सहित नियंत्रण यान तथा चन्द्रयान पृथ्वी की दिर्घवृत्ताकार कक्षा में, अधिकतम दूरी ७४०० किमी।
  • F मानव सहित नियंत्रण यान तथा चन्द्रयान चन्द्रम की कक्षा में।
  • G चन्द्रमा पर अवतरण
  • H चन्द्रमा की सतह पर कुछ समय के लिये रूकना
  • I चन्द्रमा की सतह पर उपकरणो से वैज्ञानिक प्रयोग करना
  • J चन्द्रमा की सतह पर लंबे समय के लिये रूकना

चन्द्रमा पर अवतरण से पहले की असली योजना काफी रूढीवादी थी लेकिन सैटर्न ५ की सभी जांच उड़ान सफल रही थी इसलिये कुछ अभियानो को रद्द कर दिया गया था। नयी योजना जो अक्टूबर १९६७ में प्रकाशित हुयी थी के अनुसार प्रथम मानव सहित नियंत्रण यान की उड़ान अपोलो ७ होना थी, इसके बाद चन्द्रयान और नियंत्रण यान के साथ सैटर्न १बी की उड़ान अपोलो ८ की योजना थी जो पृथ्वी की परिक्रमा करने वाला था। अपोलो ९ की उड़ान में सैटर्न ५ रॉकेट पर नियंत्रण यान की पृथ्वी की परिक्रमा की योजना थी। इसके पश्चात अपोलो १० यह चन्द्रमा पर अवतरण की अंतिम रिहर्सल उड़ान होना थी।

लेकिन १९६८ की गर्मियो तक यह निश्चित हो गया था कि अपोलो ८ की उड़ान के लिये चन्द्रयान तैयार नहीं हो पायेगा। नासा ने तय किया कि अपोलो ८ को पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिये भेजने की बजाये चन्द्रमा की परिक्रमा के लिये भेजा जाये। यह भी माना जाता है कि यह बदलाव सोवियत संघ के चन्द्रमा परिक्रमा के अभियान झोंड (Zond) के डर से किया गया था। अमरिकी विज्ञानी इस बार सोवियत संघ से हर हाल में आगे रहना चाहते थे।

चन्द्रमा से लाये गये नमुने

अपोलो अभियान ने कुल मिलाकर चन्द्रमा से ३८१.७ किग्रा पत्थर और अन्य पदार्थो के नमुने एकत्र कर के लाये थे। इसका अधिकांश भाग ह्युस्टन की चन्द्रप्रयोगशाला(Lunar Receiving Laboratory) में रखा है।

Ferroan अपोलो १६ द्वारा प्राप्त अनोर्थोसिट

रेडीयोमेट्रीक डेटींग प्रणाली जांच से यह पाया गया है कि चन्द्रमा पर की चटटानो की उम्र पृथ्वी पर की चटटानो से कहीं ज्यादा है। उनकी उम्र ३.२ अरब वर्ष से लेकर ४.६ अरब वर्ष तक है। ये नमुने सौरमंडल निर्माण की प्राथमिक अवस्था के समय के है। इस अभियान में पायी गयी एक महत्त्वपूर्ण चट्टान जीनेसीस है। यह चट्टान एक विशेष खनीज अनोर्थोसिट की बनी है।

अपोलो एप्पलीकेशनस

अपोलो कार्यक्रम के बाद के कुछ अभियानो को अपोलो एप्पलीकेशनस नाम दिया गया था, इसमे पृथ्वी की परिक्रमा की ३० उड़ानो की योजना थी। इन अभियानो में चन्द्रयान की जगह वैज्ञानीक उपकरणो को लेजाकर अंतरिक्ष में प्रयोग किये जाने थे।

एक योजना के अनुसार सैटर्न १बी द्वारा नियंत्रण यान को प्रक्षेपित कर पृथ्वी की निचली कक्षा में ४५ दिन तक रहना था। कुछ अभियानो में दो नियंत्रण यान का अंतरिक्ष में जुड़ना और रसद सामग्री की आपूर्ती की योजना थी। ध्रुविय कक्षा के लिये सैटर्न ५ की उड़ान जरूरी थी, लेकिन मानव उड़ानो द्वारा ध्रुविय कक्षा की उड़ान इसके पहले नहीं हुयी थी। कुछ उड़ान भू स्थिर कक्षा की भी तय की गयी थी।

इन सभी योजनाओ में से सिर्फ २ को ही पूरा किया जा सका। इसमे से प्रथम स्कायलैब अंतरिक्ष केन्द्र था जो मई १९७३ से फरवरी १९७४ तक कक्षा में रहा दूसरा अपोलो-सोयुज जांच अभियान था जो जुलाई अ९७५ में हुआ था। स्कायलैब का ईंधन कक्ष सैटर्न १बी के दूसरे चरण से बनाया गया था और इस यान पर अपोलो की दूरबीन लगी हुयी थी जोकि चन्द्रयान पर आधारित थी। इस यान के यात्री सैटर्न १बी रॉकेट से नियंत्रण यान द्वारा स्कायलैब यान तक पहुंचाये गये थे, जबकि स्कायलैब यान सैटर्न ५ रॉकेट द्वारा प्रक्षेपित किया गया था। स्कायलैब से अंतिम यात्री दल ८ फ़रवरी १९७४ को विदा हुआ था। यह यान अपनी वापसी की निर्धारित तिथि से पहले ही १९७९ में वापस आ गया था।

अपोलो-सोयुज जांच अभियान यह अमरीका और सोवियत संघ का संयुक्त अभियान था। इस अभियान में अंतरिक्ष में मानवरहित नियंत्रण यान और सोवियत सोयुज यान का जुड़ना था। यह अभियान १५ जुलाई १९७५ से २४ जुलाई १९७५ तक चला। सोवियत अभियान सोयुज और सेल्युट यानों के साथ चलते रहे लेकिन अमरीकी अभियान १९८१ में छोडे़ गये एस टी एस १ यान तक बंद रहे थे।

अपोलो अभियान का अंत और उसके परिणाम

अपोलो कार्यक्रम की तीन उड़ाने अपोलो १८,१९,२० भी प्रस्तावित थी जिन्हे रद्द कर दिया गया था। नासा का बजट कम होते जा रहा था जिससे द्वितिय चरण के सैटर्न ५ रॉकेटों का उत्पादन रोक दिया गया था। इस अभियान को रद्द कर अंतरिक्ष शटल के निर्माण के लिये पैसा उपलब्ध कराने की योजना थी। अपोलो कार्यक्रम के यान और रॉकेटों के उपयोग से स्कायलैब कार्यक्रम प्रारंभ किया गया। लेकिन इस कार्यक्रम के लिये एक ही सैटर्न ५ रॉकेट का प्रयोग हुआ, बाकि रॉकेट प्रदर्शनीयों में रखे हैं।

उपयोग नहीं किया गया नियंत्रण यान CM-007 Museum of Flight सीयेटलमे

नासा के अगली पीढ़ी के अंतरिक्ष यान ओरीयान जो अंतरिक्ष शटल के २०१० में रिटायर हो जाने पर उनकी जगह लेंगे, अपोलो कार्यक्रम से प्रभावित है। ओरायन यान सोवियत सोयुज यानों की तरह जमीन से उड़ान भरकर जमीन पर वापस आयेंगे, अपोलो के विपरीत जो समुद्र में गिरा करते थे। अपोलो की तरह ओरायन चन्द्र कक्षा आधारित उड़ान भरेंगे लेकिन अपोलो के विपरीत चन्द्रयान एक दूसरे रॉकेट अरेस ५ से उड़ान भरेगा, अरेस ५ अंतरिक्ष शटल और अपोलो के अनुभवों से बना है। ओरायन अलग से उड़ान भरकर चन्द्रयान से पृथ्वी की निचली कक्षा में जुड़ेगा। अपोलो के विपरित ओरायन चन्द्रमा की कक्षा में मानव रहित होगा जबकि चन्द्रयान से सभी यात्री चन्द्रमा पर अवतरण करेंगे।

अपोलो अभियान पर कुल खर्च १३५ अरब डालर था (२००६ की डालर कीमतों के अनुसार)(२५.४ अरब डालर १९६९ कीमतों के अनुसार)। अपोलो यान के निर्माणखर्च २८ अरब डालर था जिसमें १७ अरब डालर नियंत्रण यान के लिये और ११ अरब डालर चन्द्रयान के लिये थे। सैटर्न १ब और सैटर्न ५ रॉकेट का निर्माण खर्च ४६ अरब डालर था। सभी खर्च २००६ की डालर कीमतों के अनुसार है।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; ApolloCost नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  2. "अपोलो मिशन से जुड़ी 10 ऐतिहासिक तस्वीरें". मूल से 20 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 दिसंबर 2017.
  3. "Apollo-11 took 4 days to reach Moon, Chandrayaan-2 taking 48 days. Explained". मूल से 9 अगस्त 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 अगस्त 2019.
  4. "अपोलो 11 मून मिशन : एक राजनीतिक मिशन जिसने अमेरिका को अंतरिक्ष विज्ञान का सिरमौर बना दिया". मूल से 11 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 जून 2018.

बाहरी कड़ियाँ