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अपपठन

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अपपठन या डिस्लेक्सिया (Dyslexia) एक अधिगम विकलांगता है जिसका प्रकटीकरण मुख्य रूप से वाणी या लिखित भाषा के दृश्य अंकन की कठिनाइयों के रूप में होता है। यह समस्या विशेष तौर पर मनुष्य-निर्मित लेखन प्रणालियों को पढ़ने में होती है। यह देखने या सुनने की गैर-नयूरोलोजिकल कमी, या बेकार अथवा अपर्याप्त पाठन निर्देशों जैसे अन्य कारकों से उत्पन्न पाठन कठिनाइयों से अलग है,[1] यह इस बात का सुझाव देता है कि बुद्धि द्वारा लिखित और भाषित भाषाओँ को संसाधित करने में अंतर के कारण डिस्लेक्सिया होती है।

अपपठन की परिभाषा

डिस्लेक्सिया की अनेकों परिभाषाएं हैं लेकिन कोई सहमति नहीं है। कुछ परिभाषाएँ विशुद्ध वर्णनात्मक हैं, जबकि अन्य कारक सिद्धांतों को संजोती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि डिस्लेक्सिया कोई एक चीज नहीं बल्कि अनेक है, क्योंकि यह कई कारणों से होने वाली कई पाठन कला की दिक्कतों और कमियों के संकल्पनात्मक समाशोधन-गृह की तरह काम करती है। [2]

वर्तमान में उपलब्ध अधिकांश डिस्लेक्सिया शोध वर्णमाला लेखन प्रणाली से सम्बन्ध हैं और खासकर यूरोपीय मूल की भाषाओं से, हालाँकि डिस्लेक्सिया और अन्य लेखन प्रणालियों से सम्बंधित तथा अधिक शोध धीरे धीरे सामने आ रहे हैं। यह डिस्लेक्सिया को एक और अधिक सार्वभौमिक व्यापक परिप्रेक्ष्य प्रदान करेगा।

कासल्स और कोल्टहार्ट, 1993, ने विकासात्मक डिस्लेक्सिया के ध्वनिकृत और सतही प्रकारों की उपमा अधिग्रहित डिस्लेक्सिया (एलेक्सिया) के उन शास्त्रीय उपप्रकारों से की है जिनका वर्गीकरण गैर-शब्दों को पढ़ने की त्रुटियों के दर के हिसाब से होता है[3]. हालाँकि सतही और ध्वनिकृत डिस्लेक्सिया के अंतर ने डिस्लेक्सिया के गैरध्वनिकृत बनाम डाईसीदितिक प्रकारों की पुरानी एम्पिरिकल शब्दावली की जगह नहीं ली है (बोडर 1973). सतही/ध्वनिकृत भेद केवल वर्णनात्मक है और अंतर्निहित मस्तिष्क तंत्र की एशिओलोजिकल धारणा से रहित है, जबकि गैरध्वनिकृत/डाईसीदितिक भेद दो भिन्न तंत्रों के विषय में है, जहाँ एक भाषण भेदभाव की कमी से सम्बंधित है और दूसरा विसुअल परसेप्शन इम्पेयरमेंट से. बोडर की दैसीदितिक प्रकार वाली डिस्लेक्सिया से ग्रस्त अधिकांश लोगों में ध्यान और स्थानिक कठिनाइयाँ होती हैं जो पाठन प्रक्रिया में दिक्कत पैदा करती हैं।[4]

हालांकि डिस्लेक्सिया एक स्नायविक अंतर का परिणाम माना जाता है, यह एक बौद्धिक विकलांगता नहीं है। डिस्लेक्सिया सभी स्तर की बुद्धिमत्ता वाले लोगों में पाई गयी है।[5]

इतिहास

1881 में ओसवाल्ड बरखान ने इसे पहचाना और रुडोल्फ बर्लिन (स्तुतगार्त, जर्मनी में अभ्यास करने वाले एक नेत्रविज्ञानी) ने 1887 में इसे 'डिस्लेक्सिया' नाम दिया[6][7][8]

1896 में, डब्ल्यू प्रिंगल मोर्गन ने ब्रिटिश मेडिकल जर्नल "कोंजेनिटल वर्ड ब्लाइंडनेस" में एक पाठन सम्बंधित सीखने के विकार का वर्णन किया।[9]

1890 और शुरुआती 1900 के दौरान, जेम्स हिन्शेल्वूद ने पैदाईशी शब्द अंधेपन के इसी तरह के मामलों का वर्णन करते हुए चिकित्सा पत्रिकाओं में लेखों की एक शृंखला प्रकाशित की। 1917 में अपनी किताब जन्मजात शब्द दृष्टिहीनता, में हिन्शेल्वूद ने इस बात पर जोर दिया कि प्राथमिक विकलांगता शब्दों और अक्षरों के लिए दृश्य स्मृति में है और उन्होंने इसमें अक्षर रिवर्सल, तथा वर्तनी और पाठन की दिक्कतों जैसे लक्षणों का भी वर्णन किया है। [10]

1925 शमूएल टी. और्टन के अनुसार मस्तिष्क की क्षति से असंबंधित एक सिंड्रोम है जो पाठन सीखने में दिक्कत पैदा करता है। और्टन के सिद्धांत स्ट्रेफोसिम्बोलिया के अनुसार डिस्लेक्सिया वाले लोगों को शब्दों के दृश्य रूपों को उनके भाष्य रूपों के साथ सम्बंध स्थापित करने में कठिनाई आती है। [11] और्टन ने पाया कि डिस्लेक्सिया में पाठन की कमियां केवल दृष्टि की कमियों की वजह से उत्पन्न नहीं हो रही थीं। [24] उनका विश्वास था कि मस्तिष्क में हेमीस्फेरिक प्रभुत्व की स्थापना में विफलता इसका कारण है। [12] और्टन ने बाद में मनोवैज्ञानिक और शिक्षक ऐना गिलिंघम के साथ एक शैक्षिक हस्तक्षेप का विकास किया जिसने साइमलटेनिअस मल्टी सेंसरी ईंसट्रकशन के प्रयोग की शुरुआत करी। [13]

इसके विपरीत, डियरबोर्न, बेनेट, तथा ब्लाऊ के अनुसार इसका कारण देखने की प्रणाली का एक दोष था। उन्होंने यह पता लगाने के कोशिश की कि आँखों की स्वतः होने वाली बांये से दांये की क्रिया उसके विपरीत दिशा की तरफ ध्यान केन्द्रित करने के लिए, डिस्लेक्सिया विकार में दिखने वाले तथ्यों को समझाने में सहायक होगा क्या, खासकर उल्टा पढ़ लेने की क्षमता का.

1949 (थीसिस जी. माहेक पेरिस 1951) के तहत की गयी शोध और आगे चली गयी। यह फिनोमिना स्पष्ट रूप से दृष्टि की गतिशीलता से जुड़ा हुआ है, जब अक्षरों के बीच की जगह बढाई जाती है तो यह गायब हो जाती है और पाठन को वर्तनी में बदल देती है। यही अनुभव आइने में पढ़ने की क्षमता पर भी प्रकाश डालता है।

1970 के दशक में, एक नई परिकल्पना उभर कर आयी जिसके अनुसार डिस्लेक्सिया फोनोलोजिकल प्रोसेसिंग की कमी या इस बात को समझने में कठिनाई कि शब्द असतत ध्वनियों से बनते हैं, के कारण उत्पन्न होती है। प्रभावित लोगों को इन ध्वनियों का उनके अक्षरों के साथ सम्बंध बिठाने में दिक्कत आती है। कई अध्ययनों ने ध्वनि जागरूकता के महत्त्व को समझा, [14]

1979 गलाबुर्दा और केम्पर[15] और गलाबुर्दा इत अल 1985[16], डिस्लेक्सिया ग्रस्त लोगों के मस्तिष्क के ऑटोप्सी पश्चात् परिक्षण द्वारा . एक डिस्लेक्सिक मस्तिष्क के भाषा केंद्र में देखे गए संरचनात्मक भेद, इन अध्ययनों और कोहेन (1989) इत अल[17], के अध्ययनों ने सुझाया कि डिस्लेक्सिया का कारण भ्रूण मस्तिष्क के विकास के छठे महीने के दौरान असामान्य कोर्टिकल विकास हो सकता है[4].

1993 कासल्स और कोल्टहार्ट ने विकास डिस्लेक्सिया को अलेक्सिया के उपप्रकारों का इस्तेमाल करते हुए दो प्रचलित और भिन्न किस्मों के रूप में वर्णित किया, सतही और ध्वनिकृत डिस्लेक्सिया.[3] मानिस इत अल 1996, इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि संभवतः डिस्लेक्सिया के दो से अधिक उपप्रकार हैं जो कई अन्तर्निहित कमियों से सम्बद्ध हैं[18].

1994 पोस्ट ऑटोप्सी स्पेसिमेन द्वारा गालाबुर्दा इत अल, ने यह रिपोर्ट किया: डिस्लेक्सिया ग्रस्त लोगों में असामान्य ऑडीटरी प्रेसेसिंग यह दर्शाता है कि ऑडीटरी सिस्टम में संरचनात्मक असामान्यताएं संभवतः मौजूद रही होंगी. डिस्लेक्सिया ग्रस्त लोगों के बांये हेमीस्फियर स्थित ध्वनी दोष के निष्कर्षों का समर्थन किया।[19]

1980 और 1990 के दशकों के दौरान नयूरोइमेजिंग तकनीकों के विकास ने डिस्लेक्सिया शोध में महत्वपूर्ण प्रगति को सम्भव बनाया। पोजीट्रान एमिशन टोमोग्राफी(PET) और फंक्शनल मग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग(FMRI) अध्ययनों ने वयस्क सामान्य अध्ययन के तंत्रिका हस्ताक्षर को उजागर कर दिया है (उदाहरण, फीज़ और पेटर्सन, 1998[20]; तुर्केल्तौब इत अल, 2002[21]) और ध्वनि प्रसंस्करण (जैसे, गेलफांद और बूखेइमेर, 2003[22] पोल्द्रैक आदि, 1999[23] विभिन्न प्रयोगात्मक दृष्टिकोण और मिसालों(जैसे, कविताओं से सम्बंधित फैसलों का पता लगाना, गैर-शब्दों का पाठन और अन्तर्निहित पाठन) का प्रयोग करते हुए, इन अध्ययनों ने डिस्लेक्सिया में डिसफंक्शनल ध्वनिकृत प्रोसेसिंग को बांये-हेमी स्फियर स्थित पेरिसिल्वियन क्षेत्र में लोकलाइज कर दिया है, खासकर अक्षरात्मक लेखन प्रणाली के लिए (पौलेसू आदि, 2001; रिव्यू के लिए[24], देखें एडेन और ज़फिरो, 1998[25]). हालाँकि यह दर्शाया जा चुका है कि गैर वर्णमाला लिपियों में, जहाँ पाठन ध्वनिकृत प्रोसेसिंग पर कम जोर डालता है और दृश्य-इमले जानकारी का एकीकरण अति महत्त्वपूर्ण है, डिस्लेक्सिया लेफ्ट मिडिल फ्रंटल गाइरस की कम गतिविधि से सम्बंधित है (सिओक इत अल, 2004)[26] .

1999 वाइदेल और बटरवर्थ ने एक अंग्रेजी-जापानी द्विभाषी व्यक्ति के एक मामले का वर्णन किया[27]. यह सुझाया कि कोई भाषा जिसमें ओर्थोग्राफी से फोनोलोजी का मानचित्रण पारदर्शी अथवा अपारदर्शी हो, या कोई भाषा जिसकी ध्वनी का प्रतिनिधित्व करने वाली ओर्थोग्राफिक इकाई अपरिष्कृत हो (पूर्ण अक्षर या शब्द के स्तर पर) उनमे डिस्लेक्सिया के ज्यादा मामले नहीं आने चाहिए और ओर्थोग्राफी डिस्लेक्सिया के लक्षणों को प्रभावित कर सकती है

2003 कोलिन्स और रूर्के के रिव्यू ने यह निष्कर्ष निकाला कि मस्तिष्क और डिस्लेक्सिया के संबंधों के वर्तमान मॉडल आमतौर पर मस्तिष्क विकास के किसी दोष पर ध्यान केन्द्रित करते हैं।[28]

2007 लितिनेन इत अल अनुसंधानकर्ता, स्नायविक और आनुवंशिक निष्कर्ष तथा पाठन विकारों के बीच एक कड़ी ढूंढने के कोशिश कर रहे हैं। [29]

2008 एस.हीम इत अल ने अपने लेख "कोगनिटिव सबटाइप्स ऑफ़ डिस्लेक्सिया" में वर्णन किया है कि कैसे उन्होंने डिस्लेक्सिया के विभिन्न उप-समूहों की तुलना एक नियंत्रित समूह से करी है। यह अपने प्रकार का पहला अध्ययन है जिसने न केवल डिस्लेक्सिक और गैर डिस्लेक्सिक समूहों की तुलना की है, बल्कि और आगे बढ़ते हुए इसने विभिन्न संज्ञानात्मक उप समूहों की तुलना गैर डिस्लेक्सिक नियंत्रण समूह से की है।[30]

वैज्ञानिक शोध

  • विकास डिस्लेक्सिया के सिद्धांत

निम्नलिखित सिद्धांतों को परस्पर विरोधियों के रूप में नहीं देखना चाहिए, बल्कि ऐसे सिद्धांतों के रूप में देखना चाहिए जो विविध अनुसंधान परिप्रेक्ष्य और पृष्ठभूमि वाले समान लक्षणों के समूहों के अंतर्निहित कारकों को समझाने की चेष्टा करते हों.

  • विकासवादी परिकल्पना

इस सिद्धांत के अनुसार पाठन एक अप्राकृतिक कृत्य है और हमारे विकासवादी इतिहास में मनुष्य द्वारा अत्यंत संक्षिप्त अवधि से ही किया जा रहा है (डेल्बी, 1986). पश्चिमी समाजों द्वारा आम जनता के बीच पाठन को बढ़ावा देने का चलन कोई बहुत पुराना नहीं है (सौ वर्षों से भी कम) इसलिए हमारे व्यवहार को आकार देने वाली ताकतें काफी कमजोर हैं। दुनिया के कई क्षेत्रों में आम जनता के बीच पाठन की पहुँच अभी भी नहीं है। अभी तक "पैथोलोजी" की डिस्लेक्सिया में अंतर्निहितता का कोई साक्ष्य नहीं मिला है जबकि मस्तिष्क की भिन्नताओं और अंतरों के काफी सबूत मौजूद हैं। इन्ही आवश्यक अंतरों पर पाठन जैसे कृत्रिम कार्य का बोझ होता है।[31]

  • ध्वनि आभाव सिद्धांत

ध्वनी आभाव सिद्धांत के अनुसार डिस्लेक्सिया ग्रस्त लोगों में भाषण ध्वनियों के प्रतिनिधित्व, भंडारण और/या पुनर्प्राप्ति में एक विशिष्ट विकार मौजूद होता है। यही विकार उन लोगों के पाठन की दिक्कतों को समझाता है, इस आधार पर कि एक अक्षरात्मक प्रणाली के पाठन को सीखने के लिए ग्राफीम/फोनेम(ध्वनिग्राम) के बीच सामंजस्य आवश्यक है। [32]

  • रैपिड श्रवण प्रसंस्करण सिद्धांत

रैपिड श्रवण प्रसंस्करण सिद्धांत ध्वनी आभाव सिद्धांत का एक वैकल्पिक सिद्धांत है, इसके अनुसार मुख्य आभाव लघु अवधि अथवा तेजी से बदलती ध्वनियों को समझने में होता है। इस सिद्धांत के लिए सहायक साक्ष्य इस बात से मिलता है कि डिस्लेक्सिया ग्रस्त लोग श्रवण कार्यों, जिनमे शामिल हैं आवृत्ति भेद तथा अस्थायी निर्देह निर्णय, में फिसड्डी साबित होते हैं। [32]

  • दृश्य सिद्धांत

दृश्य सिद्धांत डिस्लेक्सिया अध्ययन की एक पुरानी परंपरा का द्योतक है, जिसके अनुसार यह एक दृष्टि विकार है जो लिखित अक्षरों या शब्दों को समझने में कठिनाई पैदा करता है। यह अस्थिर द्विनेत्री फिक्सेशन, घटिया वरजेंस, और विजुअल क्राउडिंग वृद्धि, का रूप ले सकता है। दृश्य सिद्धांत एक ध्वनी आभाव से इंकार नहीं करता है।[32]

  • अनुमस्तिष्क सिद्धांत

एक अन्य परिदृश्य डिस्लेक्सिया के ऑटोमेटीसिटी/अनुमस्तिष्क सिद्धांत का प्रतिनिधित्व करता है। यहाँ जैविक दावा यह है कि डिस्लेक्सिया ग्रस्त लोगों का सेरीबलम पूर्ण रूप से काम नहीं करता है और संज्ञानात्मक कठिनाइयाँ पैदा होती हैं।[32]

  • मैग्नोसेल्युलर सिद्धांत

एक एकीकृत सिद्धांत उपर्युक्त सभी निष्कर्षों का एकीकरण करने का प्रयास करता है। दृश्य सिद्धांत का एक सामान्यीकरण, मैग्नोसेल्युलर सिद्धांत के अनुसार मैग्नोसेल्युलर अकर्मण्यता केवल दृष्टि तक सिमित नहीं है बल्कि सभी तंत्रों में मौजूद होती है (दृष्टि और श्रवानिक के साथ स्पर्श पर भी).[32]

  • अवधारणात्मक दृश्य-शोर अपवर्जन परिकल्पना

पेर्सेप्चुअल नोइज़ एक्सक्लूज़न(दृष्टि-शोर) आभाव का कांसेप्ट एक उभरती हुई परिकल्पना है, इसके समर्थन में एक शोध है जिसमें दिखाया गया है कि डिस्लेक्सिया ग्रस्त लोगों को ध्यान बंटाने वाली चीजों की उपस्थिति में गतिशील वस्तुओं की पहचान करने जैसे दृष्टि आधारित कार्यों को करने में दिक्कत आती है, लेकिन यह दिक्कत गायब हो जाती है जब प्रयोगशाला में उन ध्यान बंटाने वाली चीजों को हटा दिया जाता है।[33] शोधकर्ताओं ने दृष्टि भेद सम्बन्धी कार्यों के अपने इन निष्कर्षों की उपमा श्रवण भेद सम्बन्धी कार्यों के निष्कर्षों के साथ की है। वे जोर देकर कहते हैं कि ध्यानाकर्षण करने वाली चीजों (दृश्य और श्रावनिक दोनों) से अपने ध्यान को हटा पाने की क्षमता का आभाव तथा जरुरी जानकारी से गैर जरुरी जानकारी को पृथक करने की क्षमता का आभाव, ही डिस्लेक्सिया के लक्षणों की उत्पत्ति का कारण है।[34]

  • मस्तिष्क स्कैन तकनीकों का प्रयोग करने वाले शोध

फंक्शनल मेग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग(fMRI) और पोजीट्रान एमिशन टोमोग्राफी (PET) जैसी आधुनिक तकनीकों ने पाठन की कठिनाइयों से ग्रस्त बच्चों के मस्तिष्क के संरचनात्मक भेदों के स्पष्ट साक्ष्य प्रस्तुत किये हैं। ऐसा पाया गया है कि डिस्लेक्सिया ग्रस्त लोगों के मस्तिष्क के बांये हिस्सों (जो पाठन क्रिया में सहायक होता है) में विकार होता है, इन हिस्सों में शामिल हैं इन्फीरियर फ्रंटल गाइरस, इन्फीरियर पेरिटल लोब्युला और मिडल तथा वेंट्रल टेम्पोरल कोर्टेक्स.[35]

भाषा अध्ययन हेतु PET का प्रयोग करती हुई मस्तिष्क सक्रियण अध्ययनों ने भाषा के तंत्रिका आधार की हमारी समझ में पिछले दशक के मुकाबले भारी बढ़ोत्तरी की है। दृश्य कोश और श्रवण मौखिक लघु अवधि स्मृति घटकों के लिए एक तंत्रिका आधार प्रस्तावित किया गया है।[36] तात्पर्य यह है कि विकासात्मक डिस्लेक्सिया में देखि गयी तंत्रिका अभिव्यक्ति कार्य-विशेष के साथ सम्बंधित है (अर्थात संरचनात्मक की बजाय कार्यात्मक)[37]

हांगकांग विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के अनुसार डिस्लेक्सिया बच्चों के मस्तिष्क के विभिन्न संरचनात्मक हिस्सों पर उनके द्वारा पढ़ी जाने वाली भाषा के आधार पर प्रभाव डालता है।[38]] अध्ययन ने अंग्रेजी और चीनी भाषाओँ के पाठन के साथ बढ़े हुए बच्चों की तुलना की है।

मास्त्रिक विश्वविद्यालय (नीदरलैंड्स) के एक अध्ययन से पता चला कि वयस्क डिस्लेक्सिक लोगों का कम क्रियाशील सुपीरियर टेम्पोरल कोर्टेक्स अक्षरों और भाषण ध्वनियों के एकीकरण के लिए जिम्मेदार है।[39]

  • जेनेटिक शोध

आण्विक अध्ययनों ने डिस्लेक्सिया के कई रूपों को आनुवंशिक मार्करों से लिंक किया है। [40] कई उम्मीदवार जीनों की पहचान की गई है, डिस्लेक्सिया से सम्बन्धित दो क्षेत्र भी इसमें शामिल हैं: DCDC2[41] और KIAA0319[42]क्रोमोसाम 6 पर[43] और DYX1C1 क्रोमोसाम 15 पर

एक 2007 की समीक्षा के अनुसार किन्ही भी विशिष्ट संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं का प्रस्तावित संवेदनशीलता जीनों से प्रभावित होने के विषय में पता नहीं चला है।[44]

तीन क्रियाशील स्मृति घटकों का एक एकीकृत सैद्धांतिक ढांचा जो एक 12 वर्षीय शोध कार्यक्रम में अतीत और नवीन निष्कर्षों पर चर्चा करने हेतु एक प्रणालीगत परिप्रेक्ष्य प्रदान करता है जो कि डिस्लेक्सिया के आनुवांशिक और मस्तिष्क आधारित तथा व्यावहारिक अभिव्यक्ति में विविधता की ओर इशारा करता है।[45]

  • भाषा इमला का प्रभाव

PET और fMRI दोनों का उपयोग करते हुए, पौलेस्कु आदि 2001, दर्शाया कि वर्णमाला लेखन प्रणालियों में डिस्लेक्सिया का मस्तिष्क में सार्वभौमिक आधार है और समान न्यूरोकोग्निटिव आभाव द्वारा वर्णित किया जा सकता है। जाहिर है, एक उथली ओर्थोग्राफी में पाठन व्यवहार में इसकी अभिव्यक्ति कम गंभीर होगी। [24]

  • विवाद

इस बात पर कुछ असहमति अवश्य है कि क्या डिस्लेक्सिया वास्तव में एक रोग है या यह अलग पाठकों के दरम्यान व्यक्तिगत अंतर मात्र है को दर्शाता है।

डिस्लेक्सिया के निदान

डिस्लेक्सिया की जल्द पहचान. लेपानेन पीएच इत अल, इस विषय पर जाँच की कि क्या विकास डिस्लेक्सिया के इतिहास वाले परिवारों में जन्म लेने वाले शिशुओं में भी इस विकार के पैदा होने की उच्च संभावना है। उन्होनें पारिवारिक डिस्लेक्सिया की उच्च संभावना वाले और बिना उच्च संभावना वाले 6 महीने के शिशुओं में मस्तिष्क विद्युत सक्रियण की जाँच की जिसकी उत्पत्ति भाषण ध्वनियों की अस्थायी संरचना में परिवर्तन द्वारा होती है और यह भाषण का एक प्रमुख सांकेतिक लक्षण होता है। उच्च संभावन वाले शिशु नियंत्रित शिशुओं के समूह से इन दोनों चीजों में भिन्न थे- ध्वनी के प्रति उनकी आरंभिक प्रतिक्रिया और स्टीमुलस संदर्भ पर निर्भर परिवर्तन का पता लगा पाने की उनकी प्रतिक्रिया. इसका मतलब यह है कि पाठन दिक्कतों वाले पारिवारिक पृष्ठभूमि के शिशु बोलना सीखने से पहले से ही भाषण ध्वनियों के श्रवण टेम्पोरल संकेतों को अन्य शिशुओं की तुलना में भिन्न तरीके से प्रक्रम करते हैं।[46][47]

डिस्लेक्सिया का औपचारिक निदान तंत्रिका विज्ञानी या एक शैक्षिक मनोवैज्ञानिक जैसे योग्य पेशेवर द्वारा किया जाता है। आमतौर पर इसके मूल्यांकन में पाठन क्षमता के साथ अन्य कुशलताओं, जैसे की लघु अवधि स्मृति और अनुक्रमण कौशल का मूल्यांकन करने हेतु जल्दी जल्दी नाम लेने का टेस्ट तथा ध्वनी कोडन कौशल के मूल्यांकन हेतु गैर शब्दों का पाठन, की टेस्टिंग शामिल होती है। मूल्यांकन में आमतौर पर एक आइक्यू टेस्ट भी शामिल होता है, सीखने की शक्तियों और कमजोरियों के एक प्रोफाइल को स्थापित करने के लिये। हालाँकि, पूरे पैमाने पर आइक्यू तथा पाठन स्तर के बीच की एक विसंगति" को, जिसका इस्तेमाल रोग की पहचान के एक घटक के रूप में होता है, हाल के शोध ने नकार दिया है।[48] इसमें अक्सर कई अन्य परिक्षण भी शामिल होते हैं पाठन कठिनाइयों के अन्य संभव कारकों को बाहर करने के लिये, जैसे एक अधिक सामान्यकृत संज्ञानात्मक विकार या शारीरिक करक जैसे दिखाई या सुनाई पड़ने की दिक्कत.

न्यूरोइमेजिंग और आनुवांशिकी में हाल के विकासों ने साक्ष्य प्रस्तुत किये हैं जो संभवतः बच्चों में डिस्लेक्सिया का पता उनके द्वारा पढ़ना सीखने से भी पहले लगा सकते हैं।

विविधताएं और संबंधित स्थितियां

डिस्लेक्सिया के कई अंतर्निहित कारक हैं जिनके बारे में ऐसा माना जाता है कि वे तंत्रिका विज्ञान की वह स्थितियां हैं जो लिखित भाषा को पढ़ने की क्षमता को प्रभावित करती हैं।[4]

निम्नलिखित परिस्थितियां अंशदायी अथवा अतिव्यापी कारक हो सकती हैं, या डिस्लेक्सिया के लक्षणों की अंतर्निहित कारक क्योंकि वे पाठन में कठिनाइयाँ पैदा कर सकती हैं:

  • श्रवण प्रसंस्करण विकार, श्रवण जानकारी प्रक्रिया को प्रभावित करने वाली एक स्थिति है। श्रवण प्रसंस्करण विकार, यह एक सुनने की विकलांगता है।[49] यह श्रवण स्मृति और श्रवण अनुक्रमण की समस्याओं को जन्म दे सकती है। डिस्लेक्सिया ग्रस्त कई लोगों में श्रवण प्रक्रमण समस्या होती है जिसमें शामिल है श्रवण पलटाव, और इस आभाव की पूर्ति के लिए वे स्वयं के लोगोग्रफिक संकेतों का विकास कर सकते हैं। श्रवण प्रसंस्करण विकार को डिस्लेक्सिया के प्रमुख कारणों में से एक के रूप में मान्यता प्राप्त है।[49][50][51][52] कुछ बच्चों में श्रवण प्रसंस्करण विकार एफ्यूज़न के साथ ओटिटिस मीडिया(सरेस कान, चिपचिपा कान और ग्रोमिट्स) और कान की अन्य गंभीर स्थितियों के परिणामस्वरूप उत्पन्न हो सकता है।

यह भी देखें

निम्नलिखित सम्बंधित विविधताएँ हैं, संभव साझा अंतर्निहित स्नायविक कारणों के साथ

  • डिसग्राफिया एक विकार जो मुख्यतः लेखन या टाइपिंग के दौरान ही व्यक्त होता है, हालाँकि कुछ मामलों में यह आँखों और हाथों के समन्वय को भी प्रभावित कर सकता है, गांठ बांधने या दोहरावदार जैसे दिशापरक या अनुक्रम सम्बंधित कार्यों को करने में. डिसग्राफिया डिसप्राक्सिया से भिन्न है, इसमें ऐसा संभव है कि ग्रस्त व्यक्ति अपने दिमाग में तो लिखने वाले शब्दों या कदमों के उचित क्रम के बारे में स्पष्ट हो, किन्तु उन्हें करते वक्त गलती कर देता हो।
  • डिसकैल्क्यूलिया एक स्नायविक स्थिति है जिसमें आदमी को कुछ सीखने में या संख्याओं के साथ कठिनाई होती है। अक्सर इससे ग्रस्त लोग गणित की जटिल अवधारणाओं और सिद्धांतों को तो समझ लेते हैं किन्तु फार्मूला समझने या साधारण गुणाभाग करने में उनको दिक्कत आती है।
  • विशिष्ट भाषा विकार, एक भाषा सम्बंधित विकार है जो भाषा को प्रकट करने और समझने, दोनों को प्रभावित करता है। एसएलआइ को एक "विशुद्ध" भाषा विकार के रूप में परिभाषित किया जाता है, अर्थात् यह अन्य किसी विकासात्मक विकार जैसे श्रवण शक्ति का ख़तम होना या मस्तिष्क की चोट, से सम्बंधित या उनके कारण नहीं होता है। मास्त्रिक और उत्रेक विश्वविद्यालयों के एक अध्ययन ने विकास डिस्लेक्सिया के उच्च पारिवारिक जोखिम वाले 3 वर्षीय डच बच्चों में भाषण धारणा और भाषण उत्पादन की जांच की। ध्वनी वर्गीकरण और शब्दों के उत्पादन में उनके प्रदर्शन की तुलना समान आयु-वर्ग के उन बच्चों के साथ की गयी जिनमे विशिष्ट भाषा विकार(एसएलआइ) और टीपीकलि डेवेलपिंग कंट्रोल मौजूद था। जोखिम-वाले और एसएलआइ-समूह के परिणामों में काफी समानता थी। व्यक्तिगत डाटा के विश्लेषण से यह पता चला कि दोनों समूहों में अच्छा और ख़राब प्रदर्शन करने वाले बच्चों के उपसमूह मौजूद थे। ऐसा लगा कि उनकी विकारग्रस्त भववाहक ध्वनि का संबंध उनके भाषण में एक आभाव के कारण था। उनके निष्कर्षों से ऐसा लगता है डिस्लेक्सिया और एसएलआइ, दोनों को एक मल्टी-रिस्क मॉडल द्वारा समझाया जा सकता है, जिसमें संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं के साथ आनुवंशिक कारक भी शामिल हैं।[57]
  • क्लटरिंग भाषण के प्रवाह का एक विकार है जिसमें दर और लय दोनों शामिल है, इसके परिणाम स्वरूप उनके भाषण को समझना मुश्किल होता है। भाषण बेतरतीब और बिना लय के होता है, जिसमें शब्दों को जल्दी जल्दी और झटकेदार तरीके से बोला जाता है और वाक्य दोषपूर्ण होते हैं। क्लटर करने वाले के व्यक्तित्व में अधिगम विकलांगता वाले व्यक्तियों के व्यक्तित्व से काफी समानता होती है।[58]

डिस्लेक्सिया के अभिलक्षण

बोलने/सुनने के अभावों तथा डिस्लेक्सिया के कुछ साझा लक्षण:

  1. पहले/बाद में, बांये/ दांये, आदि के भेद को समझने में दिक्कत
  2. वर्णमाला सीखने में कठिनाई
  3. शब्दों या नामों को याद रखने में कठिनाई
  4. तुकबंदी वाले शब्दों को पहचानने या बनाने, तथा शब्दों के सिलेबल्स (शब्दांश) की गिनती में दिक्कत (ध्वनि जागरूकता)
  5. शब्दों की ध्वनियों को सुनने या जोड़-तोड़ करने में कठिनाई (फोनेमिक जागरूकता)
  6. शब्द की विभिन्न ध्वनियों में अंतर करने में कठिनाई (श्रवण भेदभाव)
  7. अक्षरों के ध्वनियों को सीखने में दिक्कत
  8. शब्दों का उनके सही अर्थ के साथ संबंध बिठाने में कठिनाई
  9. समय बोध और समय के कांसेप्ट को समझने में कठिनाई
  10. शब्दों के संयोजन को समझने में दिक्कत
  11. गलत बोलने के डर से, कुछ बच्चे अंतर्मुखी और शर्मीले बन जाते हैं और कुछ बच्चे अपने सामाजिक परिपेक्ष्य तथा वातावरण को ठीक से न समझ पाने के कारण दबंग (धौंस दिखने वाला) बन जाते हैं
  12. संगठन कौशल में कठिनाई

कई प्रयोगों में शोध के दौरान डिस्लेक्सिक बच्चों के पैटर्न के अध्ययन के परिणामस्वरूप ये कारक सामने आये हैं। ब्रिटेन में, थॉमस रिचर्ड मिल्स ने इस विषय में महत्त्वपूर्ण काम किया था और अपने कार्य के निष्कर्षों के आधार पर उन्होंने डिस्लेक्सिया का पता लगाने के लिए बांगोर टेस्ट का विकास किया।[59]

डिस्लेक्सिया भाषण के दृश्य अंकन से सम्बंधित एक समस्या है, जो कि यूरोपीय मूल की उन अधिकांश भाषाओँ की समस्या है जिनमे वर्णमाला लेखन प्रणालियों में ध्वन्यात्मक निर्माण है। भाषण अधिग्रहण में देरी तथा भाषण और भाषा की दिक्कतें, श्रवण इनपुट को, अपनी वाणी में प्रकट करने से पहले, ठीक से न समझ पाने के कारणवश हो सकती हैं, परिणामस्वरूप व्यक्ति में हकलाने, क्लटर करने और भाषण में संकोच जैसी दिक्कतें दिखाई दे सकती हैं। [60][61]

ये समस्याएं डिस्लेक्सिया ग्रस्त लोगों के वर्तनी और लेखन की कठिनाइयों की साझा घटक हो सकती हैं

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डिस्लेक्सिया का प्रबंधन

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डिस्लेक्सिया का कोई इलाज नहीं है लेकिन उचित शैक्षिक सहायता के साथ डिस्लेक्सिक व्यक्ति लिखना पढना सीख सकते हैं।

वर्णमाला लेखन प्रणाली के लिए, मूलभूत उद्देश्य बच्चे में ग्राफीम और फोनीम के आपसी संबंधों के प्रति जागरूकता पैदा करना है ताकि इनकी सहायता से वह लिखने-पढने में निपुण बन सके। ऐसा पाया गया है कि दृश्य भाषा और इमलों पर केन्द्रित प्रशिक्षण लम्बी अवधि में मात्र मौखिक ध्वनि प्रशिक्षण के अपेक्षा अधिक लाभप्रद होता है।[29]

सर्वोत्तम तरीके का निर्धारण डिस्लेक्सिया लक्षणों के अन्तर्निहित न्यूरोलोजिकल कारकों द्वारा होता है।

कानूनी और शैक्षिक सहयोग

कई राष्ट्रीय कानून और विशेष शैक्षणिक समर्थन के ढांचे मौजूद है। जो डिस्लेक्सिया प्रबंधन में सहायक होते हैं।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

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बाहरी कड़ियाँ

शोध पत्र, लेख और मीडिया