अपना हाथ जगन्नाथ
अपना हाथ जगन्नाथ | |
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अपना हाथ जगन्नाथ का पोस्टर | |
निर्देशक | मोहन सहगल |
पटकथा | जी.डी. मडगुळकर |
कहानी | जी.डी. मडगुळकर |
निर्माता | मोहन सहगल |
अभिनेता | किशोर कुमार, सईदा ख़ान, नज़ीर हुसैन, लीला चिटनिस |
संपादक | प्रताप दवे |
संगीतकार | गीतकार कैफ़ी आज़मी, संगीतकार सचिन देव बर्मन |
निर्माण कंपनी | मोहन स्टूडियोज़ |
प्रदर्शन तिथि | 1960 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
अपना हाथ जगन्नाथ १९६० में बनी एक हिन्दी फ़िल्म है जिसमें मुख्य भूमिका किशोर कुमार ने निभाई है।
संक्षेप
यह कहानी एक ऐसे व्यक्ति, धनी राम (नज़ीर हुसैन), के बारे में है जो कि एक कुलीन ख़ानदान का है पर पैसे का मारा है और जिसने अपने बेटे मदन (किशोर कुमार) को अच्छी तालीम दिलवाने के लिए अपना घर, बीवी के ज़ेवरात, अपनी इंश्योरेंस पॉलिसी इत्यादि सब गिरवी रखवा दिया है लेकिन वह अपने बेटे को किसी सरकारी नौकरी में देखना चाहता है। मदन को बी. ए. के इम्तिहान के लिए २०० रु चाहिए होते हैं जो कि उसके पिता के पास नहीं हैं। मदन चुपचाप अपनी माँ (लीला चिटनिस) की चांदी की जगन्नाथ की मूर्ती को गिरवी रखवा आता है। मदन बी. ए. पास हो जाता है लेकिन पढ़ाई के चलते-चलते उसको अपनी सहपाठी इंदु (सईदा ख़ान) से प्यार भी हो जाता है।
नौकरी की तलाश में मदन मारा-मारा फिरता है पर उसको कहीं भी नौकरी नहीं मिलती है। थक हार के वो अपने धोबी के समझाए हुए रास्ते पर, कि हाथ की मेहनत कुर्सी की मेहनत से कहीं बड़ी सिद्ध होती है, अपने ही धोबी के साथ काम करने लगता है। इधर मदन अपनी प्रेमिका के घर जाता है और उसे पता चलता है कि पिछले दिन धोबी घाट में जिस कुलीन व्यक्ति से उसकी झड़प हुई थी वो इंदु के पिता दीवान कुल्वन्त राय हैं तो वो इन दोनों का रिश्ता नामंज़ूर कर देते हैं। जब उसके पिता को इस बात का पता चलता है कि वो धोबीगिरी कर रहा है तो वो भी मदन को घर से निकाल देते हैं। मदन उनसे यह जिरह करता है कि उसने कोई चोरी-चकारी नहीं की है और ना ही कहीं भीख मांगी है लेकिन इस बात का उसके पिता पर कोई असर नहीं पड़ता है और मदन शहर छोड़ने पर मजबूर हो जाता है लेकिन इंदु कहती है कि वो भी उसके साथ चलेगी। तय शुदा वक़्त पर जब इंदु नहीं आती है, क्योंकि उसके पिता ने उसे घर से भागते हुए पकड़ लिया था, तो बेचारा मदन अकेले ही अपनी राह निकल पड़ता है।
मुंबई पहुँच कर मदन कपड़ों में प्रिंटिंग का कारोबार शुरु करता है और देखते ही देखते उसका कारोबार चल पड़ता है। उधर मदन की बहन की शादी का वक़्त आ जाता है पर धनी राम के पास इसके लिए पैसे नहीं होते हैं। वह अपने कारोबारी दोस्त के पास जाता है जो उससे कहता है कि उसके पास इस समय तो पैसे नहीं हैं इसलिए धनी राम कहीं और से पैसों का बन्दोबस्त कर ले और कुछ दिनों बाद वो ये पैसे धनी राम को दे देगा। धनी राम पैसों के लिए मारा-मारा फिरता है लेकिन कहीं से भी उसे पैसे नहीं मिलते हैं। अन्त में अपने दोस्त के भरोसे पर धनी राम, जो कि एक सरकारी महक़मे में ख़ज़ान्ची है, अपने ख़ज़ाने में से ५००० रुपये निकाल लेता है लेकिन उस दोस्त का कारोबार चौपट हो जाता है और वो धनी राम को एक भी पैसा देने में असमर्थ हो जाता है। धनी राम के पास कोई भी विकल्प नहीं बचता है सिवाय इसके कि वो ख़ुदक़शी कर ले। और वो दरया में अपनी जान देने के लिए कूद जाता है। उसके घर की नीलामी हो जाती है और उनका धोबी मदन की माँ और उसकी छोटी बहन को पनाह देता है।
जब चंद पैसे कमाकर मदन घर आता है तो पाता है कि उसका घर बिखरा पड़ा है। वो जगन्नाथ की मूर्ती को अपनी माँ के लिए गिरवी से छुड़ा कर लाता है। वो अपनी बहन के ससुराल भाई दूज के दिन जाता है तो उसकी बहन की सास उसे घर से निकाल देती है। वहाँ से लौटते वक़्त वो देखता है कि उसकी प्रेमिका का विवाह हो रहा है। लेकिन उसको यह नहीं मालूम कि उसकी प्रेमिका को इस बात का इल्म हो गया है कि वो इस शहर में है और उसकी प्रेमिका अपनी कार में उसकी बस का पीछा करती है और दुर्घटनाग्रस्त होकर उसकी टांगे जवाब दे देती हैं। इंदु का मंगेतर उसकी हर संभव सहायता करने के लिए तैयार हो जाता है। उधर मदन अपनी माँ, छोटी बहन और धोबी, जिसको वो अपना गुरु मानने लगा है, को लेकर शहर चला जाता है। वहाँ उसका कारोबार दिन दूनी रात चौगुनी तरक़्क़ी कर रहा है।
मदन के पिता किसी तरह डूबने से बच निकलते हैं और विडंबना यह होती है कि वो मदन की ही फ़ॅक्टरी में मशक्कत वाले काम की तलाश में नौकरी पा लेते हैं। अंत में मदन को इंदु और धनी राम मिल जाते हैं और मदन की बहन की सास भी उसे अपना लेती है क्योंकि उसके पास अब धन दौलत ऐश-ओ-आराम सब कुछ है।
मुख्य कलाकार
- किशोर कुमार – मदन
- सईदा ख़ान – इंदु
- नज़ीर हुसैन – धनी राम
- लीला चिटनिस – मदन की माँ