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अनुनाद

झूले पर झूलते व्यक्ति को धक्का देने की आवृत्ति का अनुनाद से सीधा सम्बन्ध है। झूले पर झूलता व्यक्ति एक लोलक की तरह है, जिसके झूलने की एक प्राकृतिक आवृत्ति होती है। यही आवृत्ति उस झूले की अनुनाद की आवृत्ति भी है। यदि इस झूले को इस अवृत्ति से कम या अधिक आवृत्ति पर धक्का दिया जायेगा तो झूले का आयाम नहीं बढ़ेगा। किन्तु यदि झूले को उसकी अनुनाद आवृत्ति के बराबर आवृत्ति से धक्का दिया जाय तो उसका आयाम बढ़ता जायेगा।
किसी दोलनकारी तंत्र का आयाम उस पर लगाये गये चालक-बल की आवृत्ति पर तो निर्भर करता ही है, उस तन्त्र में उपस्थित मन्दन (damping) पर भी निर्भर करता है।झूले के मामले में वायु के कणों द्वारा मन्दन होता है। R-L-C श्रेणीक्रम परिपथ में प्रतिरोध (R) मन्दन का कार्य करता है। जब R होता है तो मन्दन कम होता है और आयाम अधिक होता है।

भौतिकी में बहुत से तंत्रों (सिस्टम्स्) की ऐसी प्रवृत्ति होती है कि वे कुछ आवृत्तियों पर बहुत अधिक आयाम के साथ दोलन करते हैं। इस स्थिति को अनुनाद (रिजोनेन्स) कहते हैं। जिस आवृत्ति पर सबसे अधिक आयाम वाले दोलन की प्रवृत्ति पायी जाती है, उस आवृत्ति को अनुनाद आवृत्ति (रेसोनेन्स फ्रिक्वेन्सी) कहते हैं।

सभी प्रकार के कम्पनों या तरंगों के साथ अनुनाद की घटना जुड़ी हुई है। अर्थात् यांत्रिक, ध्वनि, विद्युतचुम्बकीय अथवा क्वांटम तरंग फलनों के साथ अनुनाद हो सकती है। कोई छोटे आयाम का भी आवर्ती बल, जो अनुनाद आवृत्ति वाला या उसके लगभग बराबर आवृत्ति वाला हो, उस तंत्र में बहुत अधिक आयाम के दोलन पैदा कर सकता है।

अनुनादी तंत्रों के बहुत से उपयोग हैं। इनका उपयोग किसी वांछित आवृत्ति पर कम्पन (दोलन) पैदा करने के लिया किया जा सकता है; अथवा किसी जटिल कम्पन (जिसमें बहुत सी आवृत्तियों का मिश्रण हो; जैसे रेडियो या टीवी सिगनल) में से किसी चुनी हुई आवृत्ति को छाटने (फिल्टर करने) के लिये किया जा सकता है।

अनुनाद होने के लिये तीन चींजें जरूरी हैं-

१) एक वस्तु या तन्त्र - जिसकी कोई प्राकृतिक आवृत्ति हो;
२) वाहक या कारक बल (ड्राइविंग फोर्स) - जिसकी आवृत्ति, तन्त्र की प्राकृतिक आवृत्ति के समान हो;
३) इस तंत्र में उर्जा नष्ट करने वाला अवयव कम से कम हो (कम डैम्पिंग हो)।
(घर्षण, प्रतिरोध (रेजिस्टैन्स), श्यानता (विस्कासिटी) आदि किसी तन्त्र में उर्जा ह्रास के लिये जिम्मेदार होते हैं।)

अनुनाद के निहितार्थ (Some implications of resonance)

चित्र:Resonating air column.gif
कांच की नली से घिरे वायु-स्तम्भ का कम्पन एवं अनुनाद

ध्वनि से सम्बन्धित अनुप्रयोगों में, किसी वस्तु की अनुनाद आवृत्ति उस वस्तु की प्राकृतिक आवृति (natural frequency) के बराबर होती है। यह महत्त्वपूर्ण है कि किसी वस्तु की प्राकृतिक आवृत्ति उस वस्तु के भौतिक अवयवों (physical parameters) के मान से निर्धारित होती है। भौतिक अवयवों से प्राकृतिक आवृत्ति के निर्धारण का यह तथ्य भौतिकी के सभी क्षेत्रों (यांत्रिकी, विद्युत एवं चुम्बकत्व, आधुनिक भौतिकी आदि) में लागू होता है।

अनुनादी आवृत्ति के कुछ निहितार्थ इस प्रकार है:

१) किसी वस्तु को उसके प्राकृतिक आवृत्ति पर कम्पित कराना आसान है; दूसरी आवृत्तियों पर कम्पित कराना बहुत कठिन है। (कभी किसी झूले को उसकी प्राकृतिक आवृत्ति से अलग आवृत्ति पर झुलाने की कोशिश कीजिये; क्या यह सम्भव है?)

२) कोई कम्पन करती हुई वस्तु, उसको कम्पित कराने के लिये लगाये गये समिश्र बल (complex excitation) में से केवल उस आवृत्ति को चुन लेती है जो उसकी प्राकृतिक आवृत्ति के बराबर होती है और उसी आवृत्ति पर कम्पित होती है। दूसरी अवृतियों को लगभग नकार देती है। इस प्रकार यह एक फिल्टर का कार्य करती है।

३) कम्पन करने वाली अधिकांश वस्तुओं के एक से अधिक (multiple) अनुनाद आवृतियाँ होती हैं।

अनुनाद के उदाहरण

झूला:यदि झूले को धक्का देते समय इस बात का ध्यान रखें कि धक्का उसी अन्तराल पर दें जो झूले का प्राकृतिक आवर्तकाल है, तो उस झूले का आयाम बढतअ ही चला जाता है। अर्थात् हर बार झूला अपनी मध्यमान स्थिति से अधिकाधिक कोण बनाता चला जाता है। इसके विपरीत यदि उपर्युक्त बात का ध्यान न रखते हुए किसी अन्य आवृत्ति पर धक्का दिया जाय तो उसका असर बहुत कम, शून्य या नकारात्मक हो सकता है।

रेडियो एवं दूरदर्शन:रेडियो और टीवी के अन्दर एक ट्यून्ड परिपथ (tuned circuit) होता है जिसकी सहायता से किसी एक स्टेशन या चैनेल को चुनकर उसे सुना या देखा है। जब हम रेडियो का 'नाब' घुमाते हैं तो वस्तुतः इस ट्यून्ड परिपथ की अनुनाद आवृत्ति को ही बदल रहे होते हैं। किसी समय इस परिपथ की अनुनाद आवृत्ति जिस किसी स्टेशन या चैनेल की आवृत्ति से मेल खाती है (matches), वह चैनेल हमे प्राप्त होता है।

लेजर:लेजर एक विद्युतचुम्बकीय तरंग है। किन्तु इसकी विशेष बात यह है कि यह अत्यनत समवर्णी होता है। अर्थात् इसके सभी फोटानों की आवृत्ति किसी एक आवृत्ति के बराबर या बहुत पास होती है। इसके साथ ही सभी कम्पनों की कलायें (फेज) भी समान होते हैं। लेजर भी किसी प्रकाशीय कैविटी में प्रकाशीय अनुनाद का उपयोग करके उत्पन्न किया जाता है।


कुछ अन्य उदाहरण हैं:

  • संगीत यन्त्रों में ध्वनि अनुनाद के लिये विशेष व्यवस्था रहती है।
  • यांत्रिक घड़ियों में संतुलन चक्र (बैलेंस व्हील) का कम्पन
  • क्रिस्टलीय कांच का गिलास जब किसी सम्यक आवृत्ति (गिलास की प्राकृतिक आवृति) के संगीत के सम्पर्क में आता है तो चूर-चूर हो जाता है।
  • किसी प्रत्यावर्ती विभव से यदि श्रेणी-क्रम में जुड़ा L-C-R जोड़ा जाता है (जिसमें प्रतिरोध R का मान (L/C) के वर्गमूल से से बहुत कम हो) और स्रोत विभव का आयाम नियत रखते हुए उसकी आवृत्ति बदली जाय तो इस परिपथ में उस स्थिति में सर्वाधिक धारा बहती है जब स्रोत की आवृत्ति, 1/(2*Pi*L*C) के वर्गमूल के बराबर हो। इस स्थिति को श्रेणी अनुनाद (series resonance) कहते हैं।

सिद्धान्त

यदि किसी रेखीय दोलित्र (linear oscillator) की अनुनाद आवृत्ति Ω हो और यह किसी ω आवृत्ति वाले स्रोत से चलाया जा रहा है तो दोलनों की तीव्रता I निम्नलिखित समीकरण से प्रकट होती है:

इसमें Γ उस तंत्र के डैम्पिंग (damping) की स्थिति को व्यक्त करता है। इसे लाइनविथ (linewidth) कहते हैं। कोई तंत्र जितना ही डैम्प्ड होता है, उसकी लाइनविथ उतनी ही अधिक होती है। तीव्रता, आयाम के वर्ग के अनुपाती होती है।

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