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अनीश्वरवादी और इहलौकिकवादी

अनीश्वरवादी का मतलब सीधे शब्दों में बोलें कि ईश्वर को ना मानने वाला। अनीश्वरवादी विचार धारा ईश्वर के अस्तिव् का खंडन करती है । भौतिक वादी या लौकिक सत्ता पर विशेष बल देता है । ये स्वीकार करता है कि जगत नैतिक नियम से संचालित होती है, ईश्वर से नहीं । ईश्वरवादी का स्वरूप , ईश्वर का निषेधात्मक रूप है। ईश्वर में विश्वास का विरोध अनीश्वरवादी विचार धारा का जन्म देती है । इहलौकिकवादी मनुष्य को आप यथार्थवादी मतलब इसी जगत में वर्तमान में जीने वाला व्यक्ति चार्वाक के दर्शन को मानने वाला व्यक्ति अर्थात् ईश्वर है या नहीं है इसका चिंतन भी न करने वाला व्यक्ति।

होलियॉक ने सदैव सैक्यूलेरिज्म अर्थात् इहलौकिकवाद को सदैव अनीश्वरवाद से भिन्न माना। उनके अनुसार अनीश्वरवादी व्यक्ति न तो ईश्वरवादी होता है और न ही अनीश्वरवादी, वह तो स्वयं को इस दोनों से तदरथ रह कर इस लोक के ज्ञान-कर्म पर केन्द्रित रहता है।

१- अपनी नैतिकता और विचारों को पंथ और ईश्वर से अलग रखना २- तार्किक नियमों की स्वीकृति और सुतजन्य ज्ञान की अवहेलना ३- दुनिया को सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए निरंतर प्रयास।

होलियॉक ने इहलौकिकवाद के पांच लक्ष्य निर्धारित किये-

१- अपने आचारों-विचारों को पंथ एवं ईश्वर से पृथक रखना २- तर्कसंगत नियमों की स्वीकृति ३- आस्था एवं श्रुतिजन्य ज्ञान की उपेक्षा ४- विचार स्वातन्त्र्य ५- विश्व को श्रेष्ठ बनाने में सतत् प्रयास

इस विचारधारा का व्यक्ति जनकल्याण तथा मानवता पर प्रबल बल देता है या तो मानवता तथा जन कल्याण पर बल ना देकर स्वत:(खुद)कल्याण पर बल देता है।

चार्वाको के दर्शन में आपको ये विचार धारा मिलेगी । चार्वाक के दार्शनिक मानते थे की इस जन्म में इस पृथ्वी लोक में जो प्रत्यक्ष है वही प्रमाण है । इस लोक से बाहर ईश्वर और स्वर्ग की विचार धारा को नहीं मानते थे । अत: चार्वाक के दर्शन में अनीश्वरवादी और इहलौकिक वादी दोनों विचार धारा का प्रमाण मिलता है ।