अनिश्चितता सिद्धान्त
अनिश्चितता सिद्धान्त (Uncertainty principle) की व्युत्पत्ति हाइजनबर्ग ने क्वाण्टम यान्त्रिकी के व्यापक नियमों से सन् १९२७ ई. में दी थी। इस सिद्धान्त के अनुसार किसी गतिमान कण की स्थिति और संवेग को एक साथ एकदम ठीक-ठीक नहीं मापा जा सकता। यदि एक राशि अधिक शुद्धता से मापी जाएगी तो दूसरी के मापन में उतनी ही अशुद्धता बढ़ जाएगी, चाहे इसे मापने में कितनी ही कुशलता क्यों न बरती जाए। इन राशियों की अशुद्धियों का गुणनफल प्लांक नियतांक (h) से कम नहीं हो सकता।
यदि किसी गतिमान कण के स्थिति निर्दशांक x के मापन में , की त्रुटि (या अनिश्चितता) और x-अक्ष की दिशा में उसके संवेग p के मापने में , की त्रुटि हो तो इस सिद्धांत के अनुसार -
- ,
जहाँ, , h प्लांक नियतांक है।
इससे प्रकट होता है कि किसी कण का कोई निर्दशांक और उसके संवेग का तत्संगन संघटक दोनों एक साथ यथार्थतापूर्वक नहीं जाने जा सकते और यदि इन दोनों संयुग्मी राशियों में से एक की अनिश्चितता बहुत कम हो तो दूसरी की बहुत अधिक होती है।
अनिश्चितता के संबंध एक ओर तो कण की स्थिति की किसी तरंग से संगति स्थापित करने की संभावना के नियमों के तथा दूसरी ओर प्रायिकतामूलक निर्वचन (इंटरप्रिटेशन प्राबेबिलिस्टिक) के व्यापक नियमों के अनिवार्य परिणाम हैं। हाइजनबर्ग और मोहर ने नापने की प्रक्रिया का सूक्ष्म और गहन विश्लेषण करके यह सिद्ध कर दिया कि किसी भी माप के परिणाम अनिश्चितता सिद्धांत के प्रतिकूल नहीं निकल सकते। यदि हम किसी कण की स्थिति न् एकदम शुद्ध माप लें तो इसकी स्थिति की अनिश्चितता क़्न् शून्य बराबर होगी। तब उस कण के संवेग की अनिश्चितता गणित के नियमों के अनुसार:
अर्थात् अपरिमित हो जाएगी। अत: हम इस सरल निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए बाध्य हो जाते हैं कि जिस क्षणकाल पर हम कण की स्थिति की यथार्थ माप प्राप्त करते हैं उस काल पर उसका वेग अनिर्णीत हो जाता है। अगर किसी क्षणकाल पर कण का वेग परम यथार्थता से मापा जाता है तो उस क्षणकाल पर कण की स्थिति क्या थी, यह पता लगाने का हमारे पास विकल्प नहीं रहता। ऐसी अवस्था में स्थिति और संवेग दोनों की माप कुछ अनिश्चितताओं (या त्रुटियों) के भीतर ही संभव है। इस प्रकार हाइजनबर्ग ने सिद्ध कर दिया कि सूक्ष्म कणों के विश्व में मापक उपकरणों की उपयोगिता सीमित होती है। ये उपकरण कणों की गति को यथार्थ रूप में मापने में अक्षम होते हैं।
विज्ञान और तकनीकी के अनेक क्षेत्रों में सूक्ष्म मापों को मापने का स्तर काफी ऊँचाई पर है और इस दिशा में निरंतर प्रगति हो रही है लेकिन अनिश्चितता सिद्धांत मापों की शुद्धता के लिए एक नियत सीमा निर्धारित कर देता है। उपकरण की शुद्धता इस सीमा से अधिक नहीं सकती। आज तो लगभग सभी भौतिकज्ञ ऐसे मापन यंत्र के आविष्कार की असंभावना को स्वीकार करते हैं जो इस सिद्धांत में निहित सीमाओं का उल्लंघन कर सकें। अतः हम छोटे शब्दों में कह सकते हैं कि किसी कण की स्थिति तथा वेग दोनों एक साथ ज्ञात नहीं कर सकते हैं या स्थित ज्ञात होगा या तो वेग । या, किसी इलेक्ट्रॉन के लिए,एक समय में स्थिति और संवेग निश्चितता से ज्ञात नही कर सकते है ।
बाहरी कड़ियाँ
- अनिश्चितता का सिद्धान्त (विज्ञानविश्व :पारिभाषिक शब्दावली)
- Annotated pre-publication proof sheet of Uber den anschaulichen Inhalt der quantentheoretischen Kinematik und Mechanik, March 23, 1927.
- Matter as a Wave - a chapter from an online textbook
- Quantum mechanics: Myths and facts
- Stanford Encyclopedia of Philosophy entry
- aip.org: Quantum mechanics 1925–1927 - The uncertainty principle
- Eric Weisstein's World of Physics - Uncertainty principle
- Fourier Transforms and Uncertainty at MathPages
- Schrödinger equation from an exact uncertainty principle
- John Baez on the time-energy uncertainty relation
- The time-energy certainty relation[मृत कड़ियाँ] - It is shown that something opposite to the time-energy uncertainty relation is true.
- The certainty principle