अग्निगर्भा
यह अमृतलाल नागर द्वारा लिखित स्त्री समस्या केंद्रित उपन्यास है। महादेवी वर्मा को समर्पित किए गए इस उपन्यास में सुशिक्षित होकर भी निरंतर अवहेलना झेलती हुई सीता पांडे की कहानी है। सीता पांडे को प्रतिष्ठा मिलती है तो रामेश्वर रूपी एक ऐसे पुरुष के सहयोग के कारण जो अपने सहयोग के बदले सीता का सर्वस्व हथिया लेता है और बदले में उसे कुछ भी नहीं देना चाहता है। सीता के बहाने यह उस नारी की कहानी बन गई है जिसे आदमी की कामुक स्वार्थी और घिनौनी इच्छाएं अग्निगर्भा बना डालती हैं। और जो जीवनपर्यन्त धर्यशीला वसुंधरा की तरह अपने भीतर बिखरने वाली ज्वालाओं को निरंतर समेटती रहती है। वह जीवन भर अपनी अक्षय संपदा लुटाकर भी आदमी की तृषा को नहीं बुझा पाती। और रक्त की अंतिम बूंद चूसकर भी वह प्यासा बना रहता है। दहेज के लिए भारतीय नारी का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष शोषण आदमी की क्रूरतम मनो वृत्तति का एक घिनौना रूप है। नागर जी ने अपने इस उपन्यास में अपनी चिर-परिचित सहज-सरल रोचक और चुटीली भाषा में इस ज्वलंत समस्या पर अपनी लेखनी का प्रहार किया है।